भगवान से शिकायत क्यों?
व्यथित पुत्र तनावग्रस्त बैठा था, शाम की आरती माँ करके प्रज्ज्वलित दिया लेके उसकी की पवित्रता को पूरे कमरों में जा कर फैला रही थी। बेटे ने झल्लाते हुए कहा, क्या फ़ायदा आपकी पूजा का जो मुझे जॉब भी नहीं दिलवा सकती। कितने इंटरव्यू दिए किसी में भी सेलेक्ट नहीं हुआ...पुत्र बड़बड़ाता रहा। माता ने पूजन पूरा कर दो कप चाय बनाकर लाई, बेटे को चाय थमाते हुए बोली..
बेटे जानते हो, ईश्वर कभी पक्षपात नहीं करता। जंगल में नित्य शेर व हिरण दोनों जागते हैं। दोनों को रोज़ सुबह दौड़ना पड़ता है, शेर तेज़ दौड़ा तो उसको भोजन हेतु हिरण का शिकार मिलेगा। हिरण तेज दौड़ा तो उसकी जान बचेगी। हिरण के झुण्ड में सभी हिरण शेर को देखकर दौड़ते हैं, जो हिरण सभी हिरणों से पिछड़ता है वह शेर का भोजन बनता है।
तुम्हारी जॉब की तैयारी स्वयं जैसे हिरणों के झुंड से है, यदि अपने साथियों से तेज़ दौड़ोगे, उनसे बेहतर बनोगे, जिस फील्ड में जॉब लेने जा रहे हो उसके ज्ञान में उत्तम बनोगे तो जॉब अवश्य मिलेगी।
हड़प्पा युग/पाषाण युग की चिड़िया व वर्तमान युग की चिड़िया के घोसले व जीवन में कोई परिवर्तन न हुआ। हड़प्पा युग/पाषाण युग से वर्तमान कम्प्यूटर युग तक इंसान के जीवन में आमूल चूल परिवर्तन हो गया। यह किसने किया भगवान ने? नहीं न.. भगवान ने मनुष्य को बुद्धि दी, मनुष्य ने उस बुद्धि का प्रयोग करके अपना सांसारिक जीवनक्रम व सिस्टम बनाया। क्या भगवान ने तुम्हें बुद्धि नहीं दी? क्या पशुवत मूर्ख जड़बुद्धि बनाया है? यदि नहीं तो फिर भगवान से तुम्हारी नाराजगी उचित नहीं है।
भगवान से बुद्धि मांगो, कार्यकुशलता मांगो और तीक्ष्ण दृष्टि मांगों। धैर्यपूर्वक स्वयं को चुनौतियों के लिए तैयार करो।
भगवान कृष्ण ने अर्जुन से यह नहीं कहा, कि तुम मेरा नाम जपो, तुम्हारे लिए युद्ध मैं लड़ लूंगा। अपितु उन्होंने कहा कि यह तुम्हारा युद्ध है, इसे तुम्हें ही लड़ना होगा। हाँ मैं तुम्हारा सहयोग व मार्गदर्शन अवश्य करूँगा। सभी जानते हैं कि बिना कृष्ण की सहायता के अर्जुन युद्ध नहीं जीत सकता था। अजेय योद्धा भीष्म, कर्ण, द्रोणाचार्य, जयद्रथ इत्यादि बिना कृष्ण की सहायता के नहीं जीते जा सकते थे। लेकिन यह भी सत्य है कृष्ण ने महाभारत में हथियार नहीं उठाया था।
तुम भगवान की जप-ध्यान-पूजा करो या न करो इससे भगवान को कोई फर्क नहीं पड़ता। लेक़िन तुम्हारे जीवन में जप-ध्यान-पूजा करने से फ़र्क अवश्य पड़ेगा, न करने से नुकसान अवश्य होगा।
कृष्ण को अर्जुन की जरूरत नहीं सृष्टि चलाने के लिए, लेकिन अर्जुन को जरूरत है कृष्ण की युद्ध जिताने के लिए...
बेटा, अर्जुन बनो व नित्य गायत्री मंत्र जप, ध्यान व श्रीमद्भागवत गीता का स्वाध्याय करो। स्वयं को श्रेष्ठ बनाने में जुट जाओ। जगतगुरु श्रीकृष्ण का आह्वाहन अपने बुद्धिरथ पर करो और उन्हें अपना मित्र व सारथी बना लो। कुछ समझे जो मैं समझा रही हूँ...
पुत्र समझ गया था, वह शांत स्वर में अपनी उद्दंडता के लिए व उच्च स्वर में माता के ऊपर झल्लाने के लिए क्षमा मांगने लगा। माता ने प्यार से पुत्र के सर पर हाथ फेरा और उसकी सद्बुद्धि के लिए माता गायत्री से मन ही मन प्रार्थना की।
💐श्वेता चक्रवर्ती,
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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