Thursday 16 July 2020

श्रेष्ठ सुसंस्कारी बुद्धिमान सन्तान का निर्माण - 21 वर्षीय परियोजना (भाग 4)

*श्रेष्ठ सुसंस्कारी बुद्धिमान सन्तान का निर्माण - 21 वर्षीय परियोजना (भाग 4)*

बच्चे की उम्र - 0 से 3 वर्ष की दिनचर्या

यह वह समय है, जब बच्चे का मूलाधार खुला हुआ है। आपके संदेशों को मना करने हेतु उसका चेतन मन उपस्थित नहीं है। जो भी बोलोगे वह स्वीकारेगा। अतः कुछ भी उसके समक्ष बोलने से पहले विचार कर ही बोलें। आपके द्वारा कही अच्छी हो या बुरी सब बातें वह ग्रहण अभी करेगा और प्रकट बड़ी उम्र में करेगा।

*बच्चों के विकास के लिए नीचे दी गयी बातों पर ध्यान देना होता है:-*
👉🏻 *खान – पान*

जब बच्चा माँ के पेट में पल रहा होता है तो अपना भोजन माँ के शरीर से पाता है। माता - पिता के खानपान के गुण उसके डीएनए में होता है।

स्तनपान करवाने वाली माँ के लिए जरूरी है की  वह सेहत ठीक रखने वाली पौष्टिक आहार ले, नहीं तो उसके दूध की पौष्टिकता प्रभावित होगी औऱ बच्चा कमज़ोर होगा। हमेशा स्तनपान शुभ मनोदशा में गीत गुनगुनाते हुए, अच्छा सोचते हुए व मन्त्र जपते हुए पिलाएं। इससे अच्छे हार्मोन्स बच्चे के भीतर दूध के माध्यम से जाएंगे।

क्रोध व तनाव की अवस्था में बुरे हार्मोन्स ज़हर के रूप में दूध में मिलते हैं, क्रोध अवस्था मे पिलाया दूध बच्चे के लिए अत्यंत हानिकारक है।

हमारी सामाजिक रीतियाँ कुछ क्षेत्रों व राज्यों में इतनी बुरी है की  महिलाओं, किशोरियों लड़की यों को सही भोजन नहीं मिलता है, इसलिए उनसे जन्मे व उनका दूध पीकर उनकी सन्तान कमज़ोर और बीमार रहते हैं।  अच्छे भोजन की  कमी से किशोरियों और महिलाओं में खून की कमी रहती है, जरूरी है की  लड़का-लड़की में भेद भाव न रखा जाय सबको बराबर ढंग से पौष्टिक भोजन मिले ताकी  परिवार के सभी लोग स्वस्थ्य रहें।

गर्भावस्था में तो महिलाएं सही भोजन मिलना चाहिए ताकी  वह स्वस्थ्य बच्चा पैदा कर सके।

बच्चे का जन्म  के तुरत बाद स्तनपान कराना चाहिए। माँ के स्तनों में खूब दूध आए इसके लिए जरूरी है की  माँ का भोजन सही हो।

बच्चे का स्वस्थ्य माँ के भोजन पर ही टिका रहता है। जच्चा व बच्चा दोनो के भोजन को सही रखें।

जैसे जैसे बच्चा बड़ा हो, उसे ठोस आहार में घर मे बने आहार खिलाएं। मार्किट में पैकेट में रेडीमेड सेरेलक इत्यादि प्रोडक्ट बच्चे के पाचनतंत्र को बिगाड़ देते हैं, उनकी रुचि बिगाड़ देंगे, बच्चा चिड़चिड़ा व क्रोधी बनेगा। शुभ मन्त्र पढ़ते हुए घर में दलिया, खिचड़ी, हल्के पुलाव, फुल्के, सब्जियां उबली पेस्ट करके खिलाये। मन्त्र पढ़ते हुए खिलाएं बच्चा शांत प्रकृति व धैर्यवान बनेगा।

👉🏻 *लाड-दुलार*

अगर परिवार के सभी लोग और आस-पडोस के लोग अगर बच्चे को पूरा लाड़-प्यार देते हैं तो उसका सामाजिक विकास ठीक ढंग से होगा।

अगर उसे लाड़-दुलार नहीं मिलता तो वह दुखी महसूस करता है, कुछ भी उत्साह से नहीं करता है।

कम से कम तीन वक़्त नित्य माता पिता का बच्चे को लाड प्यार करना अनिवार्य है। बच्चे को सुबह उठाते वक्त, रात को सुलाते वक्त और भोजन करवाते वक्त भरपूर प्यार दुलार दें।

👉🏻 *सुरक्षा*

बच्चे के सही विकास के लिए जरूरी है की  वह अपने को सुरक्षित महसूस करें..

