*भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा*
(कॉलेज में गपशप चल रही होती है, सब मूवी देखने का प्लान बनाते हैं)
*रवि* - प्लीज़ सब अपना नाम कन्फर्म करो, जिससे टिकट बना लूँ। फिरोज, गिरी और कोमल ने कल ही कन्फर्म कर दिया था।
*तृप्ति* - हांजी मेरी और रानी का तो कन्फर्म है।
*महेश* - मेरा भी..
*ईषना* - सॉरी, मैं कल नहीं आ पाऊंगी, कल मुझे एक स्कूल जाना है मासी के साथ ।
*तृप्ति* - किसका एडमिशन करवाने? मासी के बेटे का?
*महेश* - लेकिन वो ऑलरेडी शेलोम में पढ़ रहा है? क्या स्कूल चेंज करवा रहे हो?
*ईषना* - अरे नहीं बाबा, एडमिशन के लिए नहीं जा रहे। हम लोग अखिल विश्व गायत्री परिवार के सदस्य हैं, स्कूलों में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के आयोजन हेतु बात करने जारहे हैं।
*तृप्ति* - अरे, ये कौन सी परीक्षा है? और इसे कौन ऑर्गनाइज करवाता है और क्यूँ? इसका फायदा क्या है?
*ईषना* - इसे अखिलविश्व गायत्री परिवार पूरे भारत मे ऑर्गनाइज करवाता है। हमारे जैसे कार्यकर्ता इसमे सहयोग करते हैं और प्रतिवर्ष लाखों बच्चे इसमें भागीदारी करते हैं।
*रवि* - वो तो ठीक है, लेकिन कोई स्कूल अपने यहां यह परीक्षा क्यूँ करवाएगा?
*ईषना* - देखो, यदि तुम फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और जापान इत्यादि देशों में जाकर -उनके स्कूली पाठ्यक्रम को देखोगे तो तुम्हें पता चलेगा कि सभी देश में अपने बच्चों में राष्ट्रीयता का भाव जगाने के लिए और उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए बचपन से ही अपनी संस्कृति पढ़ाते है। सभी बच्चों को अपने देश के हीरो, कवि, वैज्ञानिक, अविष्कार इत्यादि के साथ सभ्यता संस्कृति पता है। लेकिन हमारे देश के बच्चों को नहीं पता...
क्यूंकि दुर्भाग्यवश, हमारे देश पर अंग्रेजों ने शासन किया। गुलाम देश मे जन्मे लोग देश की आज़ादी के लिए लड़े। विदेशों में जाकर पढ़ के आये। क्यूंकि ये विदेशों में पढ़े तो इन्हें भारतीय संस्कृति का ज्ञान ही नहीं था और इन्होंने ने ही संविधान के साथ स्कूली पाठ्यक्रम बनाया, वक्त इनके पास ज्यादा था नहीँ और देश तुरन्त आज़ाद हुआ था तो पाश्चत्य को पूरा का पूरा कॉपी पेस्ट करके स्कूली पाठ्यक्रम बना दिया।
इसके कारण क्या हुआ कि बच्चे साक्षर तो हुए लेकिन सार्थक नहीं बने। ज्ञानवान हुए लेकिन गुणवान नहीं हुए। अंग्रेजी शिक्षा ने बच्चों की देश के प्रति जिम्मेदारी का भाव और आत्मीयता का भाव ही खत्म कर दी, माता पिता के प्रति सम्मान खत्म कर दिया और भरतीय संस्कृति के ज्ञान को भुला कर, उनके अंदर से राष्ट्र भक्ति खत्म कर दी, और उनमें कायरता गढ़ दी। पेट प्रजनन के लिए नौकरी की मानसिकता गढ़ दी। आज हम सर्विस इंडस्ट्री में आगे हैं, हम फ़िल्म, टीवी सीरियल, विज्ञापन में हॉलीवुड की कॉपी कर रहे हैं, टेक्नोलॉजी में भी कॉपी कर रहे हैं, प्रत्येक क्षेत्र में कॉपी चल रहा है, नकल में बेस्ट हो गए हैं।
*ऋत्विज* सहमत हूँ, जो भारत देश विज्ञान और धर्म के इनोवेशन से दुनियां पर राज्य कर रहा था, आज उसी देश मे इनोवेशन कहीं नहीं दिखता। इजरायल और जापान जैसा छोटा सा देश भी इनोवेशन में भारत से आगे है।
हमारे पास दुनियां के सर्वश्रेष्ठ ब्रेन है, लेकिन घर से लेकर, स्कूल, कॉलेज, राजनीति, फ़िल्म इंडस्ट्री और कॉरपोरेट तक सर्वत्र कॉपी पेस्ट पाश्चात्य का चल रहा है।
कुछ देशभक्त लोग जुट गए हैं इसे बदलने में...
