प्रश्न - मंत्रजप, स्वाध्याय व सत्संग के बावजूद अपेक्षित व्यक्तित्व में परिवर्तन क्यों नहीं होता?
उत्तर - सामान्यतया मन [चेतना] के तीन स्तर माने गए हैं- सचेतन, अवचेतन और अचेतन मन।
*सचेतन:* यह मन का लगभग दसवां हिस्सा होता है, जिसमें स्वयं तथा वातावरण के बारे में जानकारी (चेतना) रहती है। दैनिक कार्यों में व्यक्ति मन के इसी भाग को व्यवहार में लाता है।
*अचेतन:* यह मन का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा है, जिसके कार्य के बारे में व्यक्ति को जानकारी नहीं रहती। यह मन की स्वस्थ एवं अस्वस्थ क्रियाओं पर प्रभाव डालता है। इसका बोध व्यक्ति को आने वाले सपनों से हो सकता है। इसमें व्यक्ति की मूल-प्रवृत्ति से जुड़ी इच्छाएं जैसे कि भूख, प्यास, यौन इच्छाएं दबी रहती हैं। मनुष्य मन के इस भाग का सचेतन इस्तेमाल नहीं कर सकता। यदि इस भाग में दबी इच्छाएं नियंत्रण-शक्ति से बचकर प्रकट हो जाएं तो कई लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जो बाद में किसी मनोरोग का रूप ले लेते हैं।
*अर्धचेतन या पूर्वचेतन:* यह मन के सचेतन तथा अचेतन के बीच का हिस्सा है, जिसे मनुष्य चाहने पर इस्तेमाल कर सकता है, जैसे स्मरण-शक्ति का वह हिस्सा जिसे व्यक्ति प्रयास करके किसी घटना को याद करने में प्रयोग कर सकता है।
शिक्षा बुद्धि द्वारा सचेतन मन से ली जाती है, इसमें भावनाओं की उपस्थिति गौण रहती है। विद्या में बुद्धि के साथ भावनाओं की उपस्थिति अनिवार्य है।
आध्यात्मिक विद्या में बुद्धि गौण व भावनाएं मुख्य होती हैं।
उदाहरण - हम यदि बुद्धि स्तर पर सचेतन मन से समझते हैं कि क्रोध नहीं करना चाहिए। लेकिन जब समय आता है तो क्रोध आ जाता है ऐसा क्यों? कभी समझा है ऐसा क्यों होता है?
भावनाएं अवचेतन मन का क्षेत्र है, और स्वाध्याय सत्संग आप सचेतन मन को करवा रहे हैं। ये तो ऐसा हुआ कि क्रोध महल के अंदर बैठा राजा कर रहा है और क्रोध न करने का ज्ञान द्वारपाल को दिया जा रहा हो। द्वारपाल तो क्रोध करता नहीं, वह सक्षम भी नहीं है राजा को सम्हालने व शिक्षा देने में... इसलिए आपने देखा होगा बुद्धिमान व उच्च शैक्षिक डिग्री वाले भी निज भावनाओ के उफान को सम्हालने व मन को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होते। क्योंकि शैक्षिक डिग्री द्वारपाल ने ली है, राजा जी तक ज्ञान पहुंचा नहीं।
तो प्रश्न यह उठता है कि मन के भीतर के 90% अवचेतन मन राजा जी के पास कोई ज्ञान कैसे पहुँचे? सचेतन मन द्वारपाल तो जाने न देगा। राजा जी को कुछ समझाना सहज भी न होगा।
तब हमें सेल्फ हिप्नोसिस करना होगा एक बात को बार बार दोहराना होगा। मन का द्वारपाल सचेतन मन को बोर करना होगा, यदि बार बार कोई बात बोलोगे तब वह सचेतन मन रूपी द्वारपाल बोर होकर सो जाएगा, तब अंतर्मन अवचेतन जाग उठेगा। बार बार दोहराने से वह बात जो स्वयं को समझाना चाहते हो अंतर्मन राजा जी को समझ आ जायेगी, राजा जी एक दिन में कुछ न समझेंगे उन्हें भी बार बार कई दिनों तक एक विचार समझाना होगा। एक बार जो बात राजा को समझ आ गयी फिर अपेक्षित परिवर्तन व्यक्तित्व में घटेगा।
इसलिए मन्त्रजप व ध्यान को बार बार करने को कहा जाता है। जिद्दी सचेतन मन द्वारपाल को सुलाकर अंतर्मन तक वह विचार, मन्त्र व ध्यान पहुंच गया तो कमाल होगा। तब मन्त्र जप में ध्यान न भटकेगा, तब स्वतः ध्यान लगने लगेगा। तब वह विचार व्यक्तित्व का हिस्सा बन जायेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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