@ अहंकार @
आहंकार एक खुला घाव है, जो मन में होता है। जब कोई प्रसंशा करता है तब जैसे घाव में खुजली करने जैसा सुख मिलता है। जब कोई अपमान करता है, तब जैसे घाव को किसी ने छू दिया हो वैसा दर्द करता है।
घाव को खुजलाने से घाव और बढ़ता है, घाव को सहलाने से वह ठीक भी नहीं होता।
अहंकार का घाव हमें उस विराट अस्तित्व(परब्रह्म) और सामूहिक चेतना(collective consciousness) से अलग कर देता है। ऐसी परिस्थिति में अहंकार के घाव से ग्रसित व्यक्ति आत्मीयता को न अनुभव कर सकता है और न ही विस्तारित कर पाता है। अलग थलग पड़ने लगता है।
दूसरे का मुँह है, वह अपने मुँह से प्रसंशा करे या अपमान इससे हमें क्या लेना देना? यह हम तभी सोच सकेंगे जब हम अहंकार मुक्त होंगे। मुँह उसका, शब्द उसके, मर्ज़ी उसकी जो करे सो करे। हमें तो प्रशंशा व अपमान दोनों को महत्त्व नहीं देना चाहिए। हमें तो ईश्वरीय अनुशासन में रहते हुए कर्तव्य पालन करना चाहिए। अहंकार का घाव बहुत दर्द देता है, जब यह नासूर बन जाता है तब रावण व दुर्योधन की तरह इंसान को अहंकारी बना देता है, ऐसी परिस्थिति में विधाता राम या कृष्ण रूप में समक्ष खड़े हो तो भी उसे पहचान नहीं पाता। स्वयं का विनाश अहंकारी पुरुष करके ही दम लेता है।
💐श्वेता, DIYA
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