*ईषना* -इसका कारण है, यदि बच्चा स्कूल में सुभाषचंद्र बोष, भगत सिंह, महाराणा प्रताप, विवेकानंद, महर्षि अरविंद और शिवाजी को पढ़ेगा तब तो देश भक्ति जगेगी। पाश्चात्य वीरों को पढ़कर वो अपने देश की संस्कृति न समझ सकेगा।
*महेश* - यह बात तो सत्य है, इतने इतने महान कवि, वैज्ञानिक, दार्शनिक, वीर योद्धा, योग गुरु अपने देश मे हुए लेकिन इस देश के पाठ्यक्रम में उन्हें पढ़ाया ही नहीं जाता।
*महेश* - उस दिन भगत सिंह की फ़िल्म देखा तो सचमुच जोश आ गया देश के लिए कुछ कर गुजरने का।
*रवि* - हां एक दिन मैंने गूगल किया तो पता चला कि कितनी सारी चींजे भारत की देन है लेकिन हम लोगों को कभी न पढ़ाया गया और न ही बताया गया।
*महेश* - अगर हमारे देश ने ज़ीरो (0) और दशमलव (.) न दिया होता तो सोचो क्या वर्तमान गणित कोई अस्तित्व रहता। विवेकानन्द के ज्ञान का तो विश्व मे कोई समानता नहीं कर सकता।
*तृप्ति* - हां, देखो न प्राचीन ऋषि पूरे के पूरे रिसर्चर वैज्ञानिक थे। एक दिन डिस्कवरी चैनल में देख रही थी कि शल्य चिकित्सा का उद्गम भारत से ही हुआ है। सचमुच गर्व होता है जब ये सब पता चलता है।
*ईषना* - लेकिन यह सब देश के बारे में पता ही न चले तब, क्या गर्व करोगे? रवि ने अगर गूगल न किया होता और तुमने यदि तुमने डिस्कवरी न देखी होती और महेश ने भगतसिंह की फ़िल्म न देखी होती तो क्या देश पर गर्व होता? क्या ये सब बच्चो को बचपन से नहीं पढ़ाया जाना चाहिए?
ख़ुद ही सोचो, हमारे देश का वो युवा जो नशे में चार बोतल वोद्का का गाना गाता हो,लड़कियों को देख के सिटी बजाता हो उससे देश भक्ति या राष्ट्र निर्माण की उम्मीद की जा सकती है?
देश की वो लड़कियां जो सजने संवरने के पीछे पागल है, अंग प्रदर्शन में व्यस्त है, पार्टी क्लब और फैशन जिनके लिए सब कुछ है इनसे देश का भविष्य संवारने की उम्मीद क्या की जा सकती है?
ये सब कुकर्म पाश्चत्य की ही देन है, पशुवत जीवन की खुली छूट ही आधुनिकता का पर्याय बन गया है। इस आधुनिकता ने देशभक्ति को निगल लिया है।
*ऋत्विज* - बात तो सही है सब एक अच्छी जॉब, एक घर, शादी, बच्चे और खुद की मौज मस्ती के अतिरिक्त कुछ नहीं सोच रहे। मां-बाप की ही परवाह नहीं, तो देश भक्ति क्या होगी?
*महेश* - वो सब तो ठीक है लेकिन हम सरकार में नहीं है न ही हमारे पास स्कूली पाठ्यक्रम बदलने का अधिकार है।
*ईषना* - हम शिक्षा व्यवस्था तो नहीं बदल सकते, लेकिन कुछ तो जरूर कर सकते हैं। हम स्वयं भारतीय संस्कृति के मूलभूत सिद्धांत और भारत द्वारा दिये विश्व को अजस्र अनुदान पढ़के कुछ बच्चो को तो पढ़ा ही सकते हैं बाल सँस्कार शाला चला कर, भारतीय संस्कृति परीक्षा स्कूलों में आयोजित करवा के थोड़ा बहुत तो बच्चो के अंदर राष्ट्र के प्रति गौरव भर ही सकते हैं। युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, और भारतीय संस्कृति के प्रकाण्ड विद्वान। उन्होंने भारतीय संस्कृति के ज्ञान-विज्ञान को 3200 पुस्तकों में लिखकर हम सबको फ्री ऑनलाइन उपलब्ध करवाया है। प्रिंटिंग मूल्य पर खरीद भी सकते हो। उन्हीं की युगनिर्माण योजना का एक अंश भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा है।
*रवि* - ईषना मैं भी कल फ़िल्म देखने नहीं जाऊंगा। तुम्हारे साथ भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा को समझूंगा और कम से कम एक स्कूल में तो भारतीय संस्कृति परीक्षा जरूर करवाऊंगा।
(सब रवि के लिए ताली बजाते है, और सभी एक एक स्कूल में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा करवाने का संकल्प लेते हैं। सब एक साथ बोल पड़ते हैं- अब इस देश मे पुनः इनोवेशन शुरू होगा। देखो नौकरी हम सब तो करेंगे ही गुजारे के लिए, लेकिन कुछ न कुछ देश के लिए इनोवेटिव भी जरूर करेंगे। इस गर्मी की छुट्टी में बाल सँस्कार शाला भी चलाएंगे। खुद भी भारतीय संस्कृति को समझेंगे और कुछ बच्चो को भी समझाएंगे।)
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
www.awgp.org
www.diya.net.in
www.dsvv.ac.in
http://www.balsanskarshala.com
(कॉलेज में गपशप चल रही होती है, सब मूवी देखने का प्लान बनाते हैं)
*रवि* - प्लीज़ सब अपना नाम कन्फर्म करो, जिससे टिकट बना लूँ। फिरोज, गिरी और कोमल ने कल ही कन्फर्म कर दिया था।
*तृप्ति* - हांजी मेरी और रानी का तो कन्फर्म है।
*महेश* - मेरा भी..
*ईषना* - सॉरी, मैं कल नहीं आ पाऊंगी, कल मुझे एक स्कूल जाना है मासी के साथ ।
*तृप्ति* - किसका एडमिशन करवाने? मासी के बेटे का?
*महेश* - लेकिन वो ऑलरेडी शेलोम में पढ़ रहा है? क्या स्कूल चेंज करवा रहे हो?
*ईषना* - अरे नहीं बाबा, एडमिशन के लिए नहीं जा रहे। हम लोग अखिल विश्व गायत्री परिवार के सदस्य हैं, स्कूलों में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के आयोजन हेतु बात करने जारहे हैं।
*तृप्ति* - अरे, ये कौन सी परीक्षा है? और इसे कौन ऑर्गनाइज करवाता है और क्यूँ? इसका फायदा क्या है?
*ईषना* - इसे अखिलविश्व गायत्री परिवार पूरे भारत मे ऑर्गनाइज करवाता है। हमारे जैसे कार्यकर्ता इसमे सहयोग करते हैं और प्रतिवर्ष लाखों बच्चे इसमें भागीदारी करते हैं।
*रवि* - वो तो ठीक है, लेकिन कोई स्कूल अपने यहां यह परीक्षा क्यूँ करवाएगा?
