तुम यदि ठान लो कि जीवनसाथी से युद्ध नहीं करोगे, तो युद्ध न होगा। बस मन की तैयारी इस प्रकार कर लो:-
1- मेरा जीवनसाथी ऐसा ही है, इसे मैं जैसा है वैसा ही स्वीकारती/स्वीकारता हूँ। मैं कभी भी मन में यह प्रश्न न उठने दूंगी/दूंगा कि यह ऐसा क्यों? यह गुलाब है तो भी स्वीकार्य है और यदि यह कांटा है तो भी स्वीकार्य है। मैं यह कभी नहीं कहूंगा/कहूंगी कि क्या मेरे मन मुताबिक यह सुधर नहीं सकता? जब मेरा मन ही मेरे वश में नहीं, फिर मैं अपने जीवनसाथी के मन को वश में करने की कुचेष्टा क्यों करूँ? इससे अच्छा यह न होगा कि स्वयं के मन को साधने में जुट जाऊँ और उसे स्थिर कर लूं। निज वश में कर लूं।
2- जीवनसाथी मेरे लिए जो कर दे, उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद। यह जो मेरे लिए न करे, उसके लिए भी ईश्वर को धन्यवाद। यह इंसान है, रोबोट नहीं है। अतः इसका रिमोट कंट्रोल ढूंढने में समय व्यर्थ नहीं करूंगा/करूंगी।
3- ईश्वर तुम कण कण में हो। मुझमें भी हो और मेरे जीवनसाथी में भी हो। तुम तो पत्थर की मूर्ति में भी पूजन से जीवंत हो जाते हो। मैं आपका आह्वाहन इस जीवंत प्रतिमा मेरे जीवनसाथी में करता/करती हूँ। मुझे शक्ति व सामर्थ्य दें कि जीवनसाथी के रूप में आपका सान्निध्य व सेवा को प्राप्त कर सकूँ। मेरे जीवन साथी के भीतर विद्यमान उस पर ब्रह्म को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
No comments:
Post a Comment