प्रश्न - *अभी अभी 20-25 दिन से ध्यान साधना के अभ्यास से जुड़े हैं। सर में दर्द होने लगा है। क्या करें? ध्यान साधना करना छोड़ दें क्या?*
उत्तर - शरीर हो या मन, यदि अभ्यस्त नहीं तो जब भी अभ्यास शुरू करेंगे दर्द होगा।
उदाहरण - एक लड़का जिम शुरू करता है तो कई दिन तक शरीर में भयंकर पीड़ा होती है। यदि वो डरकर छोड़ देगा तो कभी शरीर अभ्यस्त न होगा। लेकिन यदि डटा रहा और शरीर अभ्यस्त होते ही शरीर का दर्द गायब हो जाएगा।
यदि हाल मन और शरीर का है। मन की जिम में भी गुरुदेव सरल साधना से साधक की शुरूआत करवाते है फिर उच्चस्तरीय साधना बताते हैं। शरीर की जिम इंस्ट्रुक्टर के सामने और मार्गदर्शन में करना चाहिए, उसी तरह मानसिक जिम अध्यात्म में भी गुरु आह्वाहन के बाद और उनके सूक्ष्म मार्गदर्शन में साधना करना चाहिए।
सर में दर्द अधिक हो तो चन्द्रमा का ध्यान करें जप के वक्त, और ध्यान के अभ्यास हेतु यूट्यूब पर श्रद्धेय के वीडियो जरूर देख ले और जो सधे वही करे और धीरे धीरे मन को अभ्यस्त करें।
मन एक जंगली घोड़ा है, शरीर तो शव है ज्यादा से ज्यादा दर्द करेगा लेकिन और कुछ न कहेगा। लेकिन मन आपके दांत खट्टे कर देगा। उठा पटक मचाएगा। मन मे अदालत लगा देगा। चतुर वकील की तरह ध्यान न करने के 1001 तर्क देगा। अंतरात्मा को बोलने का वैसे ही अवसर न देगा जैसे अरनब गोस्वामी और चौरसिया न्यूज़ चैनल वाले होते है, बार बार कहेगा जनता जवाब चाहती है, लेकिन अंतर्मन को बोलने न देगा। चतुर मन और बेवकूफ शरीर है। अतः इतना आसान नहीं होगा ध्यान और जप में अनभ्यस्त मन को लगाना। उसे मानसिक स्वास्थ्य की ओर लगाना और तृष्ना-वासना-कामना के रसास्वादन से छुड़ाना। अगर हज़ार बहाने है ध्यान न करने के तो कोई एक स्ट्रांग वजह ढूढो औऱ विश्वास ढूढो ध्यान करने का। समय स्वतः मिलता नहीं निकालना पड़ता है, मन स्वतः लगता नहीं लगाना पड़ता है, शरीर स्वयं सधता नहीं साधना पड़ता है। ध्यान-स्वाध्याय जरूर करें मन लगे या न लगे, निरन्तर स्वाध्याय जरूर करें। कबीरदास जी का दोहा याद रखें-
*करत करत अभ्यास से, जड़मति होत सुजान,*
*रसरी आवत जात ही, सिल पर पड़त निसान।।*
https://www.youtube.com/user/shantikunjvideo
साधना जल्दबाजी में कोई बड़ी नहीं उठानी चाहिए, शनैः शनैः आगे बढ़ना चाहिए।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती, दिया
उत्तर - शरीर हो या मन, यदि अभ्यस्त नहीं तो जब भी अभ्यास शुरू करेंगे दर्द होगा।
उदाहरण - एक लड़का जिम शुरू करता है तो कई दिन तक शरीर में भयंकर पीड़ा होती है। यदि वो डरकर छोड़ देगा तो कभी शरीर अभ्यस्त न होगा। लेकिन यदि डटा रहा और शरीर अभ्यस्त होते ही शरीर का दर्द गायब हो जाएगा।
यदि हाल मन और शरीर का है। मन की जिम में भी गुरुदेव सरल साधना से साधक की शुरूआत करवाते है फिर उच्चस्तरीय साधना बताते हैं। शरीर की जिम इंस्ट्रुक्टर के सामने और मार्गदर्शन में करना चाहिए, उसी तरह मानसिक जिम अध्यात्म में भी गुरु आह्वाहन के बाद और उनके सूक्ष्म मार्गदर्शन में साधना करना चाहिए।
सर में दर्द अधिक हो तो चन्द्रमा का ध्यान करें जप के वक्त, और ध्यान के अभ्यास हेतु यूट्यूब पर श्रद्धेय के वीडियो जरूर देख ले और जो सधे वही करे और धीरे धीरे मन को अभ्यस्त करें।
मन एक जंगली घोड़ा है, शरीर तो शव है ज्यादा से ज्यादा दर्द करेगा लेकिन और कुछ न कहेगा। लेकिन मन आपके दांत खट्टे कर देगा। उठा पटक मचाएगा। मन मे अदालत लगा देगा। चतुर वकील की तरह ध्यान न करने के 1001 तर्क देगा। अंतरात्मा को बोलने का वैसे ही अवसर न देगा जैसे अरनब गोस्वामी और चौरसिया न्यूज़ चैनल वाले होते है, बार बार कहेगा जनता जवाब चाहती है, लेकिन अंतर्मन को बोलने न देगा। चतुर मन और बेवकूफ शरीर है। अतः इतना आसान नहीं होगा ध्यान और जप में अनभ्यस्त मन को लगाना। उसे मानसिक स्वास्थ्य की ओर लगाना और तृष्ना-वासना-कामना के रसास्वादन से छुड़ाना। अगर हज़ार बहाने है ध्यान न करने के तो कोई एक स्ट्रांग वजह ढूढो औऱ विश्वास ढूढो ध्यान करने का। समय स्वतः मिलता नहीं निकालना पड़ता है, मन स्वतः लगता नहीं लगाना पड़ता है, शरीर स्वयं सधता नहीं साधना पड़ता है। ध्यान-स्वाध्याय जरूर करें मन लगे या न लगे, निरन्तर स्वाध्याय जरूर करें। कबीरदास जी का दोहा याद रखें-
*करत करत अभ्यास से, जड़मति होत सुजान,*
*रसरी आवत जात ही, सिल पर पड़त निसान।।*
https://www.youtube.com/user/shantikunjvideo
साधना जल्दबाजी में कोई बड़ी नहीं उठानी चाहिए, शनैः शनैः आगे बढ़ना चाहिए।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती, दिया
No comments:
Post a Comment