Sunday, 7 March 2021

कविता - मैं अंतर्मन हूँ

 *मैं अंतर्मन हूँ*


मैं अंतर्मन हूँ,

तुझसे पूँछता हूँ,

तू मुझे क्यों सुनता नहीं?

तू मेरी कही क्यों करता नहीं?


जब जब मैं तुझे धिक्कारता हूँ,

तेरी मक्कारी तुझे याद दिलाता हूँ,

तू मेरी परवाह करता नहीं,

जब तू मुझे सुनता नहीं,

तब तब तू अशांत रहता है,

बेचैन अतृप्त रहता है।


जब तू मेरी उपेक्षा करता है,

मुझे अनसुना करता है, 

तब धीरे धीरे मैं,

मौन होने लगता हूँ,

आवाज़ देना भी,

बन्द कर देता हूँ।


तू शनै: शनैः पशु बनता है,

पशु से पिशाच बनने की ओर बढ़ता है,

मैं मूक दर्शक बन देखता हूँ,

बस तेरे कर्मों का हिसाब रखता हूँ,

मृत्यु के बाद यम के समक्ष,

अपनी फरियाद सुनाता हूँ,

तेरे दण्ड का फिर साक्षी बनता हूँ,

मौन हो सब देखता हूँ।


💐💐💐💐💐💐

मैं अंतर्मन हूँ,

बहुत ख़ुश होता हूँ,

जब तू मेरी सुनता है,

मेरी कही करता है।


जब जब मैं तुझे शाबासी देता हूँ,

तेरे पुण्य कर्मो की याद दिलाता हूँ,

जब जब तू मेरी परवाह करता,

तब तब मैं तेरे अंदर सुकून भरता हूँ।


जब तू मुझे सुनता है,

मेरी कही करता है,

तब धीरे धीरे मैं,

और ज़्यादा मुखरित होने लगता हूँ,

तेरा मार्गदर्शक बनने में,

गौरव अनुभव करता हूँ।


तू शनै: शनैः महा मानव बनता है,

महामानव से देवमानव बनने की ओर बढ़ता है,

मैं तेरा मार्गदर्शन करता हूँ,

तेरे शुभ कर्मों का हिसाब रखता हूँ,

मृत्यु के बाद यम के समक्ष,

तेरे लिए तेरे पक्ष में दलील करता हूँ,

तेरे पुरस्कार का फिर साक्षी बनता हूँ,

तेरा अंतर्मन बनने का गौरव अनुभव करता हूँ।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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