Thursday, 22 February 2018

भगवान ने आनन्दमय सृष्टि की रचना की है

*भगवान ने आनन्दमय सृष्टि की रचना की है*

भगवान ने समस्त जीव को बनाया तथा उनके जीवन निर्वहन हेतु प्राकृतिक संसाधन से धरा पर सबकुछ उपलब्ध किया।

भगवान ने सुख-दुःख का निर्माण नहीं किया, सुख-दुःख का निर्माण मनुष्य स्वयं अपनी मनःस्थिति से करता है, कभी लोभ में, ईर्ष्या में, अहंकार में तो कभी प्रेम में।

उदाहरण - समस्त धातुओं की तरह भगवान ने स्वर्ण भी एक धातु बनाई। समस्त पत्थरों की तरह हीरा भी बनाया। लेकिन स्वर्ण और हीरे को बहुमूल्य बनाया इंसानी सोच ने। इसके मिलने पर सुख और इसके खोने पर दुःख, यह इंसानी दिमाग़ की उपज है।

भगवान और अन्य प्राणियों के लिए अन्य धातु और स्वर्ण में कोई फर्क नहीं, हीरा भी सभी कंकर पत्थर की तरह ही एक पदार्थ है।

मनुष्य की इच्छाएं वासनाएं सुख-दुःख का निर्माण करती हैं। जो चीज़ भगवान ने बनाई ही नहीं तो उसे देने या उसे दूर करने में वो इंसान की मदद भला कैसे करे?

वासना-इच्छा को मन ने पकड़ा है इसलिए दुःख है, वासना-इच्छा मन से  त्याग  दो तो इस धरती पर कहीं कोई दुःख नहीं, कहीं कोई सुख नहीं। सर्वत्र सृष्टि के कण कण में आनन्दानुभव में मग्न हो सकते हैं। जो परमात्मा सोते हुए पक्षी को कभी पेड़ से गिरने नहीं देता, गर्भ में भी पोषण देता है। उसकी सृष्टि में कहीं कोई दुःख नहीं है, सर्वत्र आनन्द है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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