Sunday 29 November 2020

प्रश्न - गुरु व शिष्य में क्या अंतर है, शिक्षक व शिक्षार्थी में क्या अंतर है?

 प्रश्न - गुरु व शिष्य में क्या अंतर है, शिक्षक व शिक्षार्थी में क्या अंतर है?


शिक्षक - सम्बंधित विषय का ज्ञान देने वाला होता है और शिक्षार्थी मूल्य चुकाकर(फीस देकर) उस विषय का ज्ञान लेने वाला होता है।

शिक्षक केवल विषय का मार्गदर्शन करता है, गुरु विद्यार्थी को विषय के साथ साथ उसके जीवन हेतु भी मार्गदर्शन करता है।

शिक्षक विद्यार्थी लेन देन पर आधारित हैं, फीस नहीं तो शिक्षा नहीं। उन्हें धन जोड़ता है। गुरु व विद्यार्थी प्रेम व समर्पण से जुड़ते है, गुरु दक्षिणा शिष्य स्व रुचि से देता है।

जीवात्मा को मायाजाल व अज्ञानता के अन्धकार से निकालने वाला व्यक्ति गुरु कहलाता है । गु का अर्थ अंधकार होता है और रू का अर्थ होता है -मिटाना या निवारण करना। इस तरह अंधकार मिटाने वाला गुरू कहलाता है।

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट ।

अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट ।।

गुरु कुम्हार है, और शिष्य घड़ा है; गुरु भीतर से हाथ का सहारा देकर और बाहर से चोट मार मार कर तथा गढ़-गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकालते हैं।

जिस तरह से कुम्हार अनगढ मिट्टी को तराशकर उसे सुंदर घडे की शक्ल दे देता है, उसी तरह गुरु भी अपने शिष्य को हर तरह का ज्ञान देकर उसे विद्वान और सम्मानीय बनाता है। हां, ऐसा करते हुए गुरु अपने शिष्यों के साथ कभी-कभी कडाई से भी पेश आ सकता है, लेकिन जैसे एक कुम्हार घडा बनाते समय मिट्टी को कडे हाथों से गूंथना जरूरी समझता है, ठीक वैसे ही गुरु को भी ऐसा करना पडता है। वैसे, यदि आपने किसी कुम्हार को घडा बनाते समय ध्यान से देखा होगा, तो यह जरूर गौर किया होगा कि वह बाहर से उसे थपथपाता जरूर है, लेकिन भीतर से उसे बहुत प्यार से सहारा भी देता है।

गुरु से ज्ञान प्राप्त होता है। आजकल भारत में सांसारिक अथवा पारमार्थिक ज्ञान देने वाले व्यक्ति को गुरु कहा जाता है। इनकी पांच श्रेणिया हैं।

१.शिक्षक - जो स्कूलों में शिक्षा देता है।

२.आचार्य - जो अपने आचरण से शिक्षा देता है। 

३.कुलगुरु - जो वर्णाश्रम धर्म के अनुसार संस्कार ज्ञान देता है। 

४.दीक्षा गुरु - जो परम्परा का अनुसरण करते हुए अपने गुरु के आदेश पर आध्यात्मिक उन्नति के लिए मंत्र दीक्षा देते हैं।

५. सदगुरु -वास्तव में यह शब्द समर्थ गुरु अथवा परम गुरु के लिए आया है। जो शिष्य को बलपूर्वक सन्मार्ग पर ले जाता है और उसकी आत्म उन्नति सुनिश्चित करता है।

गुरु का अर्थ है भारी, ज्ञान सभी से भारी है अर्थात महान है अतः पूर्ण ज्ञानी चेतन्य रूप पुरुष के लिए गुरु शब्द प्रयुक्त होता है, उसकी ही स्तुति की जाती है।

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