Thursday 30 July 2020

ध्यान आनन्द का स्रोत है, यदि मन को आनन्द के स्रोत से वंचित रखोगे तो भूखा मन विक्षप्तता का शिकार होगा, जिसे नशा कहते हैं।

ध्यान आनन्द का स्रोत है, यदि मन को आनन्द के स्रोत से वंचित रखोगे तो भूखा मन विक्षप्तता का शिकार होगा, जिसे नशा कहते हैं।

*नाश* शब्द से उत्तपन्न हुआ है  *नशा* , मनुष्य का दिमाग़ रूपी पहले ही बहुत कॉम्प्लिकेटेड सिस्टम है। इसका सॉफ्टवेयर मन उससे भी अधिक कॉम्प्लिकेटेड है। इसमें चलने वाले विचार वह भी बड़े विचित्र हैं, ओर छोर पता नहीं, साधारण मनुष्यों को इन विचारों को नियंत्रित करना आता नहीं।

जिन लोगों को बचपन से योग, ध्यान, प्राणायाम व स्वाध्याय द्वारा इसे नियंत्रित, सम्हालने व चलाने की योग्यता नहीं सिखाई गयी होती। तो यह मन रूपी कॉम्प्लिकेटेड सिस्टम उनसे हैंडल नहीं होता। मनुष्य किसी भी हालत में कुछ क्षण मन की बक बक से छुटकारा चाहता है, मन को आराम देना चाहता है। अस्थिर मन की वास्तविकता से भागना चाहता है। ऐसे अस्थिर मन वाले लोग नशा माफ़िया के जाल की मछली हैं।

नशा व्यापारी अस्थिर मन को स्थिर करने का भ्रम जाल - अर्ध बेहोशी - मदहोशी हेतु नशे की लत  का आदी इन्हें बना देते हैं। जब तक नशे की दवा से अर्ध बेहोशी होती है, इंसान वस्तुतः क्षणिक रिलीफ़ महसूस करता है। जैसे ही होश में आता है वर्तमान से घबराकर पुनः मन को बेहोश करने की फिराक में रहता है, पुनः नशा करता है। मग़र जबरजस्ती बार बार मन को बेहोश करने के कारण मन क्षतिग्रस्त हो जाता है, जो मन शरीर के हार्मोन्स व अंतरंग संचालन का कार्य कुशलता से पहले करता था, वह नशे के कारण बाधित होता है, धीरे धीरे लगातार नशीले द्रव्य से अंदर ही अंदर मनुष्य धीमी मौत मरने लगता है। मनुष्य के अस्तित्व का नाश करने में नशा सफल होता है।

मन को आनन्द व आराम चाहिए, यदि यह आनन्द व आराम मन को ध्यान स्वाध्याय से पर्याप्त दे दो, वह उत्साह उमंग व चैतन्यता में रहता है, मन शांत भी रहता है। आनन्द में भी रमता है। स्वास्थ्य भी बढ़ता है।

मन को आनन्दित रखने की विधि ध्यान व स्वाध्याय अपना लो, तो नशे की कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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