जंगल हो या वर्तमान समाज सभी जगह एक बात कॉमन है कि स्वयं के अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
सुबह जंगल में शेर भी उठता है और हिरण भी, दौड़ना दोनों को पड़ता है, शेर तेज़ दौड़ा तो भोजन मिलेगा। हिरन तेज दौड़ा तो जान बचेगा। जो हिरण अन्य हिरणों से दौड़ में पीछे रह जाता है, वह ही शेर का भोजन बनता है।
भगवान भोजन सबको देता है, लेकिन उसे सभी को प्रयत्न करके पाना होता है। चिड़िया हो घोसले में और शेर को उसकी मांद में होम डिलीवरी नहीं मिलती। प्रयत्न पुरुषार्थ सभी को भोजन हेतु करना पड़ेगा।
दो वक़्त की रोटी उन्ही को नहीं मिल पा रही जो सही दिशा में सही प्रयत्न आर्थिक उपार्जन हेतु नहीं कर पा रहे हैं। दिन ब दिन जनसंख्या का दबाव बढ़ रहा है और संसाधन घट रहें है, अतः भोजन के लिए संघर्ष मानवजाति को झेलना पड़ेगा।
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