प्रश्न - *शिव तो सदा ही पूजनीय हैं तो फिर श्रावण मास में शिव को जन सामान्य द्वारा सबसे ज्यादा क्यों पूजा जाता है?*
उत्तर - आत्मीय भाई,
पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हो रहा था तब उस मंथन से 14 रत्न निकले। उन चौदह रत्नों में से एक हलाहल विष भी था, जिससे सृष्टि नष्ट होने का भय था। तब सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शिव ने उस विष को पी लिया और उसे भगवान शंकर व माता आदिशक्ति ने मिलकर शिव जी के गले से नीचे नहीं उतरने दिया। विष के प्रभाव से महादेव का कंठ नीला पड़ गया और इसी कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा।
माता पार्वती व भगवान विष्णु व अन्य देवों ने कावंड़ से गंगा जल लाकर और कामधेनु के दूध से जलाभिषेक व दुग्धाभिषेक किया था। विष के प्रभाव को कम किया था।
यदि किसी पर एसिड डल गया हो तो उस पर कच्चा दूध व गंगा जल अनवरत डालो तो वह एसिड के विष के प्रभाव को नष्ट कर देता है।
शिव ने जन कल्याण के लिए विष धारण किया था, इसलिए उन्हें कच्चे दूध व दही से स्नान करा कर उनके प्रति भक्त आभार व्यक्त करते हैं व उनके विष को मुक्त करने में राहत देने का प्रयास करते हैं। प्रकृति की विषाक्तता को भी यह प्रक्रिया नष्ट करती है।
सावन के महीने का प्रकृति से भी गहरा संबंध है क्योंकि इस माह में वर्षा ऋतु होने से संपूर्ण धरती बारिश से हरी-भरी हो जाती है। ग्रीष्म ऋतु के बाद इस माह में बारिश होने से मानव समुदाय को बड़ी राहत मिलती है। लेकिन पर्यावरण में व्याप्त प्रदूषण व एसिड जल के साथ मिट्टी में प्रवेश करता है। जन समुदाय बीमारियों से ग्रसित होता है।
प्रत्येक ग़ांव में शिव मंदिर हुआ करता था, गाय के दूध का अभिषेक रेडोएक्टिविटी को नियंत्रित करता है, साथ ही मिट्टी में एसिड के प्रभाव को भी कम करता है। भारत कृषि प्रधान देश है, अतः यहां के पर्व व त्यौहार अध्यात्म व आत्म उन्नति, प्रकृति कल्याण व कृषि विज्ञान आधारित होते हैं।
महामृत्युंजय का जप व यज्ञ जितना मनुष्य की आत्म गुणवत्ता बढ़ाता है, उतना ही पौधों व फसल की गुणवत्ता बढ़ा देता है। मनुष्यो को रोगमुक्त भी करता है।
ध्वनि मन्त्र विज्ञान और यज्ञचिकित्सा विज्ञान से रोग नष्ट किये जा सकते है। इस एक छोटी सी पोस्ट में समस्त यज्ञ विज्ञान व ध्वनि विज्ञान बताना सम्भव नहीं है। दो पुस्तक - *यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया(वाङ्गमय 26)* और *शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म(वाङ्गमय 19)* ज्यादा जानकारी के लिए पढ़ सकते हैं।
कावड़ के माध्यम से गंगा जैसी पवित्र व औषधि सम्पन्न नदियों का जल में स्नान व पीने से एक ओर शरीर को स्वास्थ मिलता है, दूसरी ओर उस जल को श्रद्धा पूर्वक अपने गाँव के शिव मंदिर में शिवाभिषेक के माध्यम से कृषि भूमि में मिलकर गुणवत्ता बढ़ा देता है। ऑर्गेनिक कृषि में लाभदायक है। आत्मिक लाभ, शारीरिक लाभ व कृषि लाभ तीनो एक साथ मिलते हैं।
सप्ताह में एक बार सोमवार व्रत और महामृत्युंजय मंत्र ऋतुपरिवर्तन में होने वाले रोगों के शमन हेतु शरीर को संक्षम व सबल बनाता है।
अध्यात्म महान आध्यात्मिक वैज्ञानिक ऋषियों द्वारा बनाया गया है। प्रत्येक तीज त्योहार व व्रत पूजन एक विधिव्यवस्था से सम्बंधित है। परेशानी यह है कि नई पीढ़ी इस ज्ञान से वंचित है, क्योंकि अब गुरुकुल नहीं है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई,
पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हो रहा था तब उस मंथन से 14 रत्न निकले। उन चौदह रत्नों में से एक हलाहल विष भी था, जिससे सृष्टि नष्ट होने का भय था। तब सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शिव ने उस विष को पी लिया और उसे भगवान शंकर व माता आदिशक्ति ने मिलकर शिव जी के गले से नीचे नहीं उतरने दिया। विष के प्रभाव से महादेव का कंठ नीला पड़ गया और इसी कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा।
माता पार्वती व भगवान विष्णु व अन्य देवों ने कावंड़ से गंगा जल लाकर और कामधेनु के दूध से जलाभिषेक व दुग्धाभिषेक किया था। विष के प्रभाव को कम किया था।
यदि किसी पर एसिड डल गया हो तो उस पर कच्चा दूध व गंगा जल अनवरत डालो तो वह एसिड के विष के प्रभाव को नष्ट कर देता है।
शिव ने जन कल्याण के लिए विष धारण किया था, इसलिए उन्हें कच्चे दूध व दही से स्नान करा कर उनके प्रति भक्त आभार व्यक्त करते हैं व उनके विष को मुक्त करने में राहत देने का प्रयास करते हैं। प्रकृति की विषाक्तता को भी यह प्रक्रिया नष्ट करती है।
सावन के महीने का प्रकृति से भी गहरा संबंध है क्योंकि इस माह में वर्षा ऋतु होने से संपूर्ण धरती बारिश से हरी-भरी हो जाती है। ग्रीष्म ऋतु के बाद इस माह में बारिश होने से मानव समुदाय को बड़ी राहत मिलती है। लेकिन पर्यावरण में व्याप्त प्रदूषण व एसिड जल के साथ मिट्टी में प्रवेश करता है। जन समुदाय बीमारियों से ग्रसित होता है।
प्रत्येक ग़ांव में शिव मंदिर हुआ करता था, गाय के दूध का अभिषेक रेडोएक्टिविटी को नियंत्रित करता है, साथ ही मिट्टी में एसिड के प्रभाव को भी कम करता है। भारत कृषि प्रधान देश है, अतः यहां के पर्व व त्यौहार अध्यात्म व आत्म उन्नति, प्रकृति कल्याण व कृषि विज्ञान आधारित होते हैं।
महामृत्युंजय का जप व यज्ञ जितना मनुष्य की आत्म गुणवत्ता बढ़ाता है, उतना ही पौधों व फसल की गुणवत्ता बढ़ा देता है। मनुष्यो को रोगमुक्त भी करता है।
ध्वनि मन्त्र विज्ञान और यज्ञचिकित्सा विज्ञान से रोग नष्ट किये जा सकते है। इस एक छोटी सी पोस्ट में समस्त यज्ञ विज्ञान व ध्वनि विज्ञान बताना सम्भव नहीं है। दो पुस्तक - *यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया(वाङ्गमय 26)* और *शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म(वाङ्गमय 19)* ज्यादा जानकारी के लिए पढ़ सकते हैं।
कावड़ के माध्यम से गंगा जैसी पवित्र व औषधि सम्पन्न नदियों का जल में स्नान व पीने से एक ओर शरीर को स्वास्थ मिलता है, दूसरी ओर उस जल को श्रद्धा पूर्वक अपने गाँव के शिव मंदिर में शिवाभिषेक के माध्यम से कृषि भूमि में मिलकर गुणवत्ता बढ़ा देता है। ऑर्गेनिक कृषि में लाभदायक है। आत्मिक लाभ, शारीरिक लाभ व कृषि लाभ तीनो एक साथ मिलते हैं।
सप्ताह में एक बार सोमवार व्रत और महामृत्युंजय मंत्र ऋतुपरिवर्तन में होने वाले रोगों के शमन हेतु शरीर को संक्षम व सबल बनाता है।
अध्यात्म महान आध्यात्मिक वैज्ञानिक ऋषियों द्वारा बनाया गया है। प्रत्येक तीज त्योहार व व्रत पूजन एक विधिव्यवस्था से सम्बंधित है। परेशानी यह है कि नई पीढ़ी इस ज्ञान से वंचित है, क्योंकि अब गुरुकुल नहीं है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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