Thursday, 22 February 2018

राष्ट्रहित यह पत्र/लेटर सब तक पहुंचाएं

🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *राष्ट्रहित यह पत्र/लेटर सब तक पहुंचाएं* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🙏🏻

विषय - *देश का सुनहरा भविष्य बनाओ, विद्यार्थियों को इन्नोवेटिव बनाओ, इनमें राष्ट्रभक्ति जगाओ,कृषि व्यवस्था को उद्योग के साथ साथ उन्नत बनाओ*

आत्मीय प्रिंसिपल एवं स्कूल प्रसाशन, अध्यापकगण एवं विद्यार्थियों के माता-पिता,

भारत एक कृषि प्रधान अर्थ व्यवस्था है, जिसमें 80% कृषि और 20% उद्योग है। बढ़ती जनसंख्या परेशानी का सबब है, लाखों बच्चे रोज जन्म ले रहे हैं। करोङो बच्चे विभिन्न स्कूलों में एडमिशन लेकर जिस नौकरी व्यवसाय का स्वप्न  लिए पढ़ाई कर रहे हैं, वास्तव में उतनी जॉब भारत तो क्या पूरे विश्व में उपलब्ध नहीं है। सब डॉक्टर इंजीनियर वकील और विभिन्न व्यवसायी बनना चाहते है.. कृषक कोई नहीं बनना चाहता...जब अन्न कोई उगाएगा ही नहीं तो खरीदोगे क्या...और खाओगे क्या...कभी सोचा है? तो स्कूल में किसान को सबसे ज्यादा सम्मानित व्यक्ति बताएं...किसान को और सैनिक जवान को सम्मान दें।

जॉब में तो हाई कम्पटीशन है, मध्यमवर्गीय लोग बड़े अमाउंट का लोन लेकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। उदाहरण - उन सभी 9 लाख लोन लेकर MBA किये बच्चे को यदि बड़ा पैकेज नहीं मिला तो वो लोन कैसे चुकाएगा, घर गृहस्थी कैसे बसाएगा?

विभिन्न सरकारी जॉब की कोचिंग देने वाले इंस्टीट्यूट दो लाख एवरेज फीस लेते हैं, उनमें से मात्र 5% पास होते हैं उनकी फ़ोटो टीवी अख़बार में छपती है। लेकिन कोई यह नहीं पूंछता उन 95% विद्यार्थियों का क्या हुआ? उनकी फ़ीस जो कभी रिटर्न नहीं होगी, उनका ख़र्च किया समय जो कभी रिटर्न नहीं होगा, घर मे माता -पिता के उदास लटके चेहरे जो देखे नहीं जाएंगे उनसे, सबसे बड़ा मेंटल टॉर्चर यदि मां ने अपने गहने या पिता ने अपना घर गिरवी रख के या लोन लेकर पढ़ाया होगा तो वो कैसे चुकेगा? कुछ विद्यार्थी यह मानसिक दबाव झेल जाएंगे, कुछ समाज से बदला लेने के लिए आपराधिक प्रवृत्ति की ओर निकल जाएंगे, कुछ ख़ुद को समाप्त कर लेंगे और कुछ नशे में रोज तिल तिल मरेंगे।

हम यहां उन 95% विद्यार्थियों के भविष्य को लेकर आपसे बात करना चाह रहे हैं। माता-पिता, अध्यापकगण और स्कूल प्रिंसिपल और प्रसाशन ने इन 95% बच्चों के लिए क्या सोचा है? इन्हें इनके हाल पर छोड़ना है या इन्हें कुछ ऐसा मानसिक रूप से तैयार करना है कि ये सब भी जिंदगी में कुछ न कुछ कर ही लें। सब बच्चे अपने सामर्थ्य को पहचान के खिलाड़ियों की तरह एक मैच हारने पर दूसरे मैच की तैयारी में निकल पड़े। राष्ट्र समाज के लिए उपयोगी बनें।

और जो 5% बच्चे पास हो रहे हैं, वो सिर्फ़ 6 अंको की सैलरी और पेट-प्रजनन में व्यस्त न हो जाएं। देश के लिए वर्तमान पोज़िशन में रहते हुए भी कुछ करते रहें। इन्नोवेशन करते रहें।

