Thursday, 15 March 2018

प्रश्न - क्या ईश्वर से साक्षात्कार सम्भव है? क्या ईश्वर एक है या अनेक?

*ईश्वर से साक्षात्कार*

ईश्वर या ऊर्जा(एनर्जी) कोई किसी को दिखा नहीं सकता और न ही बता सकता है। सिर्फ़ उस ओर इशारा कर सकता है। वेद भी ईश्वर की इशारा मात्र हैं।

लेकिन बिना देखे भी विद्युत को स्वयं  विद्युत कनेक्शन लेकर सही इलेक्ट्रिकल इंस्ट्रूमेंट लेकर विधि व्यवस्था बनाकर प्रकाशित हुआ जा सकता है।

किसी ने विद्युत के साथ पंखा लगाया और वो चल गया तो उसने अपने धर्म ग्रन्थ में पदार्थ पंखे को ईश्वर समझ लिया और अन्य को यही पढ़ा दिया।

किसी ने 40 वाट का बल्ब की साधना इंस्ट्रूमेंट लगाया और बोला ईश्वर में मात्र 40 वाट की रौशनी मिलती है। धर्म ग्रन्थ में यही लिख दिया।

किसी ने सुपर कम्प्यूटर को उसी विद्युत से चलाया तो किसी ने हज़ार वाट का बल्ब। किसी ने उसी विद्युत से हीटर चलाया तो किसी ने AC, कोई ज़ीरो वाट का बल्ब बन के ही ईश्वरीय ऊर्जा को उपयोग किया और वही लिखा और बताया। लेकिन कोई बल्ब या पंखा ईश्वरीय शक्ति को परिभाषित कर सकता है पूर्ण रूपेण? जो धर्म ग्रन्थ में ईश्वर के बारे में लिखता है वो केवल अपनी क्षमता ईश्वर की प्राप्ति का लिखता है, लेकिन ईश्वर उसकी क्षमता से परे है।

जो प्रकाशित हुआ उसे ही सब पूजने में व्यस्त हो गए लेकिन स्वयं प्रकाशित होने को चंद लोग ही आगे आये। बिजली के पूजन से बिजली नहीं मिलती। सिर्फ अक्षत और कुछ कर्मकांड से भगवान नहीं मिलता। स्वयं को साधना पड़ेगा उसके योग्य बनाना पड़ेगा।

युगऋषि ने पुस्तक *ईश्वर कौन है?कैसा है?कहाँ है?* में इसे विस्तार से लिखा है। साथ ही इसका इशारा *अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* में भी किया है।

भक्त भगवान का पिता होता है। वो जितना गहरा भीतर उतरता है समर्पण के साथ उतने अंशो में स्वयं को प्रकाशित कर यह बताता है भाई ऊर्जा है इसे विभिन्न साधनाओ से सिद्ध किया जा सकता है अर्थात जुड़ा जा सकता है।

इसलिए आज़तक कोई ईश्वर की सार्वभौम परिभाषा न दे सका। quantum physics की तरह बस कुछ ईशारे कर सका है।

मेरी साधना मेरे बल्ब के पावर को निर्धारित कर बताएगी कि मैं कितने वाट ईश्वरीय शक्ति को उपयोग में ले सकती हूँ। आपकी साधना क्षमता मुझसे ज्यादा हो सकती है या कम, मुझसे डिफरेंट इंस्ट्रूमेंट आपकी आत्मचेतना हो सकती है। अर्थात पदार्थ की भाषा मे हमारी और आपकी ईश्वरीय परिभाषा कभी एक जैसी नहीं हो सकती।

सभी धर्म सम्प्रदाय के लोग ऊर्जा के लिए नहीं लड़ते बल्कि वो इस बात के लिए लड़ते है कि इससे सिर्फ कोई कहता है AC चल सकता है तो कोई कहता है कि केवल बल्ब जल सकता है तो कोई कहता है पंखा चल सकता है। क्यूंकि विद्युत नहीं वो विद्युत उपकरणों को परिभाषित धर्म गर्न्थो में कर रहे हैं।

इसलिए भगवान को मानने और जानने में बहुत फ़र्क है। कण कण में ऊर्जा है भगवान है। विधिव्यवस्था और पुरुषार्थ है तो जल से भी विद्युत मिलेगा, हवा से भी विद्युत मिलेगा, कोई भी ठोस पदार्थ  हो या तरल , दृश्य हो या अदृश्य सब से विद्युत पाया जा सकता है। भगवान से जुड़ा जा सकता है।

सभी अवतार उस चेतना से प्रकाशित कुछ कलाओं के माध्यम से थे। कुछ सोलह तो कुछ अंश थे। लेकिन केवल उतना ही अंश परमात्मा है यह मिथक है। क्योंकि वो उससे भी परे है।

सूर्य को देखने के लिए आंखे चाहिए। बिन आंख खोले तर्क वितर्क से प्रकाश को माना जा सकता है लेकिन जानना और अनुभव नहीं किया जा सकता।

तो भाई विद्युत कनेक्शन इसी क्षण मिल सकता है। भगवान से इसी क्षण आपका साक्षात्कार करवा सकती हूँ? लेकिन यह चेक कर लें स्वयं को कि क्या आप विद्युत के लिए सुचालक है, कहीं विद्युत उपकरण खराब तो नहीं? उपासना-साधना-आराधना से स्वयं का उपकरण ठीक कर लें कनेक्शन तुरन्त मिल जाएगा। साक्षात्कार अभी इसी क्षण ईश्वर का करवा देंगे। विवेकानंद की आत्मचेतना सुचालक थी उन्हें तड़फ थी प्रकाशित होने क़ि ठाकुर रामकृष्ण ने कनेक्शन कर दिया। उन्होंने तो सभी शिष्यों को कनेक्शन दिया लेकिन जो जितनी साधनात्मक क्षमता विकसित किया वो उतना प्रकाशित हुआ। यही सिद्धांत युगऋषि से दीक्षित होने का है, गुरुदेव कनेक्शन देंगे जिसकी जितनी साधनात्मक क्षमता वो उतने अंश ईश्वर से प्रकाशित हो सकता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

2 comments:

  1. Aapka yah blog pad kar bahut achha laga, man ke kai kai sabalo ke jabab mil gye hai, age koshish rahegi ki ishwar se sakshtakar ke badiya suchalk ban sake, aapka bahut bahut dhanyawad pranam

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