*गुरुचरणों में ही है सुकून,मन यह समझ ले ज़रा*
(अंतरात्मा और मन का संवाद)
*अंतरात्मा* -
जब जब तू गुरु की शरण में आया
तुझे इक सुकून मिला
मैं क्या हूँ? जिसे वास्तव में भूलता आया
वो आत्म वजूद मिला
जब जब तू संकट में उलझा,
जब जब मन तू बिखरा और टूटा,
गुरु को ही याद किया,
उस गुरु ने ही तुझे उबार लिया।
हो.. जब जब संकट में था तू,
गुरु को ही याद किया
लेकिन इन ख़ुशी के क्षणों में तूने,
उस गुरु को ही भुला दिया।
हम्म.. ए मन, संभल जा ज़रा
फिर संसार में उलझने चला है तू
मन.. भीतर ठहर जा ज़रा
फिर भवसागर में गिरने चला है तू
*मन* -
ऐसा क्यूँ कर हुआ
जानू ना, मैं जानू ना
कैसे मैंने, गुरु उपकारों को, भुला दिया
जानू ना, मैं जानू ना
*अंतरात्मा* -
हो… ऐ मन संभल जा ज़रा
फिर जीवनउद्देश्य से भटकने चला है तू
मन.. यहीं रुक जा ज़रा
फिर मोह की दलदल में फंसने चला है तू
जिस शरीर से है मोह तेरा
वो क्षणिक बसेरा है बस मेंरा
कोई अमर नहीं हैं यहां,
देख ले दीवारों पे टँगी,
अपने पूर्वजों की फ़ोटो ज़रा
हो...तू अंतर्जगत में जा, और ढूढ़
मेरा असली वाला पता
कौन हूँ मैं कहाँ से आया,
अब यहां से कहाँ है जाना
*मन*-
जानू ना, मैं जानू ना
कौन है तू कहाँ से आया?
कैसे बना मैं तेरा साया
जानू ना, मैं जानू ना
*अंतरात्मा* -
हम्म.. ए मन, ध्यान कर ले ज़रा
फिर ही पहचान पाएगा मुझे तू
मन.. भीतर ही ठहर जा ज़रा
फिर ही मुझसे संवाद कर पायेगा तू
मैं शरीर नहीं हूँ,
मैं ना ही हूँ मैं तुच्छ मन,
मैं मन और शरीर से हूँ परे,
मुझे जान, कर के गहन ध्यान,
मैं हूँ तेरा स्वामी और तू मेरा दास,
मुझे ले तू पहचान, मेरे बिना तेरी नहीं कुछ औक़ात
हम्म.. ए मन, गुरुभक्ति कर ले ज़रा
फिर संसार में उलझेगा नहीं तू
मन.. गुरु निर्देशों में चल ले ज़रा
फिर भवसागर में कभी गिरेगा नहीं तू।
ऐ मन...अंतर्जगत की यात्रा कर ले ज़रा,
आनन्द का महा साग़र पायेगा तू,
ऐ मन...गुरुकार्य कर ले सदा,
गुरु का संरक्षण तभी पायेगा तू।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन
(अंतरात्मा और मन का संवाद)
*अंतरात्मा* -
जब जब तू गुरु की शरण में आया
तुझे इक सुकून मिला
मैं क्या हूँ? जिसे वास्तव में भूलता आया
वो आत्म वजूद मिला
जब जब तू संकट में उलझा,
जब जब मन तू बिखरा और टूटा,
गुरु को ही याद किया,
उस गुरु ने ही तुझे उबार लिया।
हो.. जब जब संकट में था तू,
गुरु को ही याद किया
लेकिन इन ख़ुशी के क्षणों में तूने,
उस गुरु को ही भुला दिया।
हम्म.. ए मन, संभल जा ज़रा
फिर संसार में उलझने चला है तू
मन.. भीतर ठहर जा ज़रा
फिर भवसागर में गिरने चला है तू
*मन* -
ऐसा क्यूँ कर हुआ
जानू ना, मैं जानू ना
कैसे मैंने, गुरु उपकारों को, भुला दिया
जानू ना, मैं जानू ना
*अंतरात्मा* -
हो… ऐ मन संभल जा ज़रा
फिर जीवनउद्देश्य से भटकने चला है तू
मन.. यहीं रुक जा ज़रा
फिर मोह की दलदल में फंसने चला है तू
जिस शरीर से है मोह तेरा
वो क्षणिक बसेरा है बस मेंरा
कोई अमर नहीं हैं यहां,
देख ले दीवारों पे टँगी,
अपने पूर्वजों की फ़ोटो ज़रा
हो...तू अंतर्जगत में जा, और ढूढ़
मेरा असली वाला पता
कौन हूँ मैं कहाँ से आया,
अब यहां से कहाँ है जाना
*मन*-
जानू ना, मैं जानू ना
कौन है तू कहाँ से आया?
कैसे बना मैं तेरा साया
जानू ना, मैं जानू ना
*अंतरात्मा* -
हम्म.. ए मन, ध्यान कर ले ज़रा
फिर ही पहचान पाएगा मुझे तू
मन.. भीतर ही ठहर जा ज़रा
फिर ही मुझसे संवाद कर पायेगा तू
मैं शरीर नहीं हूँ,
मैं ना ही हूँ मैं तुच्छ मन,
मैं मन और शरीर से हूँ परे,
मुझे जान, कर के गहन ध्यान,
मैं हूँ तेरा स्वामी और तू मेरा दास,
मुझे ले तू पहचान, मेरे बिना तेरी नहीं कुछ औक़ात
हम्म.. ए मन, गुरुभक्ति कर ले ज़रा
फिर संसार में उलझेगा नहीं तू
मन.. गुरु निर्देशों में चल ले ज़रा
फिर भवसागर में कभी गिरेगा नहीं तू।
ऐ मन...अंतर्जगत की यात्रा कर ले ज़रा,
आनन्द का महा साग़र पायेगा तू,
ऐ मन...गुरुकार्य कर ले सदा,
गुरु का संरक्षण तभी पायेगा तू।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन
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