वह महसूस करे की  लोग उसका ध्यान रखते हैं..

उसके पुकारने पर लोग जवाब देते है..

उसको लगे की  लोग उससे प्यार करते हैं, उसकी परवाह करते हैं..

बच्चे को परिवार और समाज का एक व्यक्ति समझना चाहिए...

उम्र में छोटा है फिर भी उसका भी अपना स्वाभिमान है, उसे बालक समझ के ठेस न पहुंचाए...

बच्चे केवल प्यार नहीं चाहते, उन्हें सम्मान भी चाहिए... अतः बेवजह बालक समझ अपमानित न करें...

उसकी पसंद और नपसंद का ख्याल रखना... उसकी नापसंद को बुद्धिकुशलता से सही करना...

उसे दूसरे बच्चों से उंचा या नीचा नहीं समझना... उसकी तुलना न करें...

जब वह कोई नयी चीज समझता है या करता है तो उसे शाबासी देना, उसकी तारीफ करना.. उसे प्रोत्साहित करना...

तारीफ करने से उसका उत्साह बढ़ता है... उसे अच्छा महसूस होता है..

उसकी आवश्यकता को पूरा करना... अय्याशी को बुद्धिमत्ता से मना करना.. जरूरत व अय्याशी का फर्क स्वयं समझना व बच्चे को समझाना...

बच्चों को स्वाभाविक रूप से काम करने देना... हमेशा रोक टोक न करें.. उसे गलती करने दें.. उसे स्वयं से सीखने दें..

उस पर किसी तरह का दबाव न पड़े यह ध्यान रखें.. यदि कोई दबाव बना रहे हैं तो ध्यान रखें इससे उसका मनोबल न टूटे..

उससे हर वक्त  यह न कहना की  - यह करना है व यह न करना है। प्रत्येक नहीं कहने के पीछे पूरा विवरण समझाएं कि इसे क्यों नहीं करना चाहिए।

बच्चा खतरे में न पड़े इसका ध्यान देना है, लेकिन ओवर प्रोटेक्ट नहीं करना है।

बच्चे का स्वाभविक विकास रहे इसके लिए जरूरी है की  बच्चा खेल-कूद में भाग लें... समय निकालकर बच्चे के साथ खेलें... समय न दे पाने को गिफ्ट देकर पल्ला न झाड़े... जब आप वृद्ध होंगे तब वह भी आपको वस्तु देगा समय नहीं देगा... भविष्य में बच्चे से समय चाहिए तो उसके मन के बैंक में समय दीजिये...

खेल –खेल में बच्चा नयी चीजें सीखता है। कभी कभी आप भी बच्चे बन जाये उसके साथ खेले। जिससे वह आपको एक दोस्त समझे, स्वयं पर शासन करने वाला शासक नहीं समझे..

उसे समाज का एक जवाबदेह सदस्य बनने में मदद मिलती है, जब आप स्वयं सामाजिक उत्तरदायित्व उसके समझ निभाते हैं। सप्ताह में एक बार देशभक्ति गीत सपरिवार सुने। कुछ देशभक्ति वीडियो देखें। कहानियां महापुरुषों, देशभक्तों की पढ़े व सुनाएं।

जब बच्चों का दूसरों के साथ मेल-जोल बढ़ता है, तो उसके बोलचाल और भाषा में विकास होता है।

👉🏻 *हमारा विश्वास, हमारी परंपरा और माँ-बच्चे का स्वास्थ्य*

सभी समाज में कुछ मान्यताएं होती हैं, कुछ संस्कार, कुछ विश्वास, कुछ परम्परागत दिनचर्या होती है।

उनमे से कुछ अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे और हानिकारक भी।

