*मानसिक प्रोग्रामिंग - पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी)* - Post-traumatic stress disorder (PTSD)
जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, कि जीवन में दुःखद घटना घटने के बाद मन में उपजा यह विकार है।
पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) प्रतिक्रियाओं का एक समूह है जो उन लोगों में विकसित हो सकता है जिन्होंने किसी दर्दनाक घटना का अनुभव किया है या उसे देखा है तथा जो उनके जीवन या सुरक्षा (या उनके आसपास के अन्य लोगों के जीवन और सुरक्षा) के लिए खतरा है। यह कार की या अन्य गंभीर दुर्घटना, शारीरिक या यौन उत्पीड़न, आपराधिक, युद्ध से संबंधित घटनाएं या यातना, या प्राकृतिक आपदा जैसे बुशफायर या बाढ़ हो सकती है। अभिघात (ट्रॉमा) का अनुभव करने वाले लगभग सभी लोगों में पोस्ट-ट्रॉमैटिक प्रतिक्रियाएं होती हैं। हालांकि कुछ लोगों के लिए, ये प्रतिक्रियाएं कुछ दिनों या हफ्तों के भीतर कम नहीं होती हैं, परंतु जारी रहती हैं और उनके जीवन को बाधित करती हैं - तब इन प्रतिक्रियाओं को पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर कहा जाता है।
*पीटीएसडी के लक्षण*
पीटीएसडी वाले व्यक्ति को चार मुख्य प्रकार की कठिनाइयाँ होती हैं:
1- अवांछित और आवर्ती यादों, फ्लैशबैक या ज्वलंत दुःस्वप्नों के माध्यम से दर्दनाक घटना को फिर से जीना। घटना की याद दिलाने पर तीव्र भावनात्मक या शारीरिक प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं, जैसे पसीना आना, दिलकीधड़कनेंबढ़जाना या घबराहट होना।
2- घटना की याद दिलाने वाली बातों जैसे कि विचारों, भावनाओं, लोगों, स्थानों, गतिविधियों या स्थितियों से बचना जिनसे कि घटना की यादें ताजा होती हों।
3- भावनाओं और विचारों में नकारात्मक परिवर्तनों, जैसे गुस्सा, डर, दोषी, सपाट या सुन्न महसूस करना, "मैं बुरा/बुरी हूँ" या "दुनिया असुरक्षित है" जैसी धारणाएँ विकसित करना और दूसरों से कटा हुआ महसूस करना।
4- नींद आने में कठिनाइयाँ, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता की कमी, आसानी से चौंक जाना और लगातार खतरे के संकेतों की तलाश में रहना, अत्यधिक सतर्क होने या 'तनावग्रस्त होने' के संकेत हैं।
यदि किसी ने अपने जीवन में पहले अन्य दर्दनाक घटनाओं का अनुभव किया है, तो कभी-कभी वे पाते हैं कि ये पिछले अनुभव सामने आते हैं और इनसे निपटने की भी आवश्यकता होती है।
एक स्वास्थ्य चिकित्सक पीटीएसडी का निदान कर सकता है यदि किसी व्यक्ति में इन चार क्षेत्रों में से प्रत्येक में एक महीने या उससे अधिक समय के लिए लक्षण हैं, जो बड़ी परेशानी का कारण बनते हैं, या काम करने और पढ़ाई करने की उनकी क्षमता, उनके रिश्तों तथा दिन-प्रतिदिन के जीवन पर प्रभाव डालते हैं।
पीटीएसडी वाले लोगों को 'विघटनकारी अनुभव' भी हो सकते हैं, जिन्हें अक्सर निम्न प्रकार से वर्णित किया जाता है:
"ऐसा लगता था जैसे मैं वहाँ था/थी ही नहीं।"
"समय थम गया था।"
"मुझे लगा जैसे मैं चीजों को होते हुए ऊपर से देख रहा/रही था/थी।"
*पीटीएसडी के लिए सहायता कब लेनी है*
