जो अपने पास है, लोग अक्सर उसे भूल जाते हैं, जो नहीं है, उसके लिए बेचैन रहते हैं। उसके बारे में सोच-सोचकर परेशान रहते हैं। कुछ लोग जब भी कुछ सोचते हैं, तो सोचने के नाम पर सिर्फ चिंता करते हैं। कुछ की सोच किसी ईर्ष्या की मंजिल पर जाकर खत्म होती है। सोचना जरूरी है, पर जरूरी नहीं कि हर तरह की सोच आपको सकारात्मक दिशा में ले जाए। तो फिर कैसे सोचा जाए? मनोवैज्ञानिक शोधकर्ता बारबरा फ्रेडरिक का मानना है कि सोचना एक कला है। उन्होंने सकारात्मक सोच और उसके प्रभाव पर लंबा शोध किया है। यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलीना में किए गए इस शोध के दौरान उन्होंने पाया कि जब कोई अच्छी तस्वीर या फिल्म देखता है, तब उसके दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उस समय वह अपने मन में खुशी और संतुष्टि का अनुभव करता है। ऐसे में, व्यक्ति जिंदगी में संभावनाओं का वैकल्पिक संसार देखता है और उस समय उसकी कार्यक्षमता और कार्य-कुशलता, दोनों खुद-ब-खुद बढ़ जाते हैं। बारबरा फे्रडरिक के अनुसार, अपनी सकारात्मक ऊर्जा को अगर आप बढ़ाना चाहते हैं, तो रोज तयशुदा समय पर नियमित रूप से ध्यान करें या कुछ रचनात्मक लेखन कार्य करें या फिर कोई गेम खेलें। अगर आप अपने चिंतन में लचीलापन, संतुलन, सहजता, आशावादिता रखते हैं, तो आपकी सोच सकारात्मक होगी। आग्रह, आवेश या उपेक्षा वाला चिंतन मन में नकारात्मक भाव पैदा करता है। सकारात्मक सोच आपके दिमाग को समाधान और नकारात्मक सोच समस्या के रास्ते पर ले जाती है। यह आप खुद तय कर सकते हैं कि आप किस राह पर जाना चाहते हैं? इस बारे में रस्किन का कहना है कि आप किसी इंसान से मिलें, तो उसकी विशेषताओं, सद्गुणों का अनुकरण करने की कोशिश कीजिए। इससे आपके दोष अपने आप दूर होते जाएंगे, जैसे पेड़ के सूखे पत्ते अपने आप झड़ जाते हैं।
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