*शरीर बल* - स्वास्थ्य के संरक्षण और योग व्यायाम से प्राप्त किया जाता है, लेकिन मात्र एक बीमारी इसे नष्ट कर सकती है।
*मनोबल* - अच्छे विचारों, स्वाध्याय और ध्यान योग द्वारा मनः संस्थान परिष्कृत कर मनोबल प्राप्त किया जासकता है। लेकिन कोई भीषण घटना या प्रिय का बिछोह मनोबल तोड़ सकता है। या किसी विशेष व्यक्ति के प्रभाव मे मनोबल बढ़ या घट सकता है।
*आत्मबल* - गहन तप और विभिन्न साधनाओं से स्वयं को साधकर प्राप्त किया जाता है। शरीर भाव से ऊपर जाकर स्वयं की चेतना से जुड़कर प्राप्त किया जा सकता है। तप मार्ग की भटकन और अहंकार आत्मबल को दीमक की तरह नष्ट कर सकते हैं।
*ब्रह्मबल* - जब चेतना के स्तर पर नर और नारायण एक हो जाते हैं, शिष्य और गुरु एक हो जाते है, जब जीव और ब्रह्म एक हो जाते हैं तो ब्रह्मबल असीमित प्राप्त होता है। इसमें जीव एक नल की टोटी समान होता है जिसका कनेक्शन परब्रह्म से होता है। अतः साधक का सविता में विलय, समिधा का यज्ञ में विलय, जीव का ब्रह्म में आहूत होने पर ब्रह्मबल मिलता है। ब्रह्मबल कोई क्षीण नहीं कर सकता,जब मैं होगा ही नहीं तो अहंकार का प्रश्न ही नहीं बचेगा। शरीर एक ग्लास होगा और ब्रह्मतत्व जब भरा होगा इसे ब्रह्मबल प्राप्ति कहते हैं।
*मनोबल* - अच्छे विचारों, स्वाध्याय और ध्यान योग द्वारा मनः संस्थान परिष्कृत कर मनोबल प्राप्त किया जासकता है। लेकिन कोई भीषण घटना या प्रिय का बिछोह मनोबल तोड़ सकता है। या किसी विशेष व्यक्ति के प्रभाव मे मनोबल बढ़ या घट सकता है।
*आत्मबल* - गहन तप और विभिन्न साधनाओं से स्वयं को साधकर प्राप्त किया जाता है। शरीर भाव से ऊपर जाकर स्वयं की चेतना से जुड़कर प्राप्त किया जा सकता है। तप मार्ग की भटकन और अहंकार आत्मबल को दीमक की तरह नष्ट कर सकते हैं।
*ब्रह्मबल* - जब चेतना के स्तर पर नर और नारायण एक हो जाते हैं, शिष्य और गुरु एक हो जाते है, जब जीव और ब्रह्म एक हो जाते हैं तो ब्रह्मबल असीमित प्राप्त होता है। इसमें जीव एक नल की टोटी समान होता है जिसका कनेक्शन परब्रह्म से होता है। अतः साधक का सविता में विलय, समिधा का यज्ञ में विलय, जीव का ब्रह्म में आहूत होने पर ब्रह्मबल मिलता है। ब्रह्मबल कोई क्षीण नहीं कर सकता,जब मैं होगा ही नहीं तो अहंकार का प्रश्न ही नहीं बचेगा। शरीर एक ग्लास होगा और ब्रह्मतत्व जब भरा होगा इसे ब्रह्मबल प्राप्ति कहते हैं।
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