वह व्यक्ति जिसने एक दर्दनाक घटना का अनुभव किया है, उसे मनोचिकित्सक की सहायता लेनी चाहिए यदि वे:
1- यह महसूस नहीं करते हैं कि वे दो सप्ताह के बाद बेहतर महसूस करना शुरू कर रहे हैं
2- अत्यधिक चिंतित या व्यथित महसूस करते/करती हैं
3- घर, काम और/या रिश्तों में हस्तक्षेप करने वाली दर्दनाक घटना पर प्रतिक्रिया दें
4- स्वयं को या किसी और को नुकसान पहुँचाने की सोच रहे हैं।
*इस बात के कुछ संकेत निम्नलिखित हैं कि समस्या सम्भवत: विकसित हो रही है*:
लगातार गुस्से में या चिड़चिड़े रहना
घर या काम पर कार्य करने में कठिनाई होना
दूसरों को भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया देने में असमर्थ होना
मुद्दों से बचने के लिए असामान्य रूप से व्यस्त रहना
सामना करने के लिए ऐल्कोहल, ड्रग्स या जुए का उपयोग करना
सोने में गंभीर कठिनाइयों का होना।
*स्वास्थ्य लाभ (रिकवरी) के लिए समर्थन जरूरी है, जो घट गया उसे स्वीकारना जरूरी है। अब वह बदल नहीं सकता।*
बहुत से लोग दर्दनाक घटना के बाद पहले दो हफ्तों में पीटीएसडी के कुछ लक्षणों का अनुभव करते हैं, लेकिन अधिकांश अपने आप या परिवार और दोस्तों की सहायता से ठीक हो जाते हैं। इस कारण से, पीटीएसडी के लिए औपचारिक उपचार, जब तक कि व्यक्ति घटना से गंभीर रूप से व्यथित न हो, आमतौर पर दर्दनाक अनुभव के बाद कम से कम दो या अधिक सप्ताह तक शुरू नहीं होता है।
किसी दर्दनाक घटना के बाद पहले कुछ दिनों और हफ्तों के दौरान जो भी सहायता की आवश्यकता हो उसे प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। इसमें प्रशिक्षित पेशेवरों सहित जानकारी, लोगों और संसाधनों तक पहुँच प्राप्त करना शामिल हो सकता है, जो आपको ठीक होने में सहायता कर सकते हैं। परिवार और दोस्तों का समर्थन वह सब हो सकता है जिसकी आवश्यकता है। अन्यथा, आगे सहायता प्राप्त करने के लिए डॉक्टर के पास जाना सबसे अच्छी जगह है। कुछ और जो सहायता कर सकता है वह है घटना में शामिल अन्य लोगों के साथ बात करना या जिन्होंने इसी तरह की चीजों का अनुभव किया है।
*पीटीएसडी का उपचार* -
यदि आप दो सप्ताह के बाद भी समस्याओं का सामना कर रहे/रही हैं, तो डॉक्टर या मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर उपचार पर चर्चा कर सकते हैं। पीटीएसडी के लिए प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं। अधिकांश में मनोवैज्ञानिक उपचार जैसे परामर्श शामिल है, लेकिन दवा भी सहायक हो सकती है। आम तौर पर, समस्या के पहले और एकमात्र समाधान के रूप में दवा का उपयोग करने के बजाय मनोवैज्ञानिक उपचार से शुरुआत करना सबसे अच्छा है।
पीटीएसडी के उपचार में संभवतः दर्दनाक स्मृति का सामना करना और उस अनुभव से जुड़े विचारों और विश्वासों के माध्यम से काम करना शामिल होगा। अभिघात-केंद्रित उपचार निम्न कर सकते हैं:
*पीटीएसडी के लक्षणों को कम करना*
चिंता और अवसाद को कम करना
किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना
ये लंबे समय तक या बार-बार होने वाली दर्दनाक घटनाओं का अनुभव करने वाले लोगों के लिए प्रभावी हो सकते हैं, लेकिन लंबी अवधि के लिए उपचार की आवश्यकता हो सकती है।
