Saturday, 25 July 2020

श्रेष्ठ सुसंस्कारी बुद्धिमान सन्तान का निर्माण - 21 वर्षीय परियोजना (भाग 6),आत्मगौरव - आत्मसम्मान व आत्मनिर्भरता के छः स्तम्भ

*आत्मगौरव - आत्मसम्मान व आत्मनिर्भरता के छः स्तम्भ*

*श्रेष्ठ सुसंस्कारी बुद्धिमान सन्तान का निर्माण - 21 वर्षीय परियोजना (भाग 6)*

सन्तान जन्मजात दो पैरों पर खड़ा होना व चलना नहीं जानता। यदि माता-पिता उसे अभ्यास न कराएं तो शायद व चार पैरों के पशु की तरह ही चलता रहेगा। उसे यह विश्वास ही न हो पायेगा कि दो पैरों पर खड़ा होना व स्वयं के अस्तित्व को सम्हाल के चला जा सकता है। जब बालक के शरीर को चलाना सिखाया तो उसके मन को उसके पैरों पर चलना व सम्हालना भी तो आपको ही सिखाना होगा।

उसके अस्तित्व को आत्मगौरव - आत्मसम्मान व आत्मनिर्भरता के छः स्तम्भ पर खड़ा करना पड़ेगा। यह प्रशिक्षण जितनी जल्दी सम्भव हो शुरू कर दें, अन्यथा दुनियाँ की समस्याओं की ऊंची तूफानी लहरों में स्वयं को सम्हाल नहीं पायेगा। डिप्रेशन(तनाव) के गड्ढे में गिर जाएगा।

सन्तान को आत्म सम्मान के छह आधार क्रमशः सिखाये: -

1- *रहन-सहन का अभ्यास* - सुबह उठकर उसे व्यस्थित व साफसुथरा रहना सिखाएं, साफ स्वच्छ वस्त्र, व्यवस्थित बाल, सही आत्मविश्वास से भरी चाल होनी चाहिए । घर से बाहर कहीं घूमते  निकलते समय जैसे व्यवस्थित दिखते हैं। वैसे ही सूर्योदय से सूर्यास्त तक घर मे हो या बाहर जाएं, व्यवस्थित दिखे व रहें। माता-पिता रविवार की छुट्टी के दिन अव्यवस्थित रहने की जो भूल करते हैं व न करें। रविवार भी व्यवस्थित व्यक्तित्व के साथ रहें।

शरीर को स्वस्थ प्रशन्न व चुस्त दुरुस्त रखने के लिए योग-व्यायाम-प्राणायाम करें। स्वस्थ आहार खाएं। हमेशा चेहरे में ओज रखें। जब भी जहां भी बैठें कमर सीधी रखकर बैठने का अभ्यास डालें।

हमारे परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी व माता वन्दनीया हमेशा नित्य व्यवस्थित रहते थे। हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी हमेशा व्यवस्थित रहते हैं।

आपकी बेटी हो या बेटा उसे इतना अलर्ट व आत्मविश्वास से भरा खड़ा होना सिखाइये कि अचानक कोई उनपर हमला बोले तो भी वह उस हमले को रोक सकें। सतर्क अलर्ट होश में बैठे, उठे, खड़े हों व चलें।

2- *आत्म-स्वीकृति का अभ्यास* -

बच्चे को बताएं, हमें यह अधिकार नहीं था कि मन पसन्द आत्मा को सन्तान के रूप में चुन सकें, साथ ही तुम्हे भी यह अधिकार नहीं था कि मन पसन्द आत्मा को अपने माता-पिता के रूप में चुन सको। हम सबके पूर्वजन्म के ऋणानुबन्ध व कर्मफ़ल अनुसार हम लोग एक परिवार का हिस्सा हैं।  न हमने तुम्हे जन्म देकर कोई अहसान किया है, न तुमने जन्म लेकर कोई अहसान किया है। हम सब आत्माएं ऋणानुबन्ध से बंधी है। हमें स्वस्थ मन से एक दूसरे की आत्माओं को जीवन मे स्वीकार करना चाहिए, व प्रेम-प्यार व सहकार से रहना चाहिए। अपने अपने कर्तव्यों को निभाते रहना चाहिए।

प्रारब्ध-भाग्य मात्र परिस्थिति अपनी इच्छानुसार दे सकता है, मनःस्थिति व वर्तमान जन्म के कर्म से हम उसके परिणाम को तय कर सकते हैं, भाग्य बदल सकते हैं।

Situation + Response = Outcome

श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, परिस्थति व परिणाम दोनो तुम्हारे हाथ में नहीं है। तुम्हारे हाथ में केवल कर्म (Response) है। जो परिणाम (outcome) को प्रभावित करेगा।

मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है - यह व्यर्थ के डायलॉग बोलकर हमें समय नष्ट नहीं करना चाहिए। हमें इस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि ऐसा जब हो ही गया तो मेरा इस पर प्लान ऑफ एक्शन क्या होगा? समाधान केंद्रित दृष्टिकोण तभी विकसित होगा जब तुम परिस्थिति को स्वीकारोगे और उस पर आगे क्या करना है विचारोगे।

3-  *स्व-जिम्मेदारी का अभ्यास* - कभी भी अपने जीवन में जो कुछ भी घट रहा है उसके लिए दूसरे को दोष मत देना। अपने कर्मो व उनके परिणामो के लिए स्वयं उत्तरदायी होकर जिम्मेदारी उठाना।

