प्रश्न - पहले राशि आया या भाव?
उत्तर- भगवान सदा शिव से पार्वती सहित सप्तर्षि उपदेश सुन रहे थे। तब शिव ने कहा जो ब्रह्मांड में है वही पिंड(अर्थात शरीर) में सूक्ष्म रूप से है।
प्रत्येक व्यक्ति का प्रभाव ब्रह्मांड पर और ब्रह्मांड का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है।
सप्त ऋषियों ने इस पर शोध कर सूक्ष्म शरीर से यात्रा कर ब्रह्मांड को 360 डिग्री माना। अब इस ब्रह्मांड में ग्रहों के घूमने का पथ को भचक्र कहा।
इस पथ पर जो स्थिर था वह थे नक्षत्र, नक्षत्र वस्तुत: छोटे तारा मंडल के समूह थे, जो जैसा दिखा उसे वैसा नाम दिया गया। अश्व की तरह दिखने वाला अश्वनी। इस तरह 27 मुख्य और एक अतिरिक्त नक्षत्र उस भचक्र पथ पर ढूंढे गए। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण निश्चित किए गए।
इसके बाद इसी भचक्र पथ पर बड़े तारामंडल समूह को 12 भाग में बांटा गया। जिसके अंदर कुछ नक्षत्र भी थे, जिनका आकार जैसा दिखा वैसा नाम दिया गया। उदाहरण भेड़ जैसा दिखने वाला मेष।
अब मनुष्य में इनका प्रभाव जानने हेतु मनुष्य के जीवन चक्र के आयाम को 12 भाव में बांटा गया। यह स्थिर है।
किसी भी जातक के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित होती है उस राशि को ही लग्न कहते हैं तथा इस लग्न राशि को कुंडली के प्रथम भाव में स्थापित करके सभी ज्योतिषीय गणनाएं की जाती हैं तो क्योंकि जन्म के समय उदित लग्न को कुंडली के प्रथम भाव में स्थापित किया जाता है तो इसलिए जन्म कुंडली के प्रथम भाव का नाम ही लग्न कहलाता है।
उसी राशि से बच्चे की कुंडली का प्रथम भाव माना गया और उसी नक्षत्र से यात्रा प्रारंभ मानकर उसी नक्षत्र के स्वामी से विंशोंतरी दशा प्रारंभ मानी गई।
उसी नक्षत्र से यात्रा प्रारंभ मानकर उसी नक्षत्र के स्वामी से विंशोंतरी दशा प्रारंभ मानी गई।
इस दशा का क्रम याद रखने का फार्मूला :
आ चं भौ, रा जी, श बु, के शु
अर्थात सूर्य, चंद्रमा, राहु, वृहस्पति, शनि, बुध, केतु, शुक्र तय किया गया।
यथा ब्रह्मांडे तथा पिंडे, इस कथन के अनुसार बच्चे की कुंडली में कौन से ग्रह का प्रभाव (युति, दृष्टि, स्थिति) इत्यादि की गणना कर फलादेश किया गया।
इन ग्रहों की चाल की गणना कर पंचांग बनाया गया और कब किस समय सूर्य ग्रहण चंद्र ग्रहण होगा यह पता लगाया गया।
उस समय अंतरिक्ष में घूमने के लिए नासा और इसरो के अंतरिक्ष यान उपयोग में लोग नहीं लेते थे, अपितु ऋषि गण ध्यान समाधि में जाकर जीवित रहते हुए स्थूल शरीर से आत्मा को बाहर निकाल सूक्ष्म शरीर से यात्रा करते थे। शोध करते थे। उनके शोध आज भी प्रमाणिक हैं।
बनारस में बैठा पंडित पंचांग में बिना इसरो और नासा के इंस्ट्रूमेंट के बता देता है सूर्य चंद्र ग्रहण कब होगा?
इसलिए ही वेदों की दृष्टि ज्योतिष को कहते हैं।
🙏
ज्योतिषाचार्य श्वेता चक्रवर्ती
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