सोचा प्रेम पर कुछ लिखूँ,
प्रेम को परिभाषित करूँ,
प्रेम और मोह में अंतर लिखूँ,
मोह के माया जाल को तोड दूँ..
स्वयं की खुशी को सर्वोपरि बता दिया,
दूसरे की खुशी को छिनने को सही ठहरा दिया,
कैसे फिल्मों ने प्रेम के अस्तित्व को मिटा दिया,
कैसे फिल्मों ने वासना और मोह को प्रेम का नाम दे दिया..
आज वासना को फ़िल्मों ने प्रेम बता दिया,
फिल्मों में छीनने को जायज ठहरा दिया,
प्रेम में सब अनैतिक कर्म जायज है यह बतला दिया..
फिल्मों ने प्रेम के अस्तित्व को मिटा दिया...
आधुनिक पीढ़ी को बर्गला दिया,
जिम्मेदारी से भागना सिखा दिया,
लिव इन रिलेशनशिप को सही ठहरा दिया,
फिल्मों ने प्रेम के अस्तित्व को मिटा दिया...
जानते हो असली प्रेम में क्या होता है?
प्रेम का अस्तित्व कैसा होता है?
प्रेम में मिटाया नहीं, मिटा जाता है,
प्रेम में छीना नहीं, सिर्फ दिया जाता है,
स्वयं की ख़ुशी के ऊपर दुसरे की खुशी को रखा जाता है,
प्रेम में त्याग और बलिदान दिया जाता है...
प्रेम निःश्वार्थ होता है, प्रेम में बंधन स्वीकार्य होता है,
पति पत्नी बनकर साथ चलने का भाव होता है,
प्रेम जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार लेता है,
एक दूसरे की जिम्मेदारी उठाने को तैयार होता है...
प्रेम हर रिश्ते को महत्त्व देता है,
माता पिता और संतान का भी प्रेम अटूट होता है,
प्रेम में संतुलन होता है, प्रेम में आनन्द होता है,
प्रेम तो कण कण में आनन्द बिखेर देता है...
मोह और वासना अंधी होती है,
प्रेम में विवेक की दृष्टि होती है,
मोह वासना अनैतिक करवाता है,
प्रेम में नैतिकता का सदा भान होता है...
भाइयों बहनों,
श्वेता अनुरोध करती है,
प्रेम के सही अर्थ को समझो,
फ़िल्मों के झूठे माया जाल से बचो,
प्रेम सच्चा करो, मोह वासना से बचो,
प्रेम को अनुभव करो और प्रेम मय बनो,
विवेक दृष्टि हेतु ध्यान और स्वाध्याय करो,
प्रेम में मनुष्य जीवन की गौरव गरिमा बनाये रखो...
💐श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन