Tuesday 2 January 2024

कच्ची भक्ति तेल सी होती है, दिखावे से भरी होती है,

 कच्ची भक्ति तेल सी होती है,

दिखावे से भरी होती है,

भक्ति सागर में ऊपर तैरती रहती है,

आत्मा को परमात्मा में मिलने नहीं देती है...


सच्ची भक्ति दूध सी होती है,

निःश्वार्थ प्रेम से भरी होती है,

भक्ति सागर में मिलते ही घुल जाती है,

आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है...


सच्चा भक्त ईश्वरीय सागर को,

अपने सीमित कप में भरने की कोशिश नहीं करता,

वह तो उस असीमित में टूटकर,

विलीन होने में विश्वास रखता है...


ईश्वर का मिलना सरल है,

किंतु निर्मल मन की पात्रता पाना कठिन है,

ईश्वरीय चेतना का स्वयं में अवतरण सरल है,

किंतु स्वयं को इच्छाओं-वासनाओं से ख़ाली करना कठिन है...


ग्लास को वस्तु से खाली करो,

हवा भर जाएगी,

मन को इच्छाओं-वासनाओं से ख़ाली करो,

ईश्वरीय चेतना उतर जाएगी...


~ श्वेता चक्रवर्ती

गायत्री परिवार, गुरुग्राम हरियाणा

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