*ईषना* - देखो, यदि तुम फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और जापान इत्यादि देशों में जाकर -उनके स्कूली पाठ्यक्रम को देखोगे तो तुम्हें पता चलेगा कि सभी देश में अपने बच्चों में राष्ट्रीयता का भाव जगाने के लिए और उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए बचपन से ही अपनी संस्कृति पढ़ाते है। सभी बच्चों को अपने देश के हीरो, कवि, वैज्ञानिक, अविष्कार इत्यादि के साथ सभ्यता संस्कृति पता है। लेकिन हमारे देश के बच्चों को नहीं पता...
क्यूंकि दुर्भाग्यवश, हमारे देश पर अंग्रेजों ने शासन किया। गुलाम देश मे जन्मे लोग देश की आज़ादी के लिए लड़े। विदेशों में जाकर पढ़ के आये। क्यूंकि ये विदेशों में पढ़े तो इन्हें भारतीय संस्कृति का ज्ञान ही नहीं था और इन्होंने ने ही संविधान के साथ स्कूली पाठ्यक्रम बनाया, वक्त इनके पास ज्यादा था नहीँ और देश तुरन्त आज़ाद हुआ था तो पाश्चत्य को पूरा का पूरा कॉपी पेस्ट करके स्कूली पाठ्यक्रम बना दिया।
इसके कारण क्या हुआ कि बच्चे साक्षर तो हुए लेकिन सार्थक नहीं बने। ज्ञानवान हुए लेकिन गुणवान नहीं हुए। अंग्रेजी शिक्षा ने बच्चों की देश के प्रति जिम्मेदारी का भाव और आत्मीयता का भाव ही खत्म कर दी, माता पिता के प्रति सम्मान खत्म कर दिया और भरतीय संस्कृति के ज्ञान को भुला कर, उनके अंदर से राष्ट्र भक्ति खत्म कर दी, और उनमें कायरता गढ़ दी। पेट प्रजनन के लिए नौकरी की मानसिकता गढ़ दी। आज हम सर्विस इंडस्ट्री में आगे हैं, हम फ़िल्म, टीवी सीरियल, विज्ञापन में हॉलीवुड की कॉपी कर रहे हैं, टेक्नोलॉजी में भी कॉपी कर रहे हैं, प्रत्येक क्षेत्र में कॉपी चल रहा है, नकल में बेस्ट हो गए हैं।
*ऋत्विज* सहमत हूँ, जो भारत देश विज्ञान और धर्म के इनोवेशन से दुनियां पर राज्य कर रहा था, आज उसी देश मे इनोवेशन कहीं नहीं दिखता। इजरायल और जापान जैसा छोटा सा देश भी इनोवेशन में भारत से आगे है।
हमारे पास दुनियां के सर्वश्रेष्ठ ब्रेन है, लेकिन घर से लेकर, स्कूल, कॉलेज, राजनीति, फ़िल्म इंडस्ट्री और कॉरपोरेट तक सर्वत्र कॉपी पेस्ट पाश्चात्य का चल रहा है।
कुछ देशभक्त लोग जुट गए हैं इसे बदलने में...
*ईषना* -इसका कारण है, यदि बच्चा स्कूल में सुभाषचंद्र बोष, भगत सिंह, महाराणा प्रताप, विवेकानंद, महर्षि अरविंद और शिवाजी को पढ़ेगा तब तो देश भक्ति जगेगी। पाश्चात्य वीरों को पढ़कर वो अपने देश की संस्कृति न समझ सकेगा।
*महेश* - यह बात तो सत्य है, इतने इतने महान कवि, वैज्ञानिक, दार्शनिक, वीर योद्धा, योग गुरु अपने देश मे हुए लेकिन इस देश के पाठ्यक्रम में उन्हें पढ़ाया ही नहीं जाता।
*महेश* - उस दिन भगत सिंह की फ़िल्म देखा तो सचमुच जोश आ गया देश के लिए कुछ कर गुजरने का।
*रवि* - हां एक दिन मैंने गूगल किया तो पता चला कि कितनी सारी चींजे भारत की देन है लेकिन हम लोगों को कभी न पढ़ाया गया और न ही बताया गया।
*महेश* - अगर हमारे देश ने ज़ीरो (0) और दशमलव (.) न दिया होता तो सोचो क्या वर्तमान गणित कोई अस्तित्व रहता। विवेकानन्द के ज्ञान का तो विश्व मे कोई समानता नहीं कर सकता।
*तृप्ति* - हां, देखो न प्राचीन ऋषि पूरे के पूरे रिसर्चर वैज्ञानिक थे। एक दिन डिस्कवरी चैनल में देख रही थी कि शल्य चिकित्सा का उद्गम भारत से ही हुआ है। सचमुच गर्व होता है जब ये सब पता चलता है।
*ईषना* - लेकिन यह सब देश के बारे में पता ही न चले तब, क्या गर्व करोगे? रवि ने अगर गूगल न किया होता और तुमने यदि तुमने डिस्कवरी न देखी होती और महेश ने भगतसिंह की फ़िल्म न देखी होती तो क्या देश पर गर्व होता? क्या ये सब बच्चो को बचपन से नहीं पढ़ाया जाना चाहिए?
