मैं एक मुट्ठी रेत हूं,
युगनिर्माण के भवन में लगने वाली,
हां, मात्र एक मुट्ठी रेत हूं,
मेरे बिखराव को जो समेट रहे,
बस उन्ही गुरु की शरण में हूं...
गुरु के हाथ में हूं,
वह ही तय करेंगे,
कि मेरा कहां उपयोग होगा,
नींव में, छत में या दीवार में,
कहां मेरा उपयोग होगा...
रेत हूं, बिखराव मेरा स्वभाव है,
गुरु की जब कृपा होगी,
तब सीमेंट और जल मुझमें मिलेगा,
तब ही कोई आकार बनेगा...
फिर किस बात का अहंकार करूं,
फिर किस बात का स्वाभिमान धरूं,
जिनकी कृपा से बिखरने की जगह उपयोगी बनी,
बस अब उन्हीं चरणो का ध्यान करूं...
मैं एक मुट्ठी रेत हूं,
युगनिर्माण के भवन में लगने वाली,
हां, मात्र एक मुट्ठी रेत हूं,
मेरे बिखराव को जो समेट रहे,
बस उन्ही गुरु की शरण में हूं...
🙏श्वेता चक्रवर्ती, DIYA
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