Wednesday, 11 April 2018

प्रश्न -अगर छोटे भाई बहन अपने बड़ों का कहना नहीं मान रहे हैं और हर बार गलती पर गलती गलती पर गलती करते चले आ रहे हैं तो उस बड़े भाई या बहन को क्या करना चाहिए

प्रश्न -  *एक बात बताइए दीदी*
*अगर छोटे भाई बहन अपने बड़ों का कहना नहीं मान रहे हैं और हर बार गलती पर गलती गलती पर गलती करते चले आ रहे हैं तो उस बड़े भाई या बहन को क्या करना चाहिए।*
*सब लोग कहते हैं बड़ा भाई बहन छोटे पौधों की तरह होता है जो हर बार झुकता है और उसे झुकना चाहिए परंतु कोई भी पौधा कितनी बार झुकेगा आख़िर में वह टूट जाएगा ना।*

उत्तर - आत्मीय भाई, आपके प्रश्न का उत्तर देने से पहले एक कहानी सुनाती हूँ।

एक कॉलेज में दो ग्रुप के बीच झगड़ा हो रहा था, दोनों ग्रुप स्वयं को सही और दूसरे को गलत साबित कर रहे थे। प्रोफ़ेसर ने दोनों ग्रुप को पास बुलाया और टेबल के दोनों तरफ़ एक एक ग्रुप को खड़ा कर दिया। एक ऑब्जेक्ट को बीच मे रखा और पूंछा किस कलर का है? एक ग्रुप ने कहा सफेद और दूसरे ने कहा काला। अब दोनों ग्रुप को जगह बदलने को कहा, फ़िर पूंछा अब बताओ, अरे ये क्या यह ऑब्जेक्ट एक तरफ काला और दूसरी तरफ सफेद था। दोनों अपनी जगह सही थे जब स्वयं के दृष्टिकोण को एक्सप्लेन कर रहे थे, लेकिन दोनों ग्रुप गलत थे जब दूसरे के दृष्टिकोण को गलत ठहरा रहे थे।

इसलिए छोटा भाई-बहन गलत है या बड़ा भाई बहन यह बिना एनालिसिस किये कहना मेरे लिए सम्भव नहीं। दोनो के दृष्टिकोण और मन को समझना होगा। अतः इस पर हम बात नहीं करेंगे कि कौन सही है? हम इस पर बात करेंगे यदि गलत हो तो क्या करें और कैसे करें?.....

आठ एक प्रसिद्ध कहावत स्मरण रखो,
*प्रसंशा करने से विवेकवान और ज्यादा विनम्र हो जाते हैं और दुर्बुद्धि वाले और ज्यादा अहंकारी हो जाते हैं।*

*इसी तरह छोटों के सामने ज्यादा झुकने से पहले विवेक से काम लें कि इससे कहीं इसके अहंकार में वृद्धि तो नहीं हो रही और इसे गलत करने में बढ़ावा तो नहीं मिल रहा।*

सीमा की सुरक्षा दो प्रकार से होती है- पहला जागरूक सैन्य शक्ति सीमा पर तैनात कर दो, लेकिन यदि कोई अपनी सीमा में प्रवेश करें तो उस पर हमला बोल दो।

क्या बड़े भाई बहन ने छोटे के लिए कोई सीमा तय की है? कि कितने तक रियायत मिलेगी, उसके बाद बर्दास्त नहीं किया जाएगा।

मनोविज्ञान के हिसाब से घर के छोटे बच्चों को माता पिता इतना लाड़-प्यार देते है कि उनकी बुद्धिं का विकास बड़े की अपेक्षा देर से होता है। अत्यधिक लाड़-प्यार के डोज़ से उनकी उद्दंडता बढ़ती है, बड़े की गलती हो न हो मां-बाप से अक्सर उसे ही डाट पड़ती है, कि तू तो बड़ा है तू सम्हाल ले। वो छोटा है। यह छोटे होने का एक्सक्यूज़ इनके युवा होने तक चलता है, जो सर्वथा माता-पिता का अनुचित निर्णय होता है। माता-पिता के लिए बच्चा कितनी उम्र का क्यों न हो छोटा ही रहता है। *छोटे की ग़लती सिर्फ़ 11 वर्ष तक माफ़ करनी चाहिए, 12 वर्ष के बाद किशोरावस्था में वो भले घर का छोटा हो उसे बड़े की तरह ही ट्रीटमेंट मिलनी चाहिए।* कोई बदमाशी इग्नोर नहीं करनी चाहिये।

अतः यदि आपका छोटा भाई या बहन 12 वर्ष से ऊपर है और कोई गलती कर रहा है तो उसके समक्ष न झुकें और पहले प्यार और आत्मीयता से उसे सन्मार्ग दिखाएं। अत्यंत जरूरत पर ही डांटे-फटकारें। उसे समझाए और यही अपने माता पिता को भी समझाएं  कि भाई-बहन सिर्फ माता-पिता के लिए छोटे-दुलारे हो लेकिन समाज के लिए बड़े हो चुके हो। तुम्हारा एक गलत कदम कई विपत्तियों को आमंत्रित करेगा। बड़े भाई-बहन होने के नाते मेरा कर्तव्य है कि आप सबको सत्य से अवगत करवाऊं। यदि आप नहीं समझना चाