Tuesday, 28 July 2020

गृहस्थ एक तपोवन है*, जो तपने को तैयार हो उसे ही सन्तान सुख लेने का अधिकार है

गृहस्थ एक तपोवन है*, जो तपने को तैयार हो उसे ही सन्तान सुख लेने का अधिकार है..

नई पीढ़ी में अधिकांश युवा प्रेम भाव से वंचित होते जा रहे है, भावनात्मक आदान-प्रदान की जगह गिफ्ट के लेन-देन प्रेम समझ बैठी है, स्वयं के सुख के लिए प्रेम कर रही है। प्रेम के मूल जड़ समर्पण व त्याग को भूल गयी है, केवल जहां स्वार्थ सधता है वहीं प्रेम का ढोंग कर रही है। तराजू लेकर प्रेम कर रहे हैं, जहाँ सौदा जम रहा है वही प्रेम का ढोंग हो रहा है। प्रेम का बन्धन व जिम्मेदारी स्वीकार्य नहीं है, बस मनमानी करने की जहां खुली छूट हो वह लिव इन रिलेशनशिप अपना रहे हैं। यह परिवार व्यवस्था को तोड़ रहे हैं, यह भूल गए हैं कि उन बच्चों की परवरिश का क्या होगा जो ऐसे टूटे बिखरे व्यापारी रिश्तों से जन्मेंगे। ऐसे रिश्ते से जन्मे बच्चे या तो कोख में ही मर्डर कर दिए जाएंगे, या अनाथालय में डाल दिये जायेंगे, या ऐसे बच्चों की परवरिश व उनके जीवन का भटकाव को कोई एकल माता या पिता टेंशन में झेलेगा। समाज उन्हें नाज़ायज की संज्ञा देगा। उन्हें अपमानित जीवन ताउम्र जीना पड़ेगा।

मेरी एक सलाह ऐसे युवाओं से है, अपने प्रेम व्यापार और मनमानी स्वतंत्रता की पाश्चात्य सोच की बलि अपनी संतानों को न चढ़ाएं। परिवार नियोजन करके मनमानी करें, जिससे आपकी भूल का खामियाजा समाज को या अन्य किसी को न उठाना पड़े।

*गृहस्थ एक तपोवन है*, जो तपने को तैयार हो उसे ही सन्तान सुख लेने का अधिकार है। बच्चे को माता - पिता दोनो का साथ चाहिए।

💐श्वेता, Diya

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