अध्यात्म-क्षेत्र सूक्ष्म अदृश्य अविज्ञात जैसा लगता भर है, वस्तुतः वह भी अपने स्थान पर भौतिक जगत की तरह सुस्थिर और सुव्यवस्थित है| आंखों से न देख पड़ने पर भी, उसकी सत्ता संदेह से परे है| शरीर दिखता है प्राण नहीं, परंतु प्राण की नाप तोल ना तो इन्द्रिय शक्ति से हो सकती है और ना ही किसी यंत्र- उपकरण से, फिर भी उसकी सत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता |मरणोत्तर जीवन का अस्तित्व भी ऐसा ही है जिसका यांत्रिक पर्यवेक्षण नहीं हो सकता| इतने पर भी वह पुरातन की तरह आधुनिक निर्धारण से ही अपने अस्तित्व का परिचय देता है| विचारों की इच्छा शक्ति साहस आदि अदृश्य प्रसंगों की विशिष्टता एवं परिणति से कोई इनकार नहीं कर सकता| यह दृश्य जगत के अनेकानेक प्रमाणों में से कुछ है| यह सूक्ष्म क्षेत्र अव्यवस्थित नहीं है, तरंगों से निर्मित पदार्थ जगत की तरह ही उसका भी सुनिश्चित और व्यापक अस्तित्व है| उसकी भी गतिविधियां चलती और प्रतिक्रियाएं होती हैं| अस्तु उसके भी अपने सुनिश्चित नियम विधान और अनुशासन होने का तथ्य भी स्वीकारना होगा| अंधेरगर्दी अराजकता मनमानी अदृश्य जगत में भी नहीं चलती है| अतः अदृश्य जगत के संबंध में भी यह नहीं सोचा जाना चाहिए कि वहां किसी नियम अनुबंध नहीं है| *अंधेर नगरी अनबूझ राजा की युक्ति* सुनी तो जाती है पर देखी कहीं नहीं जाती| हर क्षेत्र के अपने-अपने नियम विधान अनुशासन है| अध्यात्म क्षेत्र भी उसका अपवाद नहीं हो सकता| ईश्वर की इस समूची कृति में कहीं भी अव्यवस्था नहीं है| यहां तक कि भूकंप तूफान जैसी अप्रत्याशित यदाकदा होने वाली घटनाएं भी प्रकृति के सुनिश्चित नियमों के अंतर्गत ही होती हैं, भले ही उन्हें हम अभी पूरा ना समझ पाए हूं| अतः अध्यात्म के सुनिश्चित विधान को समझकर ही हमें साधना पद्धति का चयन करना चाहिए |
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