प्रश्न - *पूजा और ध्यान में मैं का भान और मन अस्थिर चलायमान भटकता क्यों रहता है? मन स्थिर हो ध्यान क्यों नहीं घट पाता? आनन्द ही आनन्द क्यों नहीं मिलता?*
उत्तर- ईच्छाएं जब तक कुछ पाने की जीवित रहेंगी, तब तक मन और मैं जीवित रहेंगे। मन को गति इच्छा (कामना/वासना) से मिलता है।
ध्यान की स्थिरता हेतु सांसारिक इच्छा तो छोड़ना पड़ेगा ही, साथ ही आध्यात्मिक इच्छा भी छोड़ना पड़ेगा। आनन्द पाने की इच्छा भी छोड़ना होगा, आत्मज्ञान पाने की इच्छा भी छोड़ना होगा।
बस समर्पण के साथ अपने इष्ट आराध्यय गुरु के प्रेम में निःस्वार्थ भक्ति में स्थिर चित्त हो बस यूं ही बैठ जाइए या दैनिक कार्य कीजिए, उनके ध्यान में खो जाइए। प्रेम में उनका चिंतन ध्यान धारणा कीजिए।
जैसे एक मां अपने नवजात शिशु को प्रेम करती है, जैसे सच्चे प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे के प्रेम में खोए रहते हैं। ऐसे ही आप बस ईश्वर के प्रेम में मन को खोने दीजिए। बदले में कुछ मत इच्छा कीजिए।
इच्छाएं छोड़ दो मन मिट जायेगा और आनन्द शेष बचेगा। बिना किसी इच्छा कामना के ध्यान एवं पूजन होगा तो ही मन भटकेगा ही नहीं, क्योंकि मन बिना इच्छा रूपी ईंधन के चलता नहीं। ठहर जाता है।ईश्वर से सच्चा प्रेम हुआ तो चित्त में ईश्वर का प्रेम चिपक जायेगा, ध्यान घट जाता है। आनन्द ही आनन्द से मन भर जाएगा।
🙏🏻 विचारक्रान्ति
गायत्री परिवार गुरुग्राम हरियाणा
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