दुर्भाग्यवश वर्तमान शिक्षा व्यवस्था बहुत ही ज्यादा बोझिल है और पाश्चात्य प्रभावित है, इसे देश के उन युवाओं ने बनाया है जो भारतीय संस्कृति से अनभिज्ञ थे और विदेशों से पढ़कर आये थे। जिस शिक्षा व्यवस्था को कॉपी पेस्ट विदेशों से लेकर भारत मे किया गया था, उन पाश्चत्य देशों में तो पिछले 70 वर्षों में शिक्षा का पूरा पैटर्न ही बदल गया लेकिन भारत मे शिक्षा व्यवस्था उसी पुराने पैटर्न पर चल रही है। किसी भी बोर्ड या यूनिवर्सिटी में वर्तमान पाठ्यक्रम में चल रही पुस्तकें उठाइये तेजी से बदलती टेक्नोलॉजी नहीं मिलेगी, कुछ वर्ष पुरानी बातें ही पढ़ने को मिलेगी। कुछ महीनों के अंतराल में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी लिए रोज  नए नए  प्रोडक्ट विश्व मार्किट में लांच हो रहा है, वहां पुरानी खोज़ो को रट के पास होने वाले भारतीय कैसे टिकेंगे?

12 वर्ष से 21 वर्ष की उम्र नूतन दिमाग़ में नए नए इनोवेशन का होता है, नई नई खोज़ इस दौरान ही उपजती है, लेकिन दुर्भाग्यवश पढ़ाई का इतना लोड इस वक्त होता है कि एग्जाम पास करने के अलावा अधिकतर विद्यार्थि कुछ और सोच ही नहीं पाते। विदेशों में 40% थ्योरी और 60% वर्तमान सिचुएशन पर आधारित समस्याओं के समाधान पर प्रेक्टीकली पढ़ाई होती है। हमारे देश मे 90% हम पुरानी खोज़ ही रटते रहते हैं, 10% जो प्रोजेक्ट भी बनाने को देते हैं उसमें भी पुरानी झलक मिलती है।

हम सर्विस इंडस्ट्री में पूरे विश्व मे आगे हैं, हम बेहतर क़्वालिटी के सेवक/क्लर्क ग्रेड के/नौकरी करने वाली सोच के नागरिकों का उत्पादन कर रहे हैं। हम उच्चकोटि के कॉपियर है विदेशों में हुई कोई भी खोज को त्वरित कॉपी कर सकते है, उस प्रोडक्ट का सपोर्ट और मेंटिनेंस दे सकते हैं। लेकिन नई पीढ़ी में इनोवेशन नदारद है।

इन्नोवेशन में हम जापान और इजरायल जैसे छोटे देशों से भी बहुत पीछे है।

युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य जो कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और 3200 से ज्यादा पुस्तको के लेखक हैं कहते हैं कि देशभक्ति सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम में ही जरूरी नहीं थी, वो आज भी जरूरी है। देश की सुरक्षा में शहीद होना केवल देशभक्ति नहीं है, देश मे रहकर देशहित जीना भी देशभक्ति है। हमारे देश मे सुपर ब्रेन की कमी नहीं है, जरूरत बस आप सबके सहयोग की है। देश की कृषि व्यवस्था भी विकसित करना है और उद्योग भी विकसित करना है, नए नए अविष्कारों से दुनियां के कल्याण हेतु प्रयास भी करना है।

आईये भारत का गौरवशाली इतिहास फिर से लौटाएं, जैसे पुराने समय मे देश सोने की चिड़िया व्यापार में था, देश विश्वगुरु था, देश अनुसन्धानों/इन्नोवेशन में विश्व मे सबसे आगे था, वो गौरव शाली भारत पुनः बनाएं। देशहित पुनः एकजुट हो जाये। शिक्षा व्यवस्था पूरी तो नहीं बदल सकते लेकिन वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में ही इन्नोवेशन के लिए कुछ स्पेस बनाये। बाल सँस्कार शाला के माध्यम से, भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के माध्यम से स्कूलों में कम से कम सप्ताह में एक दिन शनिवार को राष्ट्रहित सोचने हेतु विचारमन्च बनाये। हम सब कर सकते है, यह सम्भव है, बस आप सबके साथ की जरूरत है। सबमिलकर प्रयास करेंगे तो कुछ न कुछ कर ही लेंगे। विश्वपटल में भारत का नाम रौशन कर ही देंगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

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