Monday, 22 February 2021

धर्म के नाम पर जीव हत्या बन्द करो

 "धर्म के नाम पर जीव हत्या बन्द करो"


मैं नहीं कहती कि,

तुम अपना धर्म व पूजन पद्धति बदल दो,

बस इतना अनुरोध है कि,

धर्म के नाम पर अंधानुकरण छोड़ दो।


स्वर्ग बोलो या जन्नत,

इसका कोई शॉर्टकट नहीं है,

किसी को मारकर,

कोई ईबादत पूरी होती नहीं है,

किसी निरीह जीव की बलि से,

देवशक्तियाँ प्रशन्न नहीं होती,

कलमा पढ़कर बकरा हलाल करने पर,

न बकरे को जन्नत मिलती है,

न उसे मारकर खाने वाले को जन्नत मिलती है।


कोई देवी देवता बलि नहीं माँगते हैं,

किसी भी आसमानी क़िताब में,

किसी जीव हत्या को सही नहीं ठहराया है।


ईश्वर बोलो या अल्लाह,

जब उसको सर्वशक्तिमान मानते हो,

यदि वह पशु पक्षी को,

अलग अलग प्रजाति में बना सकता है,

यदि वह धर्म सम्प्रदाय बनाता,

तो सब धर्म के लोगों को अलग बना देता,

कोई विशेष चिन्ह उन्हें जन्मजात देता।


विभिन्न मनुष्यो ने,

विभिन्न पूजा पद्धति व संस्कृति बनाई,

उसे एक धर्म सम्प्रदाय का नाम दे दिया,

उसके लिए कुछ धार्मिक नियम कानून बना दिये,

उसको पालन करके स्वर्ग-जन्नत जाने के विधान बता दिए।


ये तो कुछ ऐसा हुआ,

मानो एक लक्ष्य तक पहुंचने के लिए,

सब अपने अपने वाहन व मार्ग का प्रचार कर रहे हो।


सूर्य, चन्द्र, तारे, आकाश, जल और हवा,

सबके लिए एक से हैं,

मनुष्य का रक्त लाल,

हाथ पैर मुंह दिमाग़ सबके हैं।


थोड़ा दिमाग़ लगाओ,

और स्वयं से प्रश्न करो,

क्या धर्म के नाम पर डरना उचित है?

क्या नर्क-दोखज का भय उचित है?

क्या मरकर स्वर्ग-जन्नत पाने की लालच उचित है?

क्या धर्म के नाम पर अंधानुकरण उचित है?


क्या उस सर्वशक्तिमान ईश्वर - अल्लाह - गॉड को,

प्रेम से नहीं पाया जा सकता,

क्या जीवित रहते ही आसपास,

स्वर्ग - जन्नत - हैवन नहीं बनाया जा सकता?

जो भीतर है उसे बाहर मन्दिर-मस्ज़िद-चर्च में ढूढने की ज़िद क्यों है?

नेत्र बन्द कर उसे अनुभव करने की पहल क्यों नहीं है?


जिसे मानते हो उसे ही पूजो,

जिस धर्म मे हो उसी में रहो,

मग़र कोई तुम्हें धर्म के नाम पर बेवकूफ न बना सके,

इसके लिए थोड़ा चैतन्य व जागरूक रहो।


~ स्वरचित - श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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