ख़ुद ही सोचो, हमारे देश का वो युवा जो नशे में चार बोतल वोद्का का गाना गाता हो,लड़कियों को देख के सिटी बजाता हो उससे देश भक्ति या राष्ट्र निर्माण की उम्मीद की जा सकती है?
देश की वो लड़कियां जो सजने संवरने के पीछे पागल है, अंग प्रदर्शन में व्यस्त है, पार्टी क्लब और फैशन जिनके लिए सब कुछ है इनसे देश का भविष्य संवारने की उम्मीद क्या की जा सकती है?
ये सब कुकर्म पाश्चत्य की ही देन है, पशुवत जीवन की खुली छूट ही आधुनिकता का पर्याय बन गया है। इस आधुनिकता ने देशभक्ति को निगल लिया है।
*ऋत्विज* - बात तो सही है सब एक अच्छी जॉब, एक घर, शादी, बच्चे और खुद की मौज मस्ती के अतिरिक्त कुछ नहीं सोच रहे। मां-बाप की ही परवाह नहीं, तो देश भक्ति क्या होगी?
*महेश* - वो सब तो ठीक है लेकिन हम सरकार में नहीं है न ही हमारे पास स्कूली पाठ्यक्रम बदलने का अधिकार है।
*ईषना* - हम शिक्षा व्यवस्था तो नहीं बदल सकते, लेकिन कुछ तो जरूर कर सकते हैं। हम स्वयं भारतीय संस्कृति के मूलभूत सिद्धांत और भारत द्वारा दिये विश्व को अजस्र अनुदान पढ़के कुछ बच्चो को तो पढ़ा ही सकते हैं बाल सँस्कार शाला चला कर, भारतीय संस्कृति परीक्षा स्कूलों में आयोजित करवा के थोड़ा बहुत तो बच्चो के अंदर राष्ट्र के प्रति गौरव भर ही सकते हैं। युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, और भारतीय संस्कृति के प्रकाण्ड विद्वान। उन्होंने भारतीय संस्कृति के ज्ञान-विज्ञान को 3200 पुस्तकों में लिखकर हम सबको फ्री ऑनलाइन उपलब्ध करवाया है। प्रिंटिंग मूल्य पर खरीद भी सकते हो। उन्हीं की युगनिर्माण योजना का एक अंश भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा है।
*रवि* - ईषना मैं भी कल फ़िल्म देखने नहीं जाऊंगा। तुम्हारे साथ भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा को समझूंगा और कम से कम एक स्कूल में तो भारतीय संस्कृति परीक्षा जरूर करवाऊंगा।
(सब रवि के लिए ताली बजाते है, और सभी एक एक स्कूल में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा करवाने का संकल्प लेते हैं। सब एक साथ बोल पड़ते हैं- अब इस देश मे पुनः इनोवेशन शुरू होगा। देखो नौकरी हम सब तो करेंगे ही गुजारे के लिए, लेकिन कुछ न कुछ देश के लिए इनोवेटिव भी जरूर करेंगे। इस गर्मी की छुट्टी में बाल सँस्कार शाला भी चलाएंगे। खुद भी भारतीय संस्कृति को समझेंगे और कुछ बच्चो को भी समझाएंगे।)
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
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