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*आध्यात्मिक उपचार* -
सबसे पहले शांति से बैठें और सोचें मैं शरीर नहीं, मन नहीं अपितु एक आत्मा हूँ। बचपन की तस्वीर और वर्तमान की तस्वीर से पता चलता है कि अन्न-जल से पोषित शरीर तो बदल गया पर मैं वही हूँ। बचपन के खिलौने की इच्छा और वर्तमान की चाहतों और मन की स्थिति समझने पर पता चलता है, मन तो बदल गया। मगर मैं वही हूँ।मेरा मन मात्र मेरी यादों, अनुभवों का पुलिंदा है।
शाकाहारी घर का बच्चा जो अनुभव संस्कार लेता है, उससे वह जीव पर दया करता है। मांसाहारी घर का बच्चा जो अनुभव संस्कार लेता है, उससे जीव को देखकर उसे खाने की इच्छा करता है। अर्थात मन तो बनता बिगड़ता है।
जो अनुभव पीटीएसडी के परेशान कर रहे हैं वह वस्तुतः मन की मेमोरी कार्ड से बार बार प्ले हो रहे हैं। अब जो घट गया वह घट गया, समय यंत्र से पीछे जाकर उसे बदला नहीं जा सकता। तो फिर उसे सोच सोच के दुःखी क्यों होना?
जब एक चुटकुले पर बार बार हंस नहीं सकते, तो फिर एक ही दर्दनाक घटना पर बार बार रोना और दुःखी होना कहाँ तक जायज है?
तूफ़ान जब चिड़िया का घोसला तोड़ देता है, तो दूसरे दिन चिड़िया टूटे घोंसले का शोक नहीं मनाती। वह चहचहाते हुए नए घोंसले को बनाने में जुट जाती है।
पुरानी यादों के खंडहर से बाहर आकर नई यादें बनाने में जुट जाएं। एक सकारात्मक ज्ञान का दीपक मन में जलाएं और मन के अंधेरे को दूर भगाएं।
जो हुआ वह हो गया, इसे स्वीकार लें। अब आगे क्या करना है उसकी प्लानिंग करें।
नित्य 10 मिनट सुबह खड़े होकर ध्यान करें और शरीर पर नियंत्रण स्थापित करे, धीरे धीरे मन को साधें। नित्य शाम को विस्तर पर बैठकर कमर सीधी करके ध्यान करें और शरीर-मन साधें।
रोज 40 दिन तक स्वयं को पत्र लिखो, स्वयं के दुःखों को लिखो और स्वयं को इस दुःख से बाहर आने के लिए सुझाव दो। दुःख वाले पत्र को जलाकर या फाड़कर नष्ट नित्य कर दें।
एक डायरी में 5 लाइन लिखो मैं विजेता हूँ इस दुःख से बाहर आ सकती/सकता हूँ। मैं अपने जीवन को सम्हाल सकती/सकता हूँ। मैं सफल व्यक्ति हूँ, मैं सफल जीवन भर रहूंगा। अच्छे अच्छे आशीर्वाद स्वयं को दो और उसे लिखो।
स्वास्तिक नित्य 5 बार कागज पर बनाएं, नित्य कुछ लाइन गायत्री मन्त्रलेखन करें। अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करें और महापुरुषों के जीवन के संघर्ष को पढ़ें। विजेता बने।
गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित जल नित्य पिये और ब्रेन को मजबूत करने वाली ब्राह्मी और अश्वगंधा का कुछ महीने सेवन करें। हो सके तो किसी देवस्थान पर आश्रम में 9 दिन की साधना करके आ जाएं। स्थान परिवर्तन और तीर्थ सेवन लाभकारी होता है।
OCD, PSDT, Overthinking, Depression, Anxiety, पारिवारिक उलझन, दिल टूटने की समस्या, धोखा किसी से मिलने की समस्या etc, या आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए पूर्व अपॉइंटमेंट व्हाट्सएप पर लेकर सुबह 11 से 1 के बीच सोमवार से शुक्रवार फोन कर सकते हैं। - Sweta Chakraborty, Spiritual Psychologist - 9810893335
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन