Monday 19 February 2018

प्रश्न:- अध्यमिकता को तथ्य-प्रमाण (वैज्ञानिक दृष्टिकोण) से कैसे समझे कि यह जीवन के लिए अनिवार्य है, विकल्प नही?

*प्रश्न:- अध्यमिकता को तथ्य-प्रमाण (वैज्ञानिक दृष्टिकोण) से कैसे समझे कि यह जीवन के लिए अनिवार्य है, विकल्प नही?*

उत्तर:-  *आध्यात्मिकता(Spirituality)* एक आत्म अध्ययन की प्रक्रिया है, कर्मकांड, जप-तप, पूजन-पाठ, तर्क-वितर्क, योग-ध्यान इत्यादि इसमें सहायक तत्व है, लेकिन केवल इससे ही इसका अध्ययन पूर्ण हो जाता है ऐसा बिल्कुल नहीं है।

अब यहां हमने *आत्मा अर्थात प्राण* की बात की, तो प्रश्न उठता है जो दिखाई नहीं देता उसे माने क्यूँ? जिसे मानते नहीं उसे जानने का प्रयास भी भला क्यूँ करें? और यह तो वैकल्पिक होना चाहिए मन करे तो आत्म अध्ययन करे और मन करे तो न करें, ऐसा कुछ ही जो सोच रहे हैं... उनके लिए कुछ कबीरदास जी की पंक्तियाँ अर्ज हैं:-

ज्यों तिल माँहि तेल है, ज्यों चकमक  में आग,
तेरा साईं तुझमें है, जाग सके तो जाग।

(तिल के भीतर का तेल नहीं दिखता, इसी तरह हमारे भीतर का प्राण(आत्मा) नहीं दिखता, पानी के अंदर बिजली नहीं दिखता, लेकिन अस्तित्व सबका है। प्रोसेस को पढ़ो, समझो और समुचित विधि का पालन करो तो सब प्राप्त किया जा सकता है)

ज्यों नैनन में पुतली, त्यों मालिक घर माँहि,
मूरख उनको जानिए , जो बाहर ढूँढत जाहिं।

(भीतर अकूत आत्मशक्ति सम्पदा भरी पड़ी है, आनन्द का श्रोत भरा पड़ा है, यदि इनकी उपेक्षा कर बाहर सुख ढूढोगे तो क्या मिलेगा? ज्ञान का समस्त श्रोत भीतर ही है।)

*भारतीय संस्कृति की गुरुकुल व्यवस्था का अनिवार्य अंग आध्यात्म था। बच्चों की शिक्षा पहले स्वयं को जानो फिर बाहरी ज्ञान को जानो पर आधारित था। उस वक्त हम सुविधा सम्पन्न थे, व्यापार हो या धन संपदा, सांसारिक ज्ञान हो अध्यात्म सम्पदा सबसे श्रेष्ठ भारत था। एक तरफ सोने की चिड़िया था तो दूसरी तरफ विश्व गुरु था। शून्य(0) और दशमलव(.) भारत की देन है तो शल्य चिकित्सा का प्रथम गुरु भारत है। ग्रह नक्षत्र की सटीक गणना आज भी अंक ज्योतिष एक वर्ष पूर्व ही बिना बड़ी सांसारिक मशीनों के बता देता है कि कब किस क्षण चन्द्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण और नक्षत्रों की सौर मंडल में स्थिति क्या होगी। हमारे देश मे नौ ग्रह पूजन और पृथ्वी गोल का सिद्धांत शुरू से ही था। वराह अवतार की तस्वीरों में गोल पृथ्वी, सब्जेक्ट में भूगोल(भू अर्थात पृथ्वी गोल), जगत अर्थात जो गतिमान है पहले से ही प्रचलित है।अनुसन्धान और अविष्कारों में भारत तब विश्व का प्रतिनिधित्व करता था।*

माना कि कुछ स्वार्थी और कायर लोगों की मूर्खता की वज़ह से देश गुलाम हुआ, जिन्होंने देश को बेंच खाया(क्यूंकि अपने लोग साथ न देते तो अंग्रेज कभी सफल न होते)।फिर देशभक्तो ने मिलकर  देश आजाद करवाया। फ़िर गुलाम देश मे जन्मे और विदेशों में पढ़े युवाओं ने देश की आज़ादी के बाद संविधान लिखा और शिक्षा पद्धति का निर्माण किया(जो की पाश्चत्य शिक्षा पद्धति का पूरा नकल था), क्योंकि ये  भारतीय संस्कृति की गौरव गरिमा से अनभिज्ञ थे। इसलिए इनके द्वारा थोपी पाश्चात्य शिक्षा पद्धति ने इनोवेशन समाप्त कर क्लर्क ग्रेड के सेवक(नौकरी करके खुश रहने वाले) बहुतायत मात्रा में पैदा किये जो शरीर से भारतीय और दिमाग से अंग्रेज है। जो अपने ही देश को लूटने खसोटने में लगे हैं। वर्तमान समय मे भारत इजरायल और जापान जैसे छोटे से देशों से भी इनोवेशन-अविष्कारों में पीछे चल रहा है।

लेकिन भारत में 🙏🏻 *युगऋषि श्रीराम आचार्य जी* और अन्य आध्यात्मिक सत्ताओं ने पुनः भारतीय गौरव की वापसी का संकल्प लिया है। अध्यात्म को जीवन का अनिवार्य अंग बनाया है। पुनः हिंदुस्तानी नई पीढ़ी को सुपर ब्रेन के साथ साथ स्वस्थ मानसिकता के राष्ट्र भक्त युवक युवतियों को गढ़ने का कार्य द्रुत गति से शुरू किया है। बाल सँस्कार शाला और विभिन्न सँस्कार के माध्यम से अध्यात्म नई पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं।

🙏🏻👉🏽 *निष्कर्ष* - चलने को तो लोग एक पैर से भी बैसाखी के सहारे चलते हैं लेकिन यदि दूसरा पैर भी साथ दे तो बैसाखी की जरूरत नहीं रहती। आज की शिक्षा व्यवस्था पाश्चत्य की बैसाखी के सहारे चल रही है, लेकिन *यदि अध्यात्म को पुनः शिक्षा में गुरुकुल की तरह प्रवेश दे दिया जाय तो शिक्षा व्यवस्था भारतीय गौरव के साथ उठ खड़ी होगी। पुनः भारत विश्व गुरु होगा और रिसर्च- अनुसन्धानों से विश्व वसुधा को तृप्त कर देगा*। स्वयं की आत्मा का अध्ययन करके ही आत्मशक्ति और आत्मबल को प्राप्त किया जा सकता है और गहन ज्ञान तक पहुंचा जा सकता है। *सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन भी एक अध्यात्मिक व्यक्ति थे इसलिए वो पुस्तको से परे जाकर नया ज्ञान ला सके*। वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रयोग से विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय से वर्तमान समस्याओं को हल करके,स्वयं को भी सुखी -समृद्ध बनाया जा सकता है और राष्ट्र को भी सुखी समृद्ध बनाया जा सकता है। इसलिए अध्यात्म अनिवार्य है, वैकल्पिक नहीं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...