मुक्त था मैं, सदा से मुक्त हूँ,
कोई बंधन नहीं था कभी, और न ही अब है,
मकड़ी तरह हूँ मैं जब चाहूँ,
विचारों के जाल से स्वयं को बांध लूँ,
जब चाहूँ विचारों के जाल से मुक्त हो जाऊं।
हाँ, मुक्त था मैं, और सदा से मुक्त हूँ,
कोई बंधन नहीं था कभी, और न ही अब है,
अज्ञानता में,
स्वयं के विचारों को ही,
बन्धन समझ लिया,
ज्ञान आते ही,
प्रभु कृपा से,
बस उन्हें समेट लिया।
हाँ, मुक्त था मैं, और सदा से मुक्त हूँ,
कोई बंधन नहीं था कभी, और न ही अब है,
अकेला जन्मा हूँ, अकेला ही मरूंगा,
जन्मों से मेरा सद्गुरु ही केवल साथी रहा है,
योग की अग्नि में मोह को भष्म किया है,
मन मकड़ी ने अब अपना बुना जाला समेट लिया है,
हाँ, मुक्त था मैं, और सदा से मुक्त हूँ,
कोई बंधन नहीं था कभी, और न ही अब है,
आनन्द ही आनन्द सर्वत्र बरस रहा है,
गुरूकृपा से तनमन भीग रहा है,
अब इस यात्री को सराय से मोह नहीं रहा है,
अब इस जीवनयात्रा में आनन्द आ रहा है।
हाँ, मुक्त था मैं, और सदा से मुक्त हूँ,
कोई बंधन नहीं था कभी, और न ही अब है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
कोई बंधन नहीं था कभी, और न ही अब है,
मकड़ी तरह हूँ मैं जब चाहूँ,
विचारों के जाल से स्वयं को बांध लूँ,
जब चाहूँ विचारों के जाल से मुक्त हो जाऊं।
हाँ, मुक्त था मैं, और सदा से मुक्त हूँ,
कोई बंधन नहीं था कभी, और न ही अब है,
अज्ञानता में,
स्वयं के विचारों को ही,
बन्धन समझ लिया,
ज्ञान आते ही,
प्रभु कृपा से,
बस उन्हें समेट लिया।
हाँ, मुक्त था मैं, और सदा से मुक्त हूँ,
कोई बंधन नहीं था कभी, और न ही अब है,
अकेला जन्मा हूँ, अकेला ही मरूंगा,
जन्मों से मेरा सद्गुरु ही केवल साथी रहा है,
योग की अग्नि में मोह को भष्म किया है,
मन मकड़ी ने अब अपना बुना जाला समेट लिया है,
हाँ, मुक्त था मैं, और सदा से मुक्त हूँ,
कोई बंधन नहीं था कभी, और न ही अब है,
आनन्द ही आनन्द सर्वत्र बरस रहा है,
गुरूकृपा से तनमन भीग रहा है,
अब इस यात्री को सराय से मोह नहीं रहा है,
अब इस जीवनयात्रा में आनन्द आ रहा है।
हाँ, मुक्त था मैं, और सदा से मुक्त हूँ,
कोई बंधन नहीं था कभी, और न ही अब है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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