Tuesday, 27 December 2022

The law of Conservation of Mass

 The law of Conservation of Mass


इस वैज्ञानिक थ्योरी का सरल भाषा में आध्यात्मिक प्रयोग और विश्लेषण।


अध्यात्म में विभिन्न ग्रथों और गीता में कहा गया है, कि इस संसार में कुछ भी नष्ट नहीं होता मात्र रूप बदलता है। 


आध्यात्मिक उदाहरण - आत्मा का शरीर बदलना, पंचतत्वों का बनना और पुनः उसी में विलीन होना।


आत्मा एक ऊर्जा है, पंचतत्व से बना शरीर स्थूल है। लेक़िन यह स्थूल सूक्ष्म में और सूक्ष्म स्थूल में परिवर्तित हो सकता है।


इसे सांसारिक उदाहरण से समझें- बर्फ़, जल और वाष्प 


यहां स्थूल बर्फ़ तरल द्रव्य जल और जल सूक्ष्म वाष्प में बदल सकता है।


प्रत्येक पदार्थ और ऊर्जा के रूपांतरित होने के नियम अलग अलग हो सकते हैं। किंतु रूपांतरण सबमें सम्भव है।


किसी ने फ़ल खाया - रक्त रस मांस मज्जा में रूपांतरण हुआ। कुछ भाग मल में गया। वही व्यक्ति यदि दफ़न हुआ या उसका मिट्टी में सड़ा वहीं फल का पौधा लगा हुआ है। तो वह उसी को खाद रूप में लेकर पुनः फल का रूपांतरण कर लेगा।


हम सबके लिए यह दिव्य विज्ञान और अध्यात्म का द्रव्यमान संरक्षण और ऊर्जा-पदार्थ का नष्ट न होना और मात्र रूपांतरण का लॉजिक समझना अनिवार्य है।


वैज्ञानिक द्रव्यमान के संरक्षण के नियम के अनुसार, *किसी भी भौतिक या रासायनिक परिवर्तन के दौरान पदार्थ न तो उत्पन्न होता है और न ही नष्ट होता है। हालाँकि, यह एक रूप से दूसरे रूप में बदल सकता है।* *यदि ऊर्जा न तो उत्पन्न होती है और न ही नष्ट होती है, तो ऊर्जा का अंतिम स्रोत क्या है?* हमारे वर्तमान ब्रह्मांड में ऊर्जा का अंतिम स्रोत बिग बैंग है। 


यह बिग बैंग की थ्योरी और विश्लेषण अधूरा है और मात्र सृष्टि के उद्भव की कोरी कल्पना मात्र है। पाश्चात्य वैज्ञानिक के मात्र कह देने से बिना प्रमाण के कोई बात सिद्ध नहीं होती।


उदाहरण - किसी ने फ़ल खाया - रक्त रस मांस मज्जा में रूपांतरण हुआ। कुछ भाग मल में गया। वही व्यक्ति यदि दफ़न हुआ या उसका मिट्टी में सड़ा वहीं फल का पौधा लगा हुआ है। तो वह उसी को खाद रूप में लेकर पुनः फल का रूपांतरण कर लेगा।


आज तक कोई मशीन नहीं बनी जो फल को डालो और रक्त में बदल दो या प्रक्रिया को पूर्ण कर सके।


पाचन के - विज्ञान ने पास ठोस फल से रक्त बनने का थ्योरी है, किंतु प्रकृति के पास इसका प्रैक्टिकल है।


अध्यात्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं। अध्यात्म के पास दृष्टि है किंतु पैर नहीं, विज्ञान के पास पैर है किंतु दृष्टि नहीं। संसार के मेले में घूमने के लिए विज्ञान को अध्यात्म को अपने कंधे पर लेना होगा।


आपकी बहन

श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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