सूक्ष्म तीव्र ध्यान से एक पदार्थ का रसास्वादन जिह्वा कर सकती है, लेकिन इस प्रक्रिया में विचार के साथ इमोशन/फीलिंग टाइटली जुड़नी चाहिए।
साथ ही जहर के ध्यान से मृत्यु भी हो सकता है और अमृत के ध्यान से आरोग्य और नूतन यौवन भी मिल सकता है।
वैज्ञानिक दो सफ़ल प्रयोग मृत्युदंड प्राप्त दो कैदियों पर किये गए इस बात को सिद्ध करने हेतु:-
👉🏽 पहले प्रयोग में कैदी की आंख में पट्टी बांध के ज़हरीले नाग को लाने, उसे कटवाने का बेहतरीन नाटक एक्सपर्ट कलाकारों द्वारा करवाया गया। और सर्प दंश को दिखाने हेतु उसे पहले नकली सर्प स्पर्श करवाया गया, और एक नये इंजेक्शन से दो टिनी होल उसके पैर में किये गए जिससे उसे अनुभव हो कि सर्प ने काटा। फिर सब झूठ मूठ बोले अरे इसका पैर नीला हो गया, जहर चढ़ रहा है, इस तरह क्रमशः बोलते गए और वह कैदी इसे सच समझता गया और मर गया। पोस्टमार्टम में विष निकला। तो आखिर यह विष आया कहाँ से, ये उसके मष्तिष्क ने उतपन्न किया।
👉🏽दूसरा प्रयोग- दूसरे कैदी की आंख में पट्टी बांधी, और बोला कि आखिर इसे मृत्यु दंड मिला है क्यूँ न इसके मरने से पहले इसके शरीर से समस्त उपयोगी खून निकाल लिया जाय। झूठ मूठ की एक्टिंग हुई, इंजेक्शन की सुई चुभोई गयी। एक टब लिया गया जिसमें एक प्लास्टिक की पॉलीथिन से बूंद बूंद पानी टपकाया गया। और बोला गया कि यह कैदी का रक्त टपक रहा है। चार घण्टे के अंदर कैदी मर गया। जबकि असलियत में उसके शरीर से खून नहीं निकाला गया। पोस्टमार्टम में उसके शरीर में रक्त प्रवाह रुका पाया गया।
उपरोक्त विधि से सिद्ध होता है कि एक व्यक्ति सूक्ष्म और तीव्र मात्र ध्यानस्थ अनुभव से क्या से क्या हो सकता है।
अब सोचिये यही सूक्ष्म तीव्र भाव यदि यज्ञ में आहूत हो जाये तो मनोवांछित वस्तु मिल सकती है। ऋषि अपने सूक्ष्म प्राण प्रवाह से तीव्र वर्षा रुक सकते थे और सूखे में वर्षा करवा सकते थे। क्योंकि यज्ञ में जो आहूत होगा वो करोड़ो गुना बनकर असर करता है। स्कूल कॉलेज में अच्छी भावना से यज्ञ वहां सूक्ष्म को संशोधित करेगा।
कुछ मशीनें यग्योपैथी टीम के पास हैं जैसा कि एयर इंडेक्स मीटर से यज्ञ से पूर्व और यज्ञ के दो दिन बाद तक का PM2.5 चेक किया जा सकता है। रेडियेशन मीटर से यज्ञ से पूर्व और यज्ञ के इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन पर यज्ञ का प्रभाव चेक हो सकता है। औरा स्कैनर से यज्ञ से पूर्व और यज्ञ के बाद का औरा/सकारात्मक ऊर्जा चेक किया जा सकता है। लेकिन यह सब स्थूल है।
मानसिक तौर पर यज्ञ से पहले और यज्ञ के बाद की स्वयं की मनःस्थिति हम स्वयं भी अनुभव कर सकते हैं।
साथ ही जहर के ध्यान से मृत्यु भी हो सकता है और अमृत के ध्यान से आरोग्य और नूतन यौवन भी मिल सकता है।
वैज्ञानिक दो सफ़ल प्रयोग मृत्युदंड प्राप्त दो कैदियों पर किये गए इस बात को सिद्ध करने हेतु:-
👉🏽 पहले प्रयोग में कैदी की आंख में पट्टी बांध के ज़हरीले नाग को लाने, उसे कटवाने का बेहतरीन नाटक एक्सपर्ट कलाकारों द्वारा करवाया गया। और सर्प दंश को दिखाने हेतु उसे पहले नकली सर्प स्पर्श करवाया गया, और एक नये इंजेक्शन से दो टिनी होल उसके पैर में किये गए जिससे उसे अनुभव हो कि सर्प ने काटा। फिर सब झूठ मूठ बोले अरे इसका पैर नीला हो गया, जहर चढ़ रहा है, इस तरह क्रमशः बोलते गए और वह कैदी इसे सच समझता गया और मर गया। पोस्टमार्टम में विष निकला। तो आखिर यह विष आया कहाँ से, ये उसके मष्तिष्क ने उतपन्न किया।
👉🏽दूसरा प्रयोग- दूसरे कैदी की आंख में पट्टी बांधी, और बोला कि आखिर इसे मृत्यु दंड मिला है क्यूँ न इसके मरने से पहले इसके शरीर से समस्त उपयोगी खून निकाल लिया जाय। झूठ मूठ की एक्टिंग हुई, इंजेक्शन की सुई चुभोई गयी। एक टब लिया गया जिसमें एक प्लास्टिक की पॉलीथिन से बूंद बूंद पानी टपकाया गया। और बोला गया कि यह कैदी का रक्त टपक रहा है। चार घण्टे के अंदर कैदी मर गया। जबकि असलियत में उसके शरीर से खून नहीं निकाला गया। पोस्टमार्टम में उसके शरीर में रक्त प्रवाह रुका पाया गया।
उपरोक्त विधि से सिद्ध होता है कि एक व्यक्ति सूक्ष्म और तीव्र मात्र ध्यानस्थ अनुभव से क्या से क्या हो सकता है।
अब सोचिये यही सूक्ष्म तीव्र भाव यदि यज्ञ में आहूत हो जाये तो मनोवांछित वस्तु मिल सकती है। ऋषि अपने सूक्ष्म प्राण प्रवाह से तीव्र वर्षा रुक सकते थे और सूखे में वर्षा करवा सकते थे। क्योंकि यज्ञ में जो आहूत होगा वो करोड़ो गुना बनकर असर करता है। स्कूल कॉलेज में अच्छी भावना से यज्ञ वहां सूक्ष्म को संशोधित करेगा।
कुछ मशीनें यग्योपैथी टीम के पास हैं जैसा कि एयर इंडेक्स मीटर से यज्ञ से पूर्व और यज्ञ के दो दिन बाद तक का PM2.5 चेक किया जा सकता है। रेडियेशन मीटर से यज्ञ से पूर्व और यज्ञ के इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन पर यज्ञ का प्रभाव चेक हो सकता है। औरा स्कैनर से यज्ञ से पूर्व और यज्ञ के बाद का औरा/सकारात्मक ऊर्जा चेक किया जा सकता है। लेकिन यह सब स्थूल है।
मानसिक तौर पर यज्ञ से पहले और यज्ञ के बाद की स्वयं की मनःस्थिति हम स्वयं भी अनुभव कर सकते हैं।
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