दु:स्वप्न - बुरे स्वप्न से भयभीत न हों और सुबह उठकर निम्नलिखित "अथर्ववेद के दु:स्वप्ननाशन मन्त्र" पढ़ लें। सब शुभ होगा।
अथर्वेद, काण्ड 7, सूक्त 105, दु:स्वप्ननाशन सूक्त(100), मन्त्र संख्या क्रमांक 1996
पर्यावर्ते दु:स्वप्नयात् पापात् स्वप्न्याद भूत्या:।
ब्रह्माहमन्तर कृण्वे परा स्वप्नमुखा: शुच:।।
अर्थ - हम वेदों व परमात्मा की शरण में है, इनकी कृपा से हम दु:स्वप्न से होने वाले पाप के प्रभाव से मुक्त होते हैं। हम ज्ञान की मध्यस्थता द्वारा स्वप्न से उपजे शोक और पाप से मुक्त होते हैं।
पांच बार गायत्री मंत्र जपें :-
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
मन ही मन दोहराएं - मैं माता गायत्री की सन्तान हूँ, मुझे गुरु व गायत्री माता का संरक्षण प्राप्त है। आज मेरा दिन शुभ व मङ्गलमय होगा। मेरा स्वास्थ्य उत्तम होगा। मेरी बुद्धि तीव्र गति से चलेगी व सही दिशा में चलेगी। मेरा हृदय पवित्र बन गया है।
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