*पूर्वजन्म का कोई पुण्यफ़ल होता है, तब सद्गुरु के दर्शन मिलते हैं, सन्मार्ग मिलता है, तब गीता का ज्ञान जीवन में घटता है।*
एक कुख्यात डाकू अंगुलिमाल की तरह हत्यारा था। उसके गड़ासे से न जाने कितनों को मौत के घाट उतारा था।
एक भक्तिमय ज्ञानमय सन्त उस ओर से निकले, डाकू ने रोका- कहा जो कुछ तुम्हारे पास है मुझे दे दो, मृत्यु के लिए तैयार हो जाओ।
*सन्त मुस्कुराए व बोले* - मैं ठहरा हुआ हूँ, लेकिन क्या मुझे स्पर्श करने के लिए तुम मेरे समक्ष ठहरने को तैयार हो? मैं तो प्रत्येक क्षण मौत के लिए तैयार हूँ, लेकिन यह बताओ क्या तुम अपनी मौत के लिए तैयार हो? मेरे पास भक्ति व आत्मज्ञान सम्पदा है, अकूत आनन्द सम्पदा है, मैं तो देने के लिए तैयार हूँ, मग़र क्या तुम इसे लेने को तैयार हो?
डाकू को ऐसे उत्तर की उम्मीद न थी, जिसे भयभीत चेहरे देखने की आदत थी। निर्भय शांत भयमुक्त ज्योतिर्मय सन्त को देखकर वह स्वयं पहली बार जीवन में भयभीत हो गया। स्वयं भी मरेगा यह तो उसने स्वप्न में भी न सोचा था, उसे कुछ समझ न आया।
*🔥तपोमय व स्थितप्रज्ञ सन्त का दर्शन मोमबत्ती की रौशनी की तरह कार्य करता जिसमें जो मोह व लोभ के अंधकार को हटा सत्य दिखाने की क्षमता होती है। 💫तप से सिद्ध वाणी का प्रभाव सीधे हृदय तक पहुंचता है💫।* यही प्रभाव डाकू में परिलक्षित हुआ व गड़ासा फेंक सन्त के चरणों मे गिर गया। बोला प्रभु, आजतक मुझतक कोई ज्ञान की रौशनी पहुंची नहीं। हज़ारो की हत्या करने वाले मुझ पापी का क्या उद्धार सम्भव है? मैं आपकी भक्ति,ज्ञान व आनन्द सम्पदा लेना चाहता हूँ। मैं भी ठहरना चाहता हूँ। मैं भी आपकी तरह निर्भय व शांत बनना चाहता हूँ।
सन्त बोले, उठो पुत्र! इतनी हत्याओं के पाप से मुक्ति तुम्हें प्रायश्चित व जनसेवा करने से मिलेगी, जितनों को रुलाया है अब उन्हें मुस्कुराने की वजह दो। जितनों को मौत के घाट उतारा है उससे अधिक लोगो का जीवन बचाओ। जाओ चार धाम तीर्थों का दर्शन करो, रास्ते मे जनकल्याण करो। लौट कर आओ, तब मैं तुम्हे इसी वृक्ष के नीचे यहीं मिलूँगा। आज से तुम बाहुबली डाकू नहीं, अपितु आज से तुम बाहुबली अहिंसक हो।
यह सूखी लकड़ी ले जाओ, जैसे जैसे तुम्हारा हृदय व कर्म निर्मल बनेंगे यह हरी होती जाएगी। जब इसमें हरी पत्तियां निकल आये तो जानना तुम गुरु दीक्षा पाने योग्य हो गए हो।
बाहुबली अहिंसक तीर्थाटन को निकल पड़ा, एक कमण्डल, माला व दुशाला साथ लिया व चल पड़ा।
एक ग़ांव पहुँचा जो नदी से बहुत दूर था, स्त्रियों को बहुत कठिनाई से जल ग़ांव तक लाना पड़ता था। बाहुबली व डाकू ने लोगों की जल समस्या हल करने के लिए नदी से नहर गाँव तक खोदने का निश्चय किया। ग़ांव के युवाओं को तैयार कर 20 दिनों में कार्य कर डाला, आसपास पेड़ लगवा दी। ग़ांव वालो ने खूब आशीर्वाद दिया। 21 वें दिन वह आगे तीर्थाटन हेतु निकल पड़ा।
