Tuesday, 14 July 2020

श्रेष्ठ सुसंस्कारी सन्तान का निर्माण - 21 वर्षीय परियोजना (भाग 3)

*श्रेष्ठ सुसंस्कारी सन्तान का निर्माण - 21 वर्षीय परियोजना (भाग 3)*

प्रश्न - *हमारी सन्तान हमारा कहना नहीं सुनती, हमारे बीच सम्वाद कम और विवाद ज्यादा होता है? क्या करें*

उत्तर - परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं कि यदि बच्चों के भावनात्मक विकास में माता पिता ने समुचित ध्यान नहीं दिया तो सम्बन्ध कड़वे होंगे व विवादों को जन्म देंगे।

एक स्थान पर बैठिए व सोचिए कि क्या कभी आप अपने बच्चों के मित्र बनने का सच्चे मन से प्रयास किये हैं या शासक बनने में ही जुटे रहे।

बच्चा जब भी सामने आता है तो आप पहली बात क्या मुँह से निकालते हो? अपनी बोली व बात करने की शैली पर विचार करें।

बेटा, आप कैसे हो? और बताओ क्या चल रहा है? कुछ हमसे शेयर करना चाहोगे? कुछ अपनी बात बताओ। इत्यादि इत्यादि... उसको बहुत महत्त्वपूर्ण मानना। उसको समझने को आप तैयार हैं। उसे सुनना चाहते हैं।

(यहां बच्चा यह महसूस करेगा कि आप उसकी परवाह करते हैं, उसे सुनना चाहते हैं। अतः यहां आपके सम्बन्धो मे सम्वाद व मधुरता उत्तपन्न होगा।)

या

आज़कल टीवी मोबाइल ही देखोगे या कुछ पढ़ोगे भी? पढ़ाई कैसे चल रही है? इत्यादि इत्यादि... उसकी पढ़ाई की आपको चिंता है? उसकी हरकत से  आप परेशान है। उसे सुनाना चाहते हैं।

(यहां बच्चा यह महसूस करेगा कि आप उसे पालकर उस पर अहसान कर रहे हैं यह जताते हैं। अतः यहां आपके सम्बन्धो मे विवाद व कड़वाहट उत्तपन्न होगा।)

मधुरता या कड़वाहट इन दोनों के बीज़ जाने व अनजाने में हम माता पिता ही बोते हैं। क्योंकि बच्चा गर्भ से अब तक जो भी बना है, उसमें 70% हाथ माता-पिता का होता है, 30% हाथ समाज का है।

बच्चा घर का महत्त्वपूर्ण सदस्य है, उसे घर की समस्या से भी अवगत करवाना चाहिए। सब सदस्य को मिलकर घर की समस्या को सुलझाने में हाथ बंटाना चाहिए।

 कौन सी आत्मा घर मे जन्म लेगी यह माता-पिता के पूर्वजन्म के कर्मफ़ल अनुसार होगा। मन पसन्द सन्तान का चयन माता पिता के हाथ मे नहीं है।

माता पिता ने सन्तान को जन्म देकर और उसे पालकर उस पर कोई अहसान नहीं किया है।

 किस घर मे और किस माता-पिता के यहां सन्तान जन्म लेगी, यह उसके पूर्वजन्म के कर्मफ़ल अनुसार होगा। मन पसन्द माता-पिता का चयन सन्तान के हाथ मे नहीं है।

इसी तरह सन्तान ने जन्मलेकर माता पिता पर कोई अहसान नहीं किया है।

सन्तान का उत्तरदायित्व केवल माता या केवल पिता का नहीं है। दोनो को एक दूसरे पर दोषारोपण मढ़ने की जगह एक दूसरे का सहयोग बच्चे के भावनात्मक निर्माण में करना चाहिए।

बच्चों को औऱ माता-पिता को एक दूसरे के सहयोग, प्रेम-सहकार से परिवार को धरती का स्वर्ग बनाना होगा। अध्यात्म जप, तप, ध्यान, स्वाध्याय इसमें मदद करेगा।

गुरुदेव कहते हैं, जहां समस्या है वहीं समाधान है। हमें बस ध्यानस्थ होकर उस समाधान को ढूढने व पुनः सम्वाद स्थापित सच्चे प्रयत्नों से करने की आवश्यकता है।

केवल उलाहना देने में समय व्यर्थ न करें, अपितु वर्तमान समस्या की जड़ समझें, और उसके समाधान में जुटे।

जहां चाह है वहां राह बन ही जाती है।

रस्सी जैसे बंधी है ठीक उसे समझ के उसे धैर्य से उसके विपरीत खोलेंगे तो रस्सी अवश्य खुलेगी। घर में सम्बन्धो की डोरी में विवाद की गांठ कैसे व किन कारणों से बंधी, उसे समझे उन कारणों को दूर करें तो सम्बन्धों को सुलझा लेंगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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