Monday, 19 February 2018

क्या आराधना(समाजसेवा) के साथ साधना जरूरी है

*प्रश्न:*- आज के युवाओं में दो तरह का ग्रुप नज़र आता है, एक जो पूरी तरह मौज मस्ती में लगे है और स्वार्थपरक जिंदगी जी रहे है। दूसरा ग्रुप है जो कुछ अच्छा करना चाहते है, अपने लिए भी और समाज के लिए भी। (जैसे DIYA से जुड़े युवा जो स्लम एरिया के बच्चों को पढ़ा रहे है, कोलकाता में वृक्ष लगा रहे है। और मै जिस इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर हूँ वहां के युवा भी  कुछ ऐसा ही कार्य कर रहे है।) ये युवा भले ही साधना-उपासना नहीं कर रहे पर आराधना में लगे हुए है। *ये आध्यात्मिक कहलायेंगे या नहीं?*

उत्तर - *ये बच्चे जो आराधना-समाज सेवा कर रहे हैं 100% आध्यात्मिक कहलायेंगे*, इसे इस कहानी से समझते हैं:-

एक राजा ने दो सेवक रखे, दो अलग अलग अपने राज उद्यान और बाग बगीचों की देखरेख के लिए,-

एक सेवक ने राजा की तस्वीर बनाई, उसका सुंदर सा मन्दिर बनवाया और रोज पूजन अर्चन करता। लेकिन बाग बगीचे के रख रखाव पर ध्यान न देता। तीन वर्ष में हरा भरा बगीचा उजाड़ लगने लगा।

दूसरे सेवक ने राजा की तस्वीर भी नहीं बनाई, न ही उसकी पूजा अर्चना की। लेकिन पूरे मनोयोग से बाग बगीचे का रख रखाव करता। तीन वर्ष में बगीचा पहले से ज्यादा हरा भरा और सुंदर बन गया।

तीन वर्ष बाद जब राजा ने सर्वेक्षण किया तो पहले पर क्रोधित और दूसरे पर प्रशन्न हुआ। इसी तरह यह विश्व उद्यान उस परमेश्वर का बाग बगीचा है। जो गरीब बच्चों को पढ़ा रहे हैं, या वृक्ष गंगा अभियान में लग कर वृक्षारोपण और गंगा सफ़ाई अभियान कर रहे है उनको घर या जंगल मे तप कर रहे व्यक्तियों से ज्यादा पुण्य परमार्थ मिलेगा।
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लेकिन ये बच्चे यदि दैनिक कम से कम आधे घण्टे की भी उपासना नियमित कर लेंगे तो इनके अन्तः की भी सफाई होगी, सद्गुणों का वृक्षारोपण अंतर्जगत में होगा। अन्तः मन का बगीचा इन्हें आनन्दमय अवस्था मे रखेगा और ये कभी भी सन्मार्ग से नहीं भटकेंगे। आराधना की कठिनाइयों को झेल सकेंगे।

*इसलिए त्रिपदा गायत्री साधना - उपासना-साधना-अराधना अनिवार्य है। कोई कम ज्यादा चलेगा, लेकिन किसी पक्ष की अनुपस्थिति संतुलन नहीं देती। अध्यात्म संतुलन का नाम है।*

अभ्यस्त होने पर जप और ध्यान चलते फिरते भी किया जा सकता है। स्वयं को साधने के लिए कुछ क्षण तो पहले शरीर को फिर मन को ठहराना ही पड़ेगा। जप-ध्यान कुछ क्षण तो बैठकर ही करना होगा।स्वाध्याय चित्त की सफाई के लिए अति अनिवार्य है।

*आराधना -अर्थात सेवा का पथ कठिन है, इसमें निरन्तरता के लिए साधक बनना जरूरी है।* नहीं तो आराधना पथ पर बिना साधना रोज चलना सम्भव नहीं। 🙏🏻   *आदरणीय रवि भाई कोलकाता यदि साधक नहीं होते तो  लोगों को साथ लेकर इस वृक्षारोपण अभियान में निरन्तरता न ला पाते। क्यूंकि प्रत्येक रविवार उन्हें पहले स्वयं पर विजय प्राप्त करना होता है, फिर वृक्षारोपण हो पाता है। लीडर को सबसे ज्यादा कठिनाई झेलनी पड़ती है, सहयोगी साधक हों या न हों, लेकिन लीडर का साधक होना 100% अनिवार्य है। क्योंकि इंजन(लीडर) में तेल(साधके) होना जरूरी है।*

आराधना की प्रसिद्धि को पचाने हेतु भी साधना जरूरी है, अन्यथा भटकने में वक्त नहीं लगता है। आराधना की जड़ साधना से ही फलवती होती है। आदरणीय रवि भाई की तरह जो भी भाई या बहन साधक होगा वो आराधना की कोई भी गतिविधि शुरू करे सफलता निश्चित है। निरन्तरता निश्चित है। साधक स्तर के व्यक्ति की निर्मल हृदय से लिया संकल्प स्वयं महाकाल विविध रूप लेकर उसकी मदद करने आते है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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