आगे दूसरे ग़ांव में जंगली पशुओं का आतंक था, आये दिन जंगली जानवर बच्चे उठा ले जाते थे। बाहुबली अहिंसक ने गाँव के युवाओं को गाँव के आसपास बाड़े बनाने के लिए तैयार किया। कटीली झाड़ियों, बांस व मिट्टी की मदद से गाँव के चारो ओर बाड़ा बना दिया। युवाओ को लट्ठ चलाने का प्रशिक्षण दिया, युवाओ का ग्रामीण सुरक्षा दल बना दिया, चार समूह बनवाया। भाले बनवाये और थमाते हुए बोला, प्रत्येक सप्ताह एक सुरक्षा दल ग़ांव की पहरेदारी करेगा। ग़ांव वाले उसे बदले में अनाज देंगे।। एक महीने से कोई बच्चा जंगली जानवरों से आहत न हुआ। सब खुश हुए बहुत आशीर्वाद दिया।
तीर्थ यात्रा में आगे बढ़ा, मन ही मन सोच रहा था अब तक एक भी तीर्थ के दर्शन नहीं हुए और दो महीने के करीब समय बीत गया। इन्हीं विचारों में खोया था कि उसे कुछ आवाज़ सुनाई दिया। चार डाकू अपने आतंक को साबित करने के लिए एक गाँव को जलाने हेतु रात होने का इंतज़ार कर रहे थे, क्योंकि उस गाँव ने डाकुओं को धन व कर देने से मना कर दिया था, व राजा से शिकायत कर दी थी, फौज कल तक आने वाली थी। अतः आतंकवाद व ग़ांव के विनाश की योजना उन्हें आज ही पूरी करनी थी।
बाहुबली अहिंसक उन अन्य डाकुओं के पास गया व समझाने की कोशिश की तो उल्टे उन डाकूओ ने इस पर हमला बोल दिया। बाहुबली डाकू ने कहा मेरे जीवित रहते तुम इस ग़ांव के असंख्य लोगों को, पशुओं को यूं जिंदा नहीं जला सकते। बाहुबली डाकू क्योंकि बहुत बलिष्ठ व युद्ध कला प्रवीण था, उन्ही के हथियारों से उसने उन चारों का गला काट दिया। शोर सुनकर गाँव वाले आ गए, उन्होंने डाकूओ को पहचान लिया व ग़ांव को जलने से बचाने के लिए बाहुबली युवक को धन्यवाद दिया।
मृतक डाकूओ की लाश व अपने हाथ मे पुनः रक्त देखकर बाहुबली अहिंसक व्यथित हो गया। उसने मन ही मन सोचा लगता है, इस जन्म में मेरा उद्धार असम्भव है, पिछले कत्ल के पाप धुले नहीं। अभी तक एक भी धाम के दर्शन हुए नहीं, समय बीत रहा है, और आज यह चार डाकू मेरे हाथों मारे गए। पुनः हत्या मैंने की। बड़े पश्चाताप व ग्लानि से रोते रोते वह कब सो गया उसे पता ही न चला। सुबह उसे अपने झोले से कुछ खुशबू आते हुए प्रतीत हुई। उसने झोला खोला तो उस सुखी लकड़ी में न सिर्फ हरे पत्ते थे, अपितु सुंदर महकते पुष्प भी थे।
हरीभरी डाली ने गुरु से पुनः मिलन का सन्देश जैसे उसे दे दिया हो, वह बिना कुछ खाये पिये बेसुध डाली लेकर सदगुरु से मिलने लौटा। कहाँ कदम पड़े व रास्ते में कितने गाँव पड़े उसे कुछ होश न रहा, कितने दिन व रात गुजरे उसे होश नहीं। वह पुनः उसी स्थान में पहुंचा जहां गुरु ने मिलने का वादा किया था। गुरु उसी वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थे, वह उनके चरणों मे गिर पड़ा व उसके अश्रुओं से गुरु के चरण भीग गए।
गुरु ने कहा, वत्स उठो! तुम्हारी गुरु दीक्षा का आज शुभ दिन है। गुरु की वाणी सुनकर मानो उसे होश आया हो। अरे उसे याद आया गुरु ने चार धाम की यात्रा कही थी, वह तो उसने किया ही नहीं। वापस चला आया।
उसने गुरुदेव से क्षमा मांगते हुए कहा, गुरुवर मैंने चार धाम यात्रा तो क्या एक धाम की यात्रा भी न कर सका। उल्टे मैंने चार डाकूओ की हत्या कर दी, पुनः पाप किया। लेक़िन सूखी डाली को सुबह जब हरीभरी व पुष्प युक्त देखा तो आपके दर्शन का सन्देश समझ इसे लिए यहां चला आया। मुझे क्षमा करें प्रभु! मैंने आपको वचन दिया था कि पुनः पाप व हत्या नहीं करूंगा। उसे मैंने तोड़ दिया।
