*दी, कुछ ढेर सारे प्रश्न हैं लेकिन सबका कृपया समाधान दें..*
भाई प्रश्न के उत्तर मैं अपने अनुभव के अनुसार दे रही हूँ, यही 100% सत्य है इसे मैं नहीं कह सकती। गुरुदेव के साहित्य का अध्ययन करती हूँ , उसी से जो मैंने समझा उसी के अनुसार उदाहरण सहित उत्तर दे रही हूँ।आपके प्रश्न गूढ़ हैं फिर भी उत्तर देने का प्रयास कर रही हूँ।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
प्रश्न - *उच्चस्तरीय साधनाओं के लिए क्या जंगल जा कर एकांत में तपस्या ज्यादा फलवती होती है या संसार मे गृहस्थ में रहकर?*
उत्तर - *गृहस्थ भक्त सन्यासी से ज्यादा श्रेष्ठ बताया गया है, यदि वो जनक की तरह राज्य होते हुए विरक्त है तो वह सन्यासियों से श्रेष्ठ है। युगऋषि की तरह लोककल्याणार्थ तप कर रहा है तो वो सन्यासियों से श्रेष्ठ लाभ प्राप्त करेगा..*
नारद और विष्णु भगवान का संवाद प्रसिद्ध है, जिसमें नारद जी और अन्य सन्यासियों को विष्णु भगवान ने जनक के पास भेजा था। जनक ने तेल का कटोरा देकर राज्य घुमाया और कहा एक बूंद गिरी तो सर धड़ से अलग कर देना। कोई भय वश कुछ देख ही नहीं पाया। तब जनक ने कहा मैं आत्म तत्व पर अंतदृष्टि केंद्रित करके राज्य करता हूँ। इसलिये देह रहते हुए भी विदेह हूँ, राज्य रहते हुये भी सन्यासी।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
प्रश्न - *उच्चस्तरीय योग साधना में शरीर के स्वास्थ्य और रखरखाव का कितना महत्त्व है? विभिन्न शारीरिक योग या अष्टांग योग का कितना महत्त्व है?*
उत्तर- *शरीर का स्वास्थ्य उच्चस्तरीय साधना में सहायक है, लेकिन जरूरी नहीं है। बिना शारीरिक योग साधना के भी गुरुभक्ति के सहारे उच्च स्तरीय साधना सम्भव है। चेतना के उच्च स्तर को प्राप्त किया जा सकता है।*
जनक के गुरु अष्टावक्र के पिता ने उन्हें आठ जगह से टेढ़े होने का श्राप दिया जिसके कारण वो अष्टांग योग न कर पाएं। लेकिन भला आंगन के टेढ़े होने से आकाश टेढ़ा होता है। साधना तो वास्तव में मन का सूक्ष्म भाग करता है जो स्थूल से जुड़ा नहीं। आत्म तत्व दर्शन हेतु अंतर्जगत में प्रवेश कर उच्च स्तरीय साधना हेतु शारीरिक क्षमता की भला क्या आवश्यकता ? अंतर्जगत में वाहन और शारीरिक पैरों की क्या आवश्यकता? अष्टावक्र और विवेकानंद की तरह उच्च स्तरीय साधनाएं सूक्ष्म स्तर पर सम्भव है😇। अष्टवक्र आठ जगह से टेढ़े थे , विवेकानंद और ठाकुर रामकृष्ण विभिन्न रोगों से ग्रसित थे। लेकिन उनके आत्मचेतना शिखर पर थी।
प्रश्न- *गुरुभक्ति बड़ी है या उच्चस्तरीय साधना*?
उत्तर - *गुरुभक्ति बड़ी है, जब भी कोई अवतारी चेतना भी जन्म लेती है तो गुरु वरण करती है। संदीपन जी कृष्ण जी के गुरु थे और वशिष्ठ जी श्रीराम चन्द्र जी के गुरु थे। गुरुदीक्षा में एकमात्र मन्त्र गायत्री मंत्र ही दिया जाता था। उच्चस्तरीय साधना में अतिमानसिक अंतर्जगत की यात्रा में सद्गुरु ही मदद कर सकता है, जिसने स्वयं सवा करोड़ गायत्री जप करके तुम्हारे साथ तुम्हारे अंतर्जगत में प्रवेश कर तुम्हारी चेतना को ऊपर उठा सके।*
अनाथ भी जीते है और एक समर्थ पिता के संरक्षण में एक पुत्र भी। जी तो दोनों रहे हैं,बस यही फर्क है बिना सदगुरु की साधना अर्थात साधना क्षेत्र में अनाथ की भांति प्रवेश करना। समर्थ सद्गुरु के साथ साधना क्षेत्र में प्रवेश करना अर्थात समर्थ पिता की जायज़ उत्तराधिकार के साथ शान से साधना क्षेत्र में प्रवेश करना।
🙏🏻🙏🏻
प्रश्न - *कोष क्या है? पँचकोशिय क्या है?*
उत्तर - *कोष अर्थात खज़ाना, पांच ख़ज़ानों की चाबी मिल जाना और उन्हें प्राप्त करने का अधिकार मिलना। क्रमशः अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्द मय कोष। ख़ज़ाने की खोज कभी आसान नहीं होती ये ध्यान रखें।*
आपने बहुत सारे प्रश्न भेजे हैं, इनके उत्तर कल दूंगी। आज के लिए इतना ही।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*अध्यात्म में और धार्मिकता में यही अंतर है कि-*
धार्मिक व्यक्ति स्वयं के मार्ग को श्रेष्ठ दूसरे को गौंड़ बताता है।
अध्यात्म कहता है सब मार्ग उस तक पहुंचेंगे बस भाव सही रखके श्रद्धा विश्वास से प्रयत्नशील रहें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन
