प्रेम विवाह
एक जोड़ा प्रेम विवाह करने से पूर्व सन्त से आशीर्वाद लेने पहुंचा।
सन्त ने दोनो को अलग अलग मिलने को बुलाया।
पहले लड़का आया-
सन्त - तुम यह बताओ कि इसी लड़की से तुम विवाह क्यों करना चाहते हो?
लड़का - यह बहुत सुंदर है व अत्यंत मनमोहक है, मुझे पसन्द है, यह मुझे खुश रखेगी। इसलिए इससे शादी करना चाहता हूँ।
बाद में लड़की आयी-
सन्त - तुम बताओ कि इसी लड़के से तुम शादी क्यों करना चाहती हो?
लड़की - यह स्मार्ट है, व बड़ी कॉरपोरेट फर्म में अच्छी पोजिशन में जॉब करता है, घर गाड़ी युक्त आर्थिक सम्पन्न है। यह मुझे पसन्द है। यह मुझे खुश रखेगा। इसलिए मैं इससे शादी करना चाहती हूँ।
सन्त ने फिर दोनो को साथ बुलाया और कहा - बेटे सांसारिक रूप हो या सांसारिक कमाई अस्थिर है। बढ़ती उम्र व बीमारी रूप छीन सकती है। आर्थिक मंदी व मार्किट का अप डाउन में जॉब चली जा सकती है। तुम दोनो स्वयं के सुख के लिए व निज इच्छाओं की पूर्ति के लिए एक दूसरे से शादी कर रहे हो, जब तक एक दूसरे से इच्छा पूर्ति होती रहेगी रिश्ता चलेगा। कोई एक भी दूसरे की इच्छा पूर्ति में कम पड़ा तो रिश्ता टूटकर बिखर जाएगा।
प्रेम वह नहीं जिसमें स्वयं की खुशियों को वरीयता दी जाए। प्रेम वह है जिसमे दूसरे की खुशियों के लिए स्वयं को भी बलिदान कर दिया जाय। दो लोग अपने अपने स्वार्थ लेकर प्रेम विवाह करने जाओगे तो तेल व पानी सा रिश्ता होगा, साथ रहकर भी कभी एक होने का अनुभव न कर सकोगे। जब स्वयं को भूलकर एक दूसरे की खुशियों के लिए जियोगे तब पानी व दूध की तरह एक हो जाओगे। तभी प्रेम विवाह सफल होगा।
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