Monday, 26 December 2022

बेहोश से होश की यात्रा.. कैसे एक वैज्ञानिक ने सिगरेट छोड़ दिया..

 बेहोश से होश की यात्रा.. कैसे एक वैज्ञानिक ने सिगरेट छोड़ दिया..


एक वैज्ञानिक,

जो था चैंन स्मोकर,

रिसर्च करता,

साथ साथ स्मोक करता...

वो बड़ी अच्छी तरह जानता था,

सिगरेट स्वास्थ्य के हानिकारक है,

फ़िर वह सोगरेट छोड़ नहीं पाता था...


एक दिन हाथ से सिगरेट पीते हुए,

वह न्यूज़ पेपर पढ़ रहा था,

उसमें एक खबर छपी थी कि कैसे एक जहाज,

समुद्र में मार्ग भटक गया,

एक निर्जन टापू में पहुंच गया,

कैसे भोजन पानी ख़त्म हुआ,

कैसे लोगों ने मछली और वन्य जीवों को खाकर,

जैसे तैसे जीवन बचाया...


पढ़ते पढ़ते न्यूज,

वैज्ञानिक ठिठक गया,

जब उसने जहाज के कप्तान का,

इंटरव्यू पढ़ा,

जहाज का कप्तान ने कहा,

इन नशेड़ियों की मूर्खता से,

हम कभी वापस ही न आ पाते,

हमारी जहाज में 90% स्मोकर थे,

वे बिना सिगरेट के पगला गए,

जहाज की रस्सियों को काट काट कर,

सुलगा के पीने लगे,

हमने कहा मूर्खता मत करो,

बिना रस्सी के जहाज तट से बन्ध न सकेगा...


स्मोकर पगला गए थे,

समझाने से समझ न रहें थे,

प्रेस वालों ने कहा,

अरे रस्सी से स्मोक करने से नशा थोड़ी न होता है,

कप्तान ने कहा,

मनुष्य की बुद्धि नशे की तलब लगने पर,

कुत्ते सी हो जाती है,

जैसे हम सब जानते हैं कि 

सुखी हड्डी में कोई रस नहीं होता,

कुत्ता जब उसे चबाता है,

तो जगह जगह उसके मुंह मे घाव हो जाते हैं,

उन्ही घाव से रक्त रिसता है,

कुत्ते को स्वाद मिलता है,

कुत्ता सोचता है कि यह रक्त हड्डी से निकल रहा है,

वस्तुतः वह रक्त उसका अपना ही होता है...


नशेड़ी मनुष्य भी,

कुत्ते की तरह मूर्ख होता है,

वह सोचता है कि वह नशे को पी रहा है,

वस्तुतः नशा उसे पी रहा होता है,

नशे का धुंआ उसके दिमाग की नसें सुन्न करता है,

और फेफड़े को जहरीले धुएं से भरता है,

इस प्रक्रिया में उसे भ्रम और दर्द होता है,

नशेड़ी इसे ही आनंद समझता है,

कुत्ता हड्डी और नशेड़ी सिगरेट छोड़ नहीं पाता है..


वैज्ञानिक जैसे बेहोशी से होश में आया,

दर्पण में स्वयं को देख पूँछा,

क्या मैं कुत्ते सा मूर्ख हूँ?

क्या मेरी आत्मा इस सिगरेट से कमज़ोर है?

उसने आधी पी हुई सिगरेट को बुझा दिया,

उस सिगरेट पर घृणा से थूक दिया,

किचन से बटर पेपर उस ऐश ट्रे पर चढ़ा दिया,

उस पर पेन से लिखा,

यदि मैं जहाज यात्रियों सा मूर्ख हूँ,

कुत्ते सा गया गुजरा हूँ,

यदि मेरी आत्मा हार गई तो,

यह थूकी हुई सिगरेट उठाऊंगा,

पियूँगा और स्वयं की पराधीनता स्वीकार लूंगा...


दिन बीते साल बीते,

30 वर्ष बीत गए,

वैज्ञानिक सफलता का शिखर चढ़ता गया,

लेकिन उसने कभी फिर सिगरेट न छुआ....

वह जब भी ऐश ट्रे देखता,

स्वयं को विजेता अनुभव करता,

खुद से कहता,

मैं मनुष्य हूँ कुत्ता नहीं,

मेरी आत्मा कमज़ोर नहीं,

मैं इस सिगरेट से जीत गया,

इस सिगरेट का नशा छूट गया।


आप मे से जितने लोग सिगरेट नहीं छोड़ पा रहे,

स्वयं से पूँछे क्या कुत्ते की तरह गए गुजरे हो?

क्या आत्मा इतनी कमज़ोर है कि,

सिगरेट से हार गई,

सिगरेट तुम्हें पी रहा है,

तुम लाचार हो,

स्वयं को तबाह कर रहे हो,

क्या वैज्ञानिक की तरह तुम जाग सकते हो?

क्या तुम्हारे संकल्प में बल है?

क्या तुम इंसान हो,

विवेक अपनाकर नशा छोड़ सकते हो?


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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