Sunday, 28 February 2021

प्रश्न - युगऋषि ने निराकार गायत्री साधना की जगह साकार गायत्री के मातृत्व रूप के ध्यान व जप को अधिक महत्त्व क्यों दिया?

 प्रश्न - युगऋषि ने निराकार गायत्री साधना की जगह साकार गायत्री के मातृत्व रूप के ध्यान व जप को अधिक महत्त्व क्यों दिया?


उत्तर- यह विज्ञान सिद्ध कर चुका है कि मनुष्य का दिमाग़ चित्र को जल्दी रजिस्टर करता है और मेमोरी में अधिक देर तक स्टोर रखता है। चित्र से भाव जल्दी उत्तपन्न होता है और जुड़ाव अधिक होता है। इसलिए बच्चों  को "A for apple" और "अ से अनार" चित्र के माध्यम से ही याद कराया जाता है।


ध्यान में मानसिक तरंगों व भावनाओं से किसी चित्र(Image) से जुड़ाव (attach) करना आसान होता है। परम पूज्य गुरुदेव "युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी" एक वैज्ञानिक थे व मन की प्रोग्रामिंग करने की आसान विधि जानते थे।


इसलिए प्रारंभिक व मध्य स्तर के साधक को उन्होंने "माता गायत्री" की मातृत्व स्वरूप के रूप ध्यान के साथ जप, पूजा अर्चना करने को प्रेरित किया। माता से अधिक बच्चे को और कौन प्रेम कर सकता है? मातृत्व के वात्सल्य में साधक का शिशु रूप में भाव सागर में डूबना आसान होता है। माता सा जुड़ाव आसान होता है व चेतना इस रूप ध्यान से परिष्कृत व परिपक्व होते हुए उच्चतम अवस्था तक पहुंच जाती है।


गायत्री की साकार साधना निराकार साधना से शीघ्र फलवती होती है, क्योंकि निराकार के ध्यान में मानसिक तरंगों व भावों से उससे जुड़ाव आसान नहीं होता।


जो कण कण में है व माता की प्रतिमा में भी तो होगा। प्रेम की अभिव्यक्ति तो भावों से ही होती है, लेकिन गुलाब का पुष्प उस प्रेम की अभिव्यक्ति में सहायक बनता है। इसी तरह उस निराकार परमात्मा की साकार मातृत्व रूप में आराधना आसान है व शीघ्र फलवती है।


नेत्र बन्द कर उसकी पूजा अर्चना को भावनात्मक कीजिये, माता के साथ को अनुभव कीजिये। माता के स्पर्श को अनुभव कीजिये। प्रत्येक गायत्री मंत्र को पुष्प की तरह माता के चरणों मे अर्पित करने का भाव करते चलिए।


स्वयं के मन की आध्यात्मिक प्रोग्रामिंग इस तरह कीजिये कि बस नेत्र बन्द करें कि माता के दर्शन व उनके संग की अनुभूति होने लग जाय।


एक बूँद जल से तालाब नहीं भरता, वैसे ही एक दिन के प्रयास से ध्यान घटित नहीं होगा। निरंतर गिरती अनगिनत बूंदे तालाब भरने में सक्षम है, ऐसे ही निरंतर नित्य अभ्यास से ध्यान अवश्य घटित होगा।


करत करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान।

रसरी आवत जात ही, सल पर पड़त निशान।।


जिस प्रकार दूध में जामन डालकर उसे स्थिर छोड़ देते हैं व कुछ घण्टो में दही जम जाती है। वैसे ही मन में माता  गायत्री के मातृत्व रूप के ध्यान का जामन डाल के शरीर व मन को स्थिर छोड़ दीजिए। ध्यान अवश्य घटित होगा। 


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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