Tuesday 2 January 2024

एक स्वप्न चितारोहण का.. जो एक न एक दिन सत्य अवश्य होगा...

 एक स्वप्न चितारोहण का..

जो एक न एक दिन सत्य अवश्य होगा...


एक दिन मैंने स्वप्न में,

मेरे शरीर की मृत्यु को देखा,

शरीर के बंधन से,

स्वयं को आज़ाद होते देखा...


शरीर से निकल कर,

बड़ा हल्का महसूस हो रहा था,

जितना भारी और उलझा शरीर में था,

उतना ही हल्का और सुलझा महसूस हो रहा था...


मैंने देखा मेरे परिवार वाले रो रहे थे,

एक एक करके मेरे नाते रिश्तेदार भी आ रहे थे,

आस पड़ोसी और जानने वालों का जमघट लग गया था,

जो आ न सका वह फ़ोन पर शोक संदेश दे रहा था...


जो मुझपर लोगों का क्रोध, ईष्र्या, जलन और डाह थी,

वो मेरे मृत शरीर के साथ ही मर गयी थी,

वह मुख भी बड़ा अच्छा अच्छा मेरे लिए बोल रहे थे,

जो कभी मुझे गाली देते देते न थकते थे...


पंडित जी ने क़फ़न मंगवाया,

मेरे शरीर को नहलाकर नए वस्त्र से सजाया,

ऊपर से क़फ़न ओढ़ाया,

राम नाम सत्य का सबने जयकारा लगाया...


राम नाम ही सत्य है, क्यों मरने के बाद ही बोलते हैं,

अरे यह ब्रह्म सत्य जीते जी क्यों नहीं सोचते है..

अर्थी उठाई गई और गाड़ी में डाल गंगा घाट ले जाई गई,

लकड़ी घी और अर्थी का सामान खरीदा गया..


ख़र्च कितना हुआ सब हिसाब लगा रहे थे,

आगे कितना होगा उसकी व्यवस्था भी बना रहे थे,

बेटे को बुलवाया गया और मुखाग्नि दिलवाया गया,

कई फ़ीट ऊंची आग की लपटें जली,

धूं धूं करते हुए शरीर की चमड़ी जली...


चमड़े का आवरण जलते ही,

हड्डियों के ढांचे दिखने लगे,

कमज़ोर शरीर के अंग जलकर खाक हो गए,

मजबूत हड्डियाँ शेष रह गयी...


अग्नि शांत हुई तो,

राख और हड्डियों को मटके में भरवाया,

वहीं पर पंडितों ने,

पिंडदान का उपक्रम करवाया...


राख और हड्डियों को,

गंगा जल में डाल दिया गया,

जल में राख तो घुल गयी,

मछलियों ने हड्डियों का स्वाद लिया...


घर पर तेरह दिन का शोक चला,

मेरी फ़ोटो पर पुष्प और माला चढ़ा,

दुःखी पतिदेव और बेटे के आंखों से,

धीरे धीरे आँशु सूखने लगे,

प्रियजनों के आँखों की नमी भी,

धीरे धीरे हटने लगी...


एक दीवार पर फ़ोटो कई महीनों तक टँगी रही,

पतिदेव के जाने के बाद वह फ़ोटो भी हट गई,

किसी अल्बम या कहीं स्टोर में कोई फ़ोटो शेष है,

मेरे अस्तित्व को अब याद करने की किसी को कोई फुर्सत नहीं...


जिस नाम, प्रसंशा और धन-धान्य की जिंदगी भर जोड़ा,

वह तो मेरे शरीर के मरने पर किसी काम न आई,

पति बच्चे परिवार भी श्मशान तक ही साथ आये,

मेरे शरीर को जलाकर वो फिर संसार में लौट आये...


अब पुनः नए शरीर में प्रवेश का आदेश हुआ है,

किसी माँ के गर्भ का नया पता मिला है,

मुझे पता है नए जन्म में पूर्व जन्म में क्या हुआ सब भूल जाऊंगी,

पुनः माया के जाल में फंस जाऊंगी...


आज जब नींद खुली तो बड़ा आंनद आया,

इस शरीर में रहकर भी बड़ा हल्का पन महसूस हुआ,

मैं आत्मा अनन्त यात्री हूँ, यह शरीर सराय है यह याद आया,

आत्मानुभूति में परम् आंनद आया. ..


💐विचारक्रांति, गुरुग्राम गायत्री परिवार

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...