गुरु मुस्कुराए और बोले, तुम तीर्थयात्रा करके ही आये हो पुत्र। तुमने जितनी हत्याएं की थी उससे अधिक लोगों का जीवन बचाया।
💫
*श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने कर्मयोग की परिभाषा देते हुए कहा है कि कर्म का कर्मफ़ल उस कर्म के पीछे के उद्देश्य व भावना पर निर्भर करती है।*💫
*पहले तुम्हारे द्वारा की गई हत्या का उद्देश्य व भावना दूषित थी, तुम आतंक फैलाकर स्वयं को ऐश्वर्य शाली बनाना चाहते थे। इसलिए इन कर्मो से तुम्हें पाप फल मिला।*
*लेकिन कल रात जो हत्या तुमने की उसके पीछे का उद्देश्य व भावना अत्यंत निर्मल व उत्तम थी। तुम्हारा उद्देश्य ग्रामीण लोगों, पशु व पक्षियों को जिंदा जलने से बचाना था। अतः यह डाकुओं की हत्या भी प्रभु का पूजन बन गयी। धर्म स्थापना व युगपीडा निवारण की वजह बन गयी। इसलिए इस कर्म का पुण्यफ़ल तुम्हे मिला।*
*पहले तुम्हारे प्रत्येक कर्म व श्रम स्वार्थकेन्द्रित व स्वार्थपूर्ति हेतू था। लेकिन पिछले दो महीने से तुम्हारा प्रत्येक कर्म व श्रम लोककल्याण के लिए हुआ। वह नदी से जल की नहर ग्राम तक लाना व लोगों का जलसंकट समाप्त करना कावंड़ लाकर शिवलिंग पर रूद्राभिषेक करने जैसा ही पुण्यफ़ल दायी था पुत्र।*
*लोगों को उनकी सुरक्षा स्वयं करने का प्रशिक्षण देना व ग़ांव के लिए सुरक्षा बाड़ा बनवाना एक महायज्ञ ही था पुत्र।*
यज्ञमय परोपकारी जीवन जीने के कारण व नित्य अपने गुरु के अनुसाशन में जीने व ध्यान में रमने के कारण समस्त तीर्थ तुम्हारे हृदय में स्वयं प्रकट हो गए।
*तुम्हारे निर्मल मन से किये पश्चाताप ने माता गंगा को तुम्हारे हृदय में प्रकट कर दिया पुत्र, तुम्हें गंगा स्नान का पुण्यफ़ल मिल गया। जल संकट दूर करने पर स्वयं शिव और वृक्षारोपण करने से स्वयं प्रकृति माँ पार्वती तुम्हारे हृदय में विराजमान हो गए। डाकूओ की हत्या कर ग्रामवासियों का जीवन बचाने से भगवान विष्णु स्वयं तुम्हारे हृदय में प्रकट हो गए।*
अब आओ तुम्हें गुरुदीक्षा देता हूँ, तुम अपने शुभकर्मों से यूँ ही जनसेवा करते रहना। ईश्वर की कृपा व मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ रहेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
एक कुख्यात डाकू अंगुलिमाल की तरह हत्यारा था। उसके गड़ासे से न जाने कितनों को मौत के घाट उतारा था।
एक भक्तिमय ज्ञानमय सन्त उस ओर से निकले, डाकू ने रोका- कहा जो कुछ तुम्हारे पास है मुझे दे दो, मृत्यु के लिए तैयार हो जाओ।
*सन्त मुस्कुराए व बोले* - मैं ठहरा हुआ हूँ, लेकिन क्या मुझे स्पर्श करने के लिए तुम मेरे समक्ष ठहरने को तैयार हो? मैं तो प्रत्येक क्षण मौत के लिए तैयार हूँ, लेकिन यह बताओ क्या तुम अपनी मौत के लिए तैयार हो? मेरे पास भक्ति व आत्मज्ञान सम्पदा है, अकूत आनन्द सम्पदा है, मैं तो देने के लिए तैयार हूँ, मग़र क्या तुम इसे लेने को तैयार हो?