अच्छा बैट्समैन स्वयं के खेल के लिए स्वयं जिम्मेदारी उठाता है, इसलिए इतिहास बनाता है। बुरा बैट्समैन बॉलर, अन्य ग्यारह खिलाड़ी, पिच , स्क्रीन इत्यादि को दोष देता है, इसलिए फिसड्डी रह जाता है।

दूसरे ने गुस्सा दिलाया - यह मत कहो,
यह कहो कि उसके खराब वाक्यों की बॉल को मैं खेल न सका इसलिए आउट हुआ व क्रोध आया।

दूसरे के कारण परीक्षा में कम नम्बर आये - यह मत कहो, अपितु यह कहो दूसरे द्वारा उतपन्न व्यवधानों को मैं झेल नहीं पाया, उनसे बचकर आगे बढ़ने में चूक गया इसलिए नम्बर कम आया।

मेरी इच्छाओं व आकांक्षाओं को कोई अन्य पूरा करेगा - यह मत कहो, अपितु यह कहो, मेरी इच्छाओं व आकांक्षाओं को पूरी करने की जिम्मेदारी मेरी है, मैं समस्त बाधाओं व चुनौतियों को पार करते हुए इन्हें पूरा करूंगा।

मेरे जीवन में जो कुछ सफलता या असफ़लता है, उसके लिए एकमात्र जिम्मेदार मैं हूँ।

4 - *आत्म-अभ्यास का अभ्यास* -
जैसे स्वर्णकार सभी आभूषणों की क़ीमत स्वर्ण के आधार पर लगता है, वैसे ही तुम भी समस्त जगत में व्यक्तियों की कीमत उसके आत्मतत्व के आधार पर लगाओ।

थोड़ा विचारों - दुनियाँ कौन देख रहा है? तुम्हारे नेत्र है न.. तो नेत्र - दृष्टा देखने वाला हुआ और संसार दृश्य हुआ। दोनो अलग हैं। आंखे स्वयं को नहीं देख सकती। दर्पण चाहिए।

तुम्हारे आंखों के दर्द या शरीर की हलचल कौन महसूस करता है, दृश्य में आनंद या अच्छा नहीं लगना कौन तय करता है। तुम्हारा मन है न .. तो मन शरीर का दृष्टा हुआ। शरीर दृश्य व मन दृष्टा। दो अलग अस्तित्ब है।

अच्छा पढ़ने में मन लगना या नहीं लगना, मन की दशा को कौन समझ रहा है। कोई अस्तित्व अंदर और भी है। जो मन को देख रहा है। वह कौन है- जिसे साक्षी(witness), आत्मा(soul), रूह इत्यादि कहते हैं। अतः मन और मन का साक्षी तो अलग अस्तित्ब हुए।

ऐसा क्या शरीर से निकल जाता है जिससे लोग उसे मृत समझते हैं। वह ऊर्जा जिससे शरीर चलता है जिसके न रहने पर मृत हो जाता है, वह क्या है, उसका उद्गम श्रोत क्या है?

 वह आत्मा का अस्तित्व तुममें कहाँ है? उस मन के साक्षी और ऊर्जा स्रोत को अंतर्जगत में नित्य 20 से 30 मिनट ध्यान कर तलाशो। जिस दिन तुम उसे जान लोगो, आत्म ज्ञानी-ब्रह्म ज्ञानी बन जाओगे।

5 - *उद्देश्य से जीने का अभ्यास* - बेटे, गाड़ी में बैठने से पहले गाड़ीवान को यह बताना होता कि कहाँ जाना है। यात्रा का उद्देश्य व मंजिल क्लियर हो तो ही वह यात्रा है अन्यथा भटकाव ही है।

इसी तरह तुम जीवन के उद्देश्य व मंजिल तय कर लो, तो यह जीवन यात्रा सुखद हो जाएगी अन्यथा तुम एक शशरीर भटकती आत्मा होंगे।

रात को ही मन को कल क्या क्या करना है, दिन का टाइम टेबल बता दो तो अगला दिन व्यवस्थित होगा। यदि प्रत्येक दिन क्या क्या करना है व क्यों करना है? एक सप्ताह में क्या अचीव करना है, एक महीने में क्या अचीव करना है, एक वर्ष में क्या अचीव करना है इत्यादि मन को क्लियर कर दो, जीवन दिशा मिल जाएगी।

6- *व्यक्तिगत ईमानदारी का अभ्यास* - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, प्रत्येक जगह वह किसी न किसी टीम का हिस्सा होता है। हमें अपने हिस्से की जिम्मेदारी का ईमानदारी से वहन करना चाहिए।

अपनी नज़रों में सदा ऊंचा उठे रहना चाहिए, यह तभी सम्भव है जब आप अपने हिस्से की जिम्मेदारी का ईमानदारी से वहन करेंगे।

वर्तमान में आपकी जिम्मेदारी व कर्तव्य क्या हैं, उन्हें पहचानिए। उनको ईमानदारी से कीजिये।

यदि कोई अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर रहा तो उसे एक बार समझाइए, न समझे तो उसे छोड़कर केवल अपने हिस्से के कर्तव्य को ईमानदारी से कीजिए।

मेरे बच्चे यदि आप इन छ: आधारों को अपनाएंगे तो आप स्वयं को आत्मगौरव व आत्मानुशासन से भरा हुआ पाएंगे। आत्म विश्वास से भरे रहेंगे।

क्रमशः...

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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