Friday 4 February 2022

प्रश्न - "आजकल जप करते समय मन स्थिर नहीं रहता । जप तो जिव्हा करती है पर मन पता नहीं क्या क्या सोचता रहता है व पता नहीं कहाँ कहाँ भाग जाता है ?? क्या करूँ, कैसे रूके यह सब ???"

 प्रश्न - "आजकल जप करते समय मन स्थिर नहीं रहता । जप तो जिव्हा करती है पर मन पता नहीं क्या क्या सोचता रहता है व पता नहीं कहाँ कहाँ भाग जाता है ?? क्या करूँ,  कैसे रूके यह सब ???"


उत्तर - मन व जल की प्रकृति है अनवरत बहना। ऊपर से नीचे की ओर...


 जल को उसके मूल रूप में नीचे से ऊपर ले जाने के लिए मोटर पम्प की जरूरत पड़ती है। जल को स्थिर रखने के लिए उसे शून्य तापमान के नीचे ले जाकर बर्फ के रूप में जमाकर उसे स्थिर किया जा सकता है। या उसका रूपान्तरण वाष्प के रूप में तप द्वारा किया जा सकता है।


मन को निर्विचार अर्थात शून्य तापमान के नीचे ले जाकर समाधिस्थ करने की विधि व्यवस्था है - समस्त अच्छी, बुरी, नेक, घृणित समस्त वासनाओं व इच्छाओं को मन से खत्म कर देना। बिना इच्छा-वासना(आग) के विचार का धुँआ उठेगा नहीं। यह गृहस्थ कामकाजी के लिए कठिन उपाय है।


मन को गहन भक्ति व कठिन तप की अग्नि से जल से वाष्प में रूपांतरित कर देना। साधक व सविता एक हो जाना, शिष्य व गुरु एक हो जाना। मन का अस्तित्व ही मिट जाना।सम्भव है लेकिन लंबा तप व पुरुषार्थ लगेगा।


तीसरा उपाय है, मन को मूल रूप से पूजन के वक़्त उसे उर्ध्वगामी बनाना। नीचे के केंद्र से ऊपर की केंद्र की ओर गमन कराना। आपको सङ्कल्प की बिजली और धारणा की मोटर उपयोग में लेनी होगी या अटूट गुरु पर श्रद्धा-विश्वास-समर्पण करके गुरुकृपा का मोटर उपयोग में ले। कुछ तैयारी पूर्व में करनी होगी। 


पूजन में बैठने से पहले एक पेन कॉपी लेकर महत्त्वपूर्ण बिंदु व प्लान जो मन मे आ सकते हैं उन्हें नोट कर लें। 


मन से बात करें कि कोई भी कार्य अच्छा हो या बुरा, भूल गयी हूँ या बहुत जरूरी हो। मेरे पूजन के इस समय से इस समय तक याद करवाने की आवश्यकता नहीं है। आज पूजन के वक्त की धारणा उगते सूर्य का ध्यान या गुरु चरणों का ध्यान या ग़ायत्री माता का ध्यान है। इस पर आपको स्थिर रहना है, कितना भी जरूरी काम क्यों न हो पूजन के वक्त याद दिलाने की जरूरत नहीं। यह पूर्व मन से बात आपको मदद करेगा। फिर गहरी श्वांस लेकर कम से कम 11 से 21 बार प्राणायाम करें। फिर जप मे बैठें, रोज की अपेक्षा मन कम भागेगा। यह निरंतर अभ्यास एक दिन सध जाएगा। 


ध्यान अक्रिया है, धारणा क्रिया है। बीज से पौधा जबरन नहीं निकाल सकते, बस उसे उगने योग्य नम वातावरण और उपजाऊ जमीन दे सकते हैं। दूध से दही ज़बरन हिला हिला कर नहीं जमा सकते, जामन डालकर स्थिर वातावरण देना पड़ता है। ऐसे ही मन में धारणा का जामन डालकर छोड़ दे, कुछ न करे बस साक्षी बन जाये।ध्यान को स्वतः घटने दें।


असम्भव कुछ भी नहीं, बस निरंतर अभ्यास की जरूरत है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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