डाकू को ऐसे उत्तर की उम्मीद न थी, जिसे भयभीत चेहरे देखने की आदत थी। निर्भय शांत भयमुक्त ज्योतिर्मय सन्त को देखकर वह स्वयं पहली बार जीवन में भयभीत हो गया। स्वयं भी मरेगा यह तो उसने स्वप्न में भी न सोचा था, उसे कुछ समझ न आया।
*🔥तपोमय व स्थितप्रज्ञ सन्त का दर्शन मोमबत्ती की रौशनी की तरह कार्य करता जिसमें जो मोह व लोभ के अंधकार को हटा सत्य दिखाने की क्षमता होती है। 💫तप से सिद्ध वाणी का प्रभाव सीधे हृदय तक पहुंचता है💫।* यही प्रभाव डाकू में परिलक्षित हुआ व गड़ासा फेंक सन्त के चरणों मे गिर गया। बोला प्रभु, आजतक मुझतक कोई ज्ञान की रौशनी पहुंची नहीं। हज़ारो की हत्या करने वाले मुझ पापी का क्या उद्धार सम्भव है? मैं आपकी भक्ति,ज्ञान व आनन्द सम्पदा लेना चाहता हूँ। मैं भी ठहरना चाहता हूँ। मैं भी आपकी तरह निर्भय व शांत बनना चाहता हूँ।
सन्त बोले, उठो पुत्र! इतनी हत्याओं के पाप से मुक्ति तुम्हें प्रायश्चित व जनसेवा करने से मिलेगी, जितनों को रुलाया है अब उन्हें मुस्कुराने की वजह दो। जितनों को मौत के घाट उतारा है उससे अधिक लोगो का जीवन बचाओ। जाओ चार धाम तीर्थों का दर्शन करो, रास्ते मे जनकल्याण करो। लौट कर आओ, तब मैं तुम्हे इसी वृक्ष के नीचे यहीं मिलूँगा। आज से तुम बाहुबली डाकू नहीं, अपितु आज से तुम बाहुबली अहिंसक हो।
यह सूखी लकड़ी ले जाओ, जैसे जैसे तुम्हारा हृदय व कर्म निर्मल बनेंगे यह हरी होती जाएगी। जब इसमें हरी पत्तियां निकल आये तो जानना तुम गुरु दीक्षा पाने योग्य हो गए हो।
बाहुबली अहिंसक तीर्थाटन को निकल पड़ा, एक कमण्डल, माला व दुशाला साथ लिया व चल पड़ा।
एक ग़ांव पहुँचा जो नदी से बहुत दूर था, स्त्रियों को बहुत कठिनाई से जल ग़ांव तक लाना पड़ता था। बाहुबली व डाकू ने लोगों की जल समस्या हल करने के लिए नदी से नहर गाँव तक खोदने का निश्चय किया। ग़ांव के युवाओं को तैयार कर 20 दिनों में कार्य कर डाला, आसपास पेड़ लगवा दी। ग़ांव वालो ने खूब आशीर्वाद दिया। 21 वें दिन वह आगे तीर्थाटन हेतु निकल पड़ा।
आगे दूसरे ग़ांव में जंगली पशुओं का आतंक था, आये दिन जंगली जानवर बच्चे उठा ले जाते थे। बाहुबली अहिंसक ने गाँव के युवाओं को गाँव के आसपास बाड़े बनाने के लिए तैयार किया। कटीली झाड़ियों, बांस व मिट्टी की मदद से गाँव के चारो ओर बाड़ा बना दिया। युवाओ को लट्ठ चलाने का प्रशिक्षण दिया, युवाओ का ग्रामीण सुरक्षा दल बना दिया, चार समूह बनवाया। भाले बनवाये और थमाते हुए बोला, प्रत्येक सप्ताह एक सुरक्षा दल ग़ांव की पहरेदारी करेगा। ग़ांव वाले उसे बदले में अनाज देंगे।। एक महीने से कोई बच्चा जंगली जानवरों से आहत न हुआ। सब खुश हुए बहुत आशीर्वाद दिया।
