प्रश्न- प्रियजन की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए मृतक भोज करवाएं या नहीं?
उत्तर - मृतक का लगाव उससे बना रहता है जिससे वो जीवित रहते हुए लगाव रखता था।
आधी ग्लास भरी व आधी ग्लास खाली है.. मृतक की मृत्यु के बाद भोज को देखने का सबका अपना नजरिया है।
मृत्यु भोज को यज्ञ प्रसाद भोज में बदल दें।
हमारी सलाह यह है कि आप प्रियजन की मृत्यु के तेरहवे दिन पंचकुंडीय गायत्री यज्ञ करें, एक घंटे का महामृत्युंजय जप सामूहिक करें और गीता के सातवें अध्याय का पाठ सामूहिक करें। मृतक के नाम पर कुछ वृक्ष लगाएं और भोज मृतक से प्रेम करने वाले रिश्तेदारों, सुख दुःख में साथ खड़े ग्राम वासियों और तपशील पुण्यशील ब्राह्मणों को अवश्य देना चाहिए और भोजन पश्चात युग साहित्य (मैं क्या हूं?, मृत्यु के बाद क्या होता है? , हारिए न हिम्मत, मरनोतर जीवन, पुनर्जन्म एक ध्रुव सत्य, पितर हमारे अदृश्य सहायक) इत्यादि पुस्तक सभी को दें ।
जिससे आत्मा तृप्त हो..सब का भला हो...जब आप उन लोगों को इकट्ठा बुलाकर भोजन करवाएंगे जिससे मृतक आत्मा का लगाव था तो मृतक आत्मा इस बहाने सभी से अंतिम बार मिल लेगी। सबकी संवेदना, श्रद्धा और उसकी शांति के लिए किए जा रहे उपक्रमों को देख मृतक आत्मा शांति अनुभव करती है। उसे अच्छा लगता है।
मृत्यु भोज के नाम पर राजनीति करने वाले लोगों को मृतक भोज नहीं करवाना चाहिए। जो कभी सुख दुःख में साथ खड़े न हुए जिनको मृतक से प्रेम नहीं उन्हे बुलाने से मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिलती।
जो बिना समझे मृत्यु भोज को विज्ञान के अंधभक्त इसे गलत ठहराते हैं या जो बिना समझे रूढ़िवादी परंपरा के अंधभक्त इसे सही ठहराते है दोनो ही गलत है।
कोई भी परंपरा जब बनती है तो उसके पीछे कारण होता है, परिवार और समाज को संवेदनशील होकर एकजुट करने की भावना, मृतक को समस्त परिवारजन के साथ मिलवाना (आप मृतक को नही देख सकते लेकिन वह सबको देख सकता है) और मृतक के परिवार को जरूरी सहायता देने की विधि व्यवस्था थी। मृतक की शांति हेतु यज्ञ और भोज खर्च का बोझ छोटे छोटे अंशदान से परिवार, रिश्तेदार और समाज के लोगों को मिलकर उठाना चाहिए।
🙏श्वेता चक्रवर्ती, DIYA
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