परिवार में भी सम्हल कर रहो
कॉलेज से पढ़कर आये,
सोचा बहुत ज्ञानी बन गए,
जब जॉब मिली तो,
सोचा महाज्ञानी बन गए।
परिवार को देना शुरू किया,
अपना पढ़ा हुआ ज्ञान,
दो की लड़ाई झगड़ो के बीच,
बेवज़ह दिया महा ज्ञान।
घमण्डी हो गए घोषित,
हुए ढेर सारे झगड़े,
कोई घर में न सुधरा,
हमारे ज्ञान का बन गया कचरा।
समेट के अपने किताबी ज्ञान का कचरा,
बैठे थे उदास लटकाए अपना चेहरा,
तब एक गायत्री परिजन ने समझी मेरी व्यथा,
दी पढ़ने को पुस्तक - अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा।
पुस्तक पढ़कर एक बात समझ आयी,
सही बात भी गलत समय मे न कहने में है भलाई,
पहले आचरण में वह ज्ञान ढालों,
जिसे तुम दूसरे को समझाना चाहो।
घर में भी वकील सी चतुराई अपनाओ,
घर के सभी जजों को सही दलील दे समझाओ,
बुद्धि की चाकू से जब ऑपरेशन करो,
भावसम्वेदना व प्यार का मरहम संग रखो।
जो समझना चाहे,
केवल उसे समझाने में समय लगाओ,
महानता के व्यामोह में जकड़े परिवारजन से,
ज्ञान चर्चा करने में व्यर्थ समय न गंवाओ।
घर में भी जॉब सी सतर्कता बरतो,
व्यर्थ की लड़ाई झगड़ो में उलझने से बचो,
गृह युद्ध जीतकर भी रिश्ते हार जाओगे,
गृहयुद्ध हारकर भी रिश्ते जीत पाओगे।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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