*देवासुर संग्राम क्यों? किसी के घर में शांति तो किसी के घर मे अशांति क्यों?*
आज ध्यान की गहराईयों में देवासुर संग्राम के विषय में चिंतन उभरा, विचार आया कि क्या विधाता ने असुरों के साथ अन्याय किया? देवो को स्वर्ग और असुरों को नर्क दिया?
फिर गहराई से चिंतन किया तो एक पौराणिक घटना का स्मरण हो आया। दानव(असुर) यह शिकायत लेकर ब्रह्मा जी के पास गए कि एक ही पिता कश्यप ऋषि की सन्तान देवता(सुर) व दानव(असुर) दोनों है। फिर एक को स्वर्ग व दूसरे को नरक क्यों? ब्रह्मा ने कहा - आप देव व दानवो को भोज पर आमंत्रित किया जाता है। वहीं इसका उत्तर मिलेगा।
भोज में देव व दानव दोनो समूह आ गए, दोनों को दो अलग कमरों में भोजन हेतु बिठाया गया। भोजन की साधारण सी शर्त थी कि हाथ की कुहनी नहीं मुड़ सकती।
देवता मुस्कुराए वह समझ गए कि बिना कुहनी मोड़े स्वयं को नहीं खिलाया जा सकता है लेकिन दूसरे को खिलाना सम्भव है व एक दूसरे को खिलाकर पेट भर लिया। कोई गंदगी न फैली और अन्न का एक दाना भी फर्श पर न फैला।
देवता अर्थात जो दूसरे को देने का भाव रखता हो, जो देने में खुशी महसूस करता हो।
दानव जिनके भीतर कभी दूसरे को देने का भाव ही नहीं है, जो केवल स्वयं की संतुष्टि के अतिरिक्त कुछ सोचते नहीं। भला उनके दिमाग मे दूसरे को भोजन कराने का चिन्तन किस कदर उभरता। हाथ ऊपर कर कर स्वयं के मुख में भोजन डालने की कुचेष्टा करते कुछ मुंह मे और कुछ बाहर गिरता। इस तरह सबके कपड़े खराब हो गए, मुंह मलिन हो गया। आसपास गंदगी फैल गयी।
तब ब्रह्मा ने दोनों पार्टियों को एक दूसरे के कमरों को देखने के लिए बीच में लगा पर्दा हटा दिया। वस्तुतः वह दो अलग कमरे नहीं थे एक कमरे के दो भाग थे। देवताओ के कमरे वाला भाग पूर्ववत सुंदर व व्यवस्थित था। वह सलीके से कतारबद्ध बैठे थे। सब भोजन ख़ाकर तृप्त थे। वहीं दानवों वाले कमरे का हिस्सा अस्तव्यस्त हो गया था। सबके मुंह मलिन थे, पेट नहीं भरा था। सर्वत्र अन्न बिखरा पड़ा था।
तब ब्रह्मा ने कहा - इस कमरे की तरह हमने तुम दोनों समूहों को एक जैसा संसार दिया था। देवताओं की परमार्थ में देने की प्रवृत्ति व प्रेम-सहयोग की मनोवृत्ति ने उस स्थान को स्वर्ग सा सुंदर बना दिया। तुम दानवों की आसुरी स्वार्थ में मात्र स्वयं लेने की प्रवृत्ति व दुसरो को सहयोग न करने की मनोवृत्ति ने उस स्थान को नर्क सा विभत्स बना दिया।
यही प्रत्येक परिवार व समाज का हाल है। जिस घर मे देवताओ की मनोवृत्ति के लोग रहते हैं वह परिवार स्वर्ग सा सुंदर व व्यवस्थित रहता है, वहां सुख-शांति का निवास होता है। वहां का समाज शोभनीय व प्रेम-सहकार से भरा होता है।
जिस घर मे दानवों की मनोवृत्ति के लोग रहते हैं वह परिवार नर्क सा विभत्स व अस्त-व्यस्त रहता है, वहाँ दुःख व अशांति का वास होता है। वहां का समाज अशोभनीय व हिंसा से भरा होता है।
युगऋषि कहते हैं - परिवार धरती का स्वर्ग है तब जब वहां देवताओं की मनोवृत्ति के लोगो का वास हो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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