यह बातें माँ और बच्चे की  देख भाल, सेहत और स्वास्थ्य पर भी लागु होती है।

*हमारे विश्वाश,हमारे संस्कार चार तरह के होते हैं* :-

1- वे जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है

2- वे जो न लाभदायक हैं न हानिकारक 

3- वे जो खतरनाक और हानिकारक है

4- ऐसे विश्वास जो अब तक साबित नहीं हुए हैं कि वे हमारे लिए लाभदायक हैं या हानिकारक

हमारे लिए जरूरी है कि हम परम्पराओं की जगह विवेक को महत्त्व दें। भेड़चाल न चले, प्रत्येक कर्म को विवेक की कसौटी पर कसे। हम पहचाने और जाने की  कौन से विश्वास लाभदायक है।

हमें लोगों के साथ लाभदायक विश्वाशों के साथ काम शुरू करना है । युगऋषि की लिखी पुस्तक - *हमारी भावी पीढ़ी और उसका नवनिर्माण*, *बच्चों का भावनात्मक विकास* और *बच्चों को उत्तराधिकार में अच्छे गुण दें* अवश्य पढ़ें, उसे अमल में लाये।

कोई भी अंध विश्वास एक दिन में खतम नहीं होता, समाज के लोगों के साथ उनपर काफी चर्चा करनी पड्ती है। विश्वास व अंधविश्वास में बहुत बारीक अंतर होता है। हमारे यहां ऐसे ही होता है बोलकर पल्ला न झाड़े। यह बच्चे को अवश्य बताएं कि हमारे परिवार में इस परम्परा के पीछे यह लॉजिक है, यह लाभ है, यह कारण है।

बच्चे के भीतर विवेक दृष्टि जागरण करने हेतु उसे नित्य रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता, प्रेरक महापुरुषों के प्रषंग सुनाएं। यह मत सोचे अरे यह इतना छोटा है अभी से क्या समझेगा। वह अभी समझेगा और बस प्रकट बड़ा होकर करेगा। आप तो बस अच्छे विचारों के बीज उसकी कोमल उपजाऊ मनोभूमि में डालते रहो।

बच्चा हाथ मे रखी चीज़े पकड़कर फेंकता है, बाल खींचता है, मारता है, क्रोध करता है। तो इसका अर्थ यह है माता ने गर्भ के दौरान बहुत कुछ बर्दास्त किया लेकिन उस क्रोध को पी गयी। दिखने में दब्बू माँ मन ही मन क्रांतिकारी सोच रही थी। उसके भीतर गुस्सा उबल रहा था। कभी बहुत हताशा का शिकार हुई। नकारात्मक भावनाओं का मनोवैज्ञानिक व्यवस्थित निष्कासन नहीं किया। इसलिए वह क्रोध बच्चे के अचेतन में सुरक्षित है।

ऐसी अवस्था मे माता व पिता को विशेष प्रयास करने पड़ेंगे। बच्चे के साथ खेल खेल में बोले देखे कौन कितनी देर बिना हिले रह सकता है। कौन कितनी देर आंख बंद करके रह सकता है। भीतर की आवाज कौन सुन सकता है। आसमान या घड़ी 2 मिनट तक देखेंगे, नजर नहीं हटाएंगे। यह क्रिया कलाप बच्चे को मन पर नियंत्रण करने में मदद करेगा।

बच्चे को व्यस्त रखें, प्यार से समझाने की कोशिश करें।

अत्यधिक मार और डांट खाने वाला बच्चा ढीठ बनता है, उसमे आपराधिक प्रवृत्ति जन्म लेती है।

सपरिवार रात को किसी भी समय 24 गायत्री मंत्र बच्चे सहित जपें।

बच्चा जब सोये तो उसे शुभ वाक्यों की लोरी सुनाएं। मन्त्र बोलकर सुलायें। बच्चा शांत होगा।

घर को साफ सुथरा व व्यवस्थित रखे। बच्चे से छोटे छोटे काम मे मदद लें।

उसे गणित की पहेली व संस्कृत के श्लोक याद करवाये। प्राणायाम करना सिखाएं। बच्चे को दोनो हाथ से बराबर कार्य करना सिखाये। दोनो हाथों से लिखने के लिए प्रेरित करें। बड़े बड़े वाक्य यादकर बोलने को कहें। पहाड़े इत्यादि सिखाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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