तीर्थ यात्रा में आगे बढ़ा, मन ही मन सोच रहा था अब तक एक भी तीर्थ के दर्शन नहीं हुए और दो महीने के करीब समय बीत गया। इन्हीं विचारों में खोया था कि उसे कुछ आवाज़ सुनाई दिया। चार डाकू अपने आतंक को साबित करने के लिए एक गाँव को जलाने हेतु रात होने का इंतज़ार कर रहे थे, क्योंकि उस गाँव ने डाकुओं को धन व कर देने से मना कर दिया था, व राजा से शिकायत कर दी थी, फौज कल तक आने वाली थी। अतः आतंकवाद व ग़ांव के विनाश की योजना उन्हें आज ही पूरी करनी थी।
बाहुबली अहिंसक उन अन्य डाकुओं के पास गया व समझाने की कोशिश की तो उल्टे उन डाकूओ ने इस पर हमला बोल दिया। बाहुबली डाकू ने कहा मेरे जीवित रहते तुम इस ग़ांव के असंख्य लोगों को, पशुओं को यूं जिंदा नहीं जला सकते। बाहुबली डाकू क्योंकि बहुत बलिष्ठ व युद्ध कला प्रवीण था, उन्ही के हथियारों से उसने उन चारों का गला काट दिया। शोर सुनकर गाँव वाले आ गए, उन्होंने डाकूओ को पहचान लिया व ग़ांव को जलने से बचाने के लिए बाहुबली युवक को धन्यवाद दिया।
मृतक डाकूओ की लाश व अपने हाथ मे पुनः रक्त देखकर बाहुबली अहिंसक व्यथित हो गया। उसने मन ही मन सोचा लगता है, इस जन्म में मेरा उद्धार असम्भव है, पिछले कत्ल के पाप धुले नहीं। अभी तक एक भी धाम के दर्शन हुए नहीं, समय बीत रहा है, और आज यह चार डाकू मेरे हाथों मारे गए। पुनः हत्या मैंने की। बड़े पश्चाताप व ग्लानि से रोते रोते वह कब सो गया उसे पता ही न चला। सुबह उसे अपने झोले से कुछ खुशबू आते हुए प्रतीत हुई। उसने झोला खोला तो उस सुखी लकड़ी में न सिर्फ हरे पत्ते थे, अपितु सुंदर महकते पुष्प भी थे।
हरीभरी डाली ने गुरु से पुनः मिलन का सन्देश जैसे उसे दे दिया हो, वह बिना कुछ खाये पिये बेसुध डाली लेकर सदगुरु से मिलने लौटा। कहाँ कदम पड़े व रास्ते में कितने गाँव पड़े उसे कुछ होश न रहा, कितने दिन व रात गुजरे उसे होश नहीं। वह पुनः उसी स्थान में पहुंचा जहां गुरु ने मिलने का वादा किया था। गुरु उसी वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थे, वह उनके चरणों मे गिर पड़ा व उसके अश्रुओं से गुरु के चरण भीग गए।
गुरु ने कहा, वत्स उठो! तुम्हारी गुरु दीक्षा का आज शुभ दिन है। गुरु की वाणी सुनकर मानो उसे होश आया हो। अरे उसे याद आया गुरु ने चार धाम की यात्रा कही थी, वह तो उसने किया ही नहीं। वापस चला आया।
उसने गुरुदेव से क्षमा मांगते हुए कहा, गुरुवर मैंने चार धाम यात्रा तो क्या एक धाम की यात्रा भी न कर सका। उल्टे मैंने चार डाकूओ की हत्या कर दी, पुनः पाप किया। लेक़िन सूखी डाली को सुबह जब हरीभरी व पुष्प युक्त देखा तो आपके दर्शन का सन्देश समझ इसे लिए यहां चला आया। मुझे क्षमा करें प्रभु! मैंने आपको वचन दिया था कि पुनः पाप व हत्या नहीं करूंगा। उसे मैंने तोड़ दिया।
गुरु मुस्कुराए और बोले, तुम तीर्थयात्रा करके ही आये हो पुत्र। तुमने जितनी हत्याएं की थी उससे अधिक लोगों का जीवन बचाया।
💫
*श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने कर्मयोग की परिभाषा देते हुए कहा है कि कर्म का कर्मफ़ल उस कर्म के पीछे के उद्देश्य व भावना पर निर्भर करती है।*💫
*पहले तुम्हारे द्वारा की गई हत्या का उद्देश्य व भावना दूषित थी, तुम आतंक फैलाकर स्वयं को ऐश्वर्य शाली बनाना चाहते थे। इसलिए इन कर्मो से तुम्हें पाप फल मिला।*
*लेकिन कल रात जो हत्या तुमने की उसके पीछे का उद्देश्य व भावना अत्यंत निर्मल व उत्तम थी। तुम्हारा उद्देश्य ग्रामीण लोगों, पशु व पक्षियों को जिंदा जलने से बचाना था। अतः यह डाकुओं की हत्या भी प्रभु का पूजन बन गयी। धर्म स्थापना व युगपीडा निवारण की वजह बन गयी। इसलिए इस कर्म का पुण्यफ़ल तुम्हे मिला।*
*पहले तुम्हारे प्रत्येक कर्म व श्रम स्वार्थकेन्द्रित व स्वार्थपूर्ति हेतू था। लेकिन पिछले दो महीने से तुम्हारा प्रत्येक कर्म व श्रम लोककल्याण के लिए हुआ। वह नदी से जल की नहर ग्राम तक लाना व लोगों का जलसंकट समाप्त करना कावंड़ लाकर शिवलिंग पर रूद्राभिषेक करने जैसा ही पुण्यफ़ल दायी था पुत्र।*
*लोगों को उनकी सुरक्षा स्वयं करने का प्रशिक्षण देना व ग़ांव के लिए सुरक्षा बाड़ा बनवाना एक महायज्ञ ही था पुत्र।*
यज्ञमय परोपकारी जीवन जीने के कारण व नित्य अपने गुरु के अनुसाशन में जीने व ध्यान में रमने के कारण समस्त तीर्थ तुम्हारे हृदय में स्वयं प्रकट हो गए।
*तुम्हारे निर्मल मन से किये पश्चाताप ने माता गंगा को तुम्हारे हृदय में प्रकट कर दिया पुत्र, तुम्हें गंगा स्नान का पुण्यफ़ल मिल गया। जल संकट दूर करने पर स्वयं शिव और वृक्षारोपण करने से स्वयं प्रकृति माँ पार्वती तुम्हारे हृदय में विराजमान हो गए। डाकूओ की हत्या कर ग्रामवासियों का जीवन बचाने से भगवान विष्णु स्वयं तुम्हारे हृदय में प्रकट हो गए।*
अब आओ तुम्हें गुरुदीक्षा देता हूँ, तुम अपने शुभकर्मों से यूँ ही जनसेवा करते रहना। ईश्वर की कृपा व मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ रहेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
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