Monday 7 June 2021

एलोपैथी चिकित्सक व आयुर्वेद चिकित्सक की अनूठी चुनौती

 *एलोपैथी चिकित्सक व आयुर्वेद चिकित्सक की अनूठी चुनौती*


बीसवीं सदी में दो मेधावी व कुशाग्र बुद्धि अत्यंत मेहनती मित्रों की बचपन से ही चिकित्सा क्षेत्र में अभिरुचि थी, एक ने एलोपैथी चुना व दूसरे ने आयुर्वेद चुना।  उस समय हमारा देश अंग्रेजो का गुलाम था।


दोनों ने अपने क्षेत्र में प्रसिद्धि कमाई, एलोपैथ चिकित्सक जब लंदन से पुरस्कृत हो लौटे तो उन्होंने अपने आयुर्वेद मित्र को आजमाने/उनके आयुर्वेद ज्ञान को चुनौती देने का मन बनाया।


 एलोपैथ चिकित्सक ने अपने नौकर के पुत्र की जान बचाई थी, वह बहुत कृतज्ञ था। तो उस नौकर को बोला हमारे मित्र वाराणसी में रहते हैं उन्हें यह पत्र दे देना। 


यह लो पैसा रास्ते के लिए, ध्यान रखना लखनऊ से वाराणसी जाते वक्त तुम्हें पैदल यात्रा व बैलगाड़ी से यात्रा करनी है, केवल इमली के पेड़ के नीचे ठहरना है व इमली के पत्ते व इमली को नित्य भोजन में खानां है। जितने दुःख कष्ट अब तक तुम्हें मिले उन्हें सोचना। वह नौकर जब घर से निकला तब स्वस्थ था, मग़र अत्यधिक इमली के सेवन व इमली के पेड़ के संग समय व्यतीत करने पर कोढ़ रोग से ग्रस्त हो गया। जगह जगह फोड़े व मवाद से शरीर भर गया। वह किसी भी तरह आयुर्वेद वैद्य मित्र के पास पहुंचा व पत्र दिया।


पत्र में लिखा था - यह कोढ़ ग्रस्त मेरे नौकर को ठीक आपको करना है,मग़र आप इसे अपने पास रोक नहीं सकते, इसे तुरंत वापस भेजना है।


वैद्य मित्र ने उस नौकर से सब हाल पूँछा, इमली के सेवन व रास्ते मे इमली के पेड़ के नीचे ठहरने की बात पता चली।


वैद्य मित्र ने एक पत्र लिखकर नौकर के हाथ मे दे दिया। और बोला इन पत्तों को पहचानों यह तुलसी है, नीम है व गिलोय है। रास्ते मे लौटते वक़्त यदि ठीक होना चाहते हो तो मात्र नीम के पेड़ के नीचे विश्राम करना। नित्य नीम , तुलसी व गिलोय जहां जो मिले कच्चा खा लेना। बहुत कड़वाहट हो तो उसके बाद मुंह मे थोड़ा गुड़ खाकर  मुंह का स्वाद ठीक कर लेना। नित्य जितने अच्छे पल तुम्हें जीवन मे मिले उन्हें सोचना। गायत्री मंत्र व महामृत्युंजय मंत्र का उगते सूर्य का ध्यान करते हुए जपना व भावना करना कि तुम सूर्य के समान तेजस्वी, ओजस्वी, वर्चस्वी, स्वस्थ व दीर्घायु बन रहे हो। फोड़ो पर नीम या तुलसी के पत्तो को मसलकर उसका रस लगा लेना। 


वह नौकर लौटा व वैद्य की बताये नियम पालन करते हुए एलोपैथ चिकित्सक मित्र के पास पहुंचा व पत्र दिया।


पत्र में लिखा था - किसी भी जीव को मनोविनोद के लिए कष्ट देना अच्छा नहीं। आपके नौकर को स्वस्थ कर दिया है, व पहले से अधिक तन्दरुस्त व शक्तिशाली प्रतीत हो रहा होगा। उसका तेजोमय चेहरा स्वयं देख सकते हो। आयुर्वेद जीवन विज्ञान है, जीवन जीने की कला है। यह मात्र रोग की चिकित्सा नहीं है, यह तो शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रोगों को जड़ से मिटाने की कला व विज्ञान है।


एलोपैथ चिकित्सक मित्र निरुत्तर थे, एवं आयुर्वेद के आगे नतमस्तक थे।


यह कहानी मेरे पिताजी ने मुझे बचपन में सुनाई थी। वह सरकारी शिक्षा विभाग में जॉब करते थे, मग़र आयुर्वेद व जड़ी बूटी का अच्छा ज्ञान था। जब रिटायर होकर गांव गए तो लोगों को निःशुल्क आयुर्वेद व जड़ी बूटी से ठीक कर देते थे। पेट दर्द को तो घर के पास एक जामुनी कलर की एक घास छोटी छोटी गोल पत्तियों को पीस कर उसके सेवन से ठीक करवा देते थे।




🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती,

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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