भाई प्रश्न के उत्तर मैं अपने अनुभव के अनुसार दे रही हूँ, यही 100% सत्य है इसे मैं नहीं कह सकती। गुरुदेव के साहित्य का अध्ययन करती हूँ , उसी से जो मैंने समझा उसी के अनुसार उदाहरण सहित उत्तर दे रही हूँ।आपके प्रश्न गूढ़ हैं फिर भी उत्तर देने का प्रयास कर रही हूँ।
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प्रश्न - *उच्चस्तरीय साधनाओं के लिए क्या जंगल जा कर एकांत में तपस्या ज्यादा फलवती होती है या संसार मे गृहस्थ में रहकर?*
उत्तर - *गृहस्थ भक्त सन्यासी से ज्यादा श्रेष्ठ बताया गया है, यदि वो जनक की तरह राज्य होते हुए विरक्त है तो वह सन्यासियों से श्रेष्ठ है। युगऋषि की तरह लोककल्याणार्थ तप कर रहा है तो वो सन्यासियों से श्रेष्ठ लाभ प्राप्त करेगा..*
नारद और विष्णु भगवान का संवाद प्रसिद्ध है, जिसमें नारद जी और अन्य सन्यासियों को विष्णु भगवान ने जनक के पास भेजा था। जनक ने तेल का कटोरा देकर राज्य घुमाया और कहा एक बूंद गिरी तो सर धड़ से अलग कर देना। कोई भय वश कुछ देख ही नहीं पाया। तब जनक ने कहा मैं आत्म तत्व पर अंतदृष्टि केंद्रित करके राज्य करता हूँ। इसलिये देह रहते हुए भी विदेह हूँ, राज्य रहते हुये भी सन्यासी।
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प्रश्न - *उच्चस्तरीय योग साधना में शरीर के स्वास्थ्य और रखरखाव का कितना महत्त्व है? विभिन्न शारीरिक योग या अष्टांग योग का कितना महत्त्व है?*
उत्तर- *शरीर का स्वास्थ्य उच्चस्तरीय साधना में सहायक है, लेकिन जरूरी नहीं है। बिना शारीरिक योग साधना के भी गुरुभक्ति के सहारे उच्च स्तरीय साधना सम्भव है। चेतना के उच्च स्तर को प्राप्त किया जा सकता है।*
जनक के गुरु अष्टावक्र के पिता ने उन्हें आठ जगह से टेढ़े होने का श्राप दिया जिसके कारण वो अष्टांग योग न कर पाएं। लेकिन भला आंगन के टेढ़े होने से आकाश टेढ़ा होता है। साधना तो वास्तव में मन का सूक्ष्म भाग करता है जो स्थूल से जुड़ा नहीं। आत्म तत्व दर्शन हेतु अंतर्जगत में प्रवेश कर उच्च स्तरीय साधना हेतु शारीरिक क्षमता की भला क्या आवश्यकता ? अंतर्जगत में वाहन और शारीरिक पैरों की क्या आवश्यकता? अष्टावक्र और विवेकानंद की तरह उच्च स्तरीय साधनाएं सूक्ष्म स्तर पर सम्भव है😇। अष्टवक्र आठ जगह से टेढ़े थे , विवेकानंद और ठाकुर रामकृष्ण विभिन्न रोगों से ग्रसित थे। लेकिन उनके आत्मचेतना शिखर पर थी।
प्रश्न- *गुरुभक्ति बड़ी है या उच्चस्तरीय साधना*?
उत्तर - *गुरुभक्ति बड़ी है, जब भी कोई अवतारी चेतना भी जन्म लेती है तो गुरु वरण करती है। संदीपन जी कृष्ण जी के गुरु थे और वशिष्ठ जी श्रीराम चन्द्र जी के गुरु थे। गुरुदीक्षा में एकमात्र मन्त्र गायत्री मंत्र ही दिया जाता था। उच्चस्तरीय साधना में अतिमानसिक अंतर्जगत की यात्रा में सद्गुरु ही मदद कर सकता है, जिसने स्वयं सवा करोड़ गायत्री जप करके तुम्हारे साथ तुम्हारे अंतर्जगत में प्रवेश कर तुम्हारी चेतना को ऊपर उठा सके।*
अनाथ भी जीते है और एक समर्थ पिता के संरक्षण में एक पुत्र भी। जी तो दोनों रहे हैं,बस यही फर्क है बिना सदगुरु की साधना अर्थात साधना क्षेत्र में अनाथ की भांति प्रवेश करना। समर्थ सद्गुरु के साथ साधना क्षेत्र में प्रवेश करना अर्थात समर्थ पिता की जायज़ उत्तराधिकार के साथ शान से साधना क्षेत्र में प्रवेश करना।
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प्रश्न - *कोष क्या है? पँचकोशिय क्या है?*
उत्तर - *कोष अर्थात खज़ाना, पांच ख़ज़ानों की चाबी मिल जाना और उन्हें प्राप्त करने का अधिकार मिलना। क्रमशः अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्द मय कोष। ख़ज़ाने की खोज कभी आसान नहीं होती ये ध्यान रखें।*
आपने बहुत सारे प्रश्न भेजे हैं, इनके उत्तर कल दूंगी। आज के लिए इतना ही।
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*अध्यात्म में और धार्मिकता में यही अंतर है कि-*
धार्मिक व्यक्ति स्वयं के मार्ग को श्रेष्ठ दूसरे को गौंड़ बताता है।
अध्यात्म कहता है सब मार्ग उस तक पहुंचेंगे बस भाव सही रखके श्रद्धा विश्वास से प्रयत्नशील रहें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन
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