Sunday, 18 February 2018

आध्यात्मिकता के विद्यार्थी जीवन में क्या लाभ है?लक्ष्य प्राप्ति में अध्यात्म कितना जरुरी है?

प्रश्न - *आध्यात्मिकता के विद्यार्थी जीवन में क्या लाभ है?लक्ष्य प्राप्ति में अध्यात्म कितना जरुरी है?*

(धन्यवाद भाई, आपके प्रश्न सटीक और समसामयिक हैं, युगऋषि के साहित्य अध्ययन अनुसार उत्तर देने में आनन्द अनुभूति हो रही है।)

*उत्तर* - *अध्यात्मिकता* - प्रतिभा परिष्कार(Skill/Telent Refinement) करती है, और अंतर्दृष्टि विकसित करके निज सामर्थ्य को आंककर उसी दिशा में बुद्धिबल का सही प्रयोग सुनिश्चित करती है।

*पाश्चात्य प्रभावित लक्ष्य(Goal)* - दो प्रकार का आजकल प्रचलित है, कैरियर के साथ सुख सुविधा और विवाह के साथ बच्चे।

वास्तव में ये शार्ट टर्म लक्ष्य है जो क्षणिक सुख दे सकते हैं, क्षणिक मोटिवेशन दे सकते हैं। ये लक्ष्य पशुवत जीवन पेट-प्रजनन निमित्त जीवन खपाने का है। वासनाएं-कामनाये दुष्पूर है बिन पेंदी का बर्तन है जो कभी भरेगा ही नहीं। अतः और ज़्यादा पाने का लालच/तृष्णा का प्रेत कभी चैन से नहीं बैठने देगा, तनावपूर्ण जीवन नशे की ओर धकेलेगा और पथ भ्रष्ट होने की संभावना बनी रहेगी। ऐसी स्थिति में संकुचित स्वार्थी दृष्टिकोण विकसित होता है।

पाश्चात्य प्रभावित लोग पढ़ाई मात्र क्लर्क/सेवक की सोच से करते हैं, नौकरी और सैलरी इससे ज्यादा कुछ नहीं।

यहां पशुवत जीवन जियेगा बालक। ईश्वर पर अविश्वास और आत्म सत्ता पर अविश्वास इन्हें चार दिन की जिंदगी खाओ पियो ऐश करो के सिद्धांत पर चलाएगी। ये मन के गुलाम बनेंगे।  इंद्रियों की गुलामी इनके शरीर को रोग से भर देगी। स्वाद के पीछे पागल होंगे और खाने के लिये जियेंगे।

शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच कस्टमर वेंडर का रिश्ता होगा, माता -पिता के साथ काम निकालो और आगे बढ़ो वाला रिश्ता होगा। समाज का दोहन  होगा। इनका वैवाहिक जीवन भी कलहपूर्ण होता है क्यूंकि अधिकार इन्हें याद होता है कर्तव्य भूल जाते है।

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*अध्यात्म प्रभावित जीवन लक्ष्य(Life Goal)* - अध्यात्म पूरे जीवन को एक प्रोजेक्ट की तरह लेने को कहता है। मनुष्य जीवन की गरिमा समझते हुए, स्व कल्याण के साथ साथ- मनुष्य के सामाजिक प्राणी होने के नाते समाज के प्रति उत्तरदायित्व के निर्वहन को प्रेरित करता है।

ऐसी स्थिति में एक वृहद दृष्टिकोण विकसित होता है, मनःस्थिति प्रबंधन का गुण विकसित होने से कैरियर प्राप्ति भी आसान हो जाती है। क्योंकि सामर्थ्य और समझदारी दोनो साथ साथ चलता है। भटकने की संभावना कम हो जाती है क्यूंकि तनाव प्रबन्धन और जीवन जीने की कला विद्यार्थी को आ जाती है। जॉब के वक्त भी वो बेहतर आउटपुट देते हैं, घर गृहस्थी आनन्दमय होती है और परिवार निर्माण पर ध्यान देते हैं।

अध्यात्म प्रभावित लोग पढ़ाई करके कुछ डिफरेंट करना चाहते है, जो भी करेंगे बेस्ट करेंगे। देश समाज की उन्नति भी उनके दिमाग में लक्ष्य निर्धारण के वक्त रहती है। सैलरी और नौकरी दोनों ही केस में रहेगी।

यहां देवमानव बन जीवन जियेगा बालक। शरीर को भगवान का मन्दिर मानकर आरोग्य की रक्षा करेगा, योग-प्राणायाम-जप-ध्यान-स्वाध्याय से शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य का सम्वर्धन करेगा।ये मन के स्वामी बनेंगे। इंद्रियां वश में रखेंगे। स्वाद से ज्यादा स्वास्थ्यपरक चीज़े खाएंगे और स्वस्थ रहेंगे। जीने के लिए खाएंगे।

शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच गुरु- शिष्य का रिश्ता होगा, माता -पिता देवतुल्य पूजनीय होंगे , उनकी सेवा करेंगे बालक। समाज के कल्याण के लिए समयदान और अंशदान  होगा। इनका वैवाहिक जीवन आनन्दमय रहेगा क्यूंकि ये कर्तव्य याद रखेंगे और अधिकारों की उपेक्षा कर प्रेम-सहकार से जीवन व्यतीत करने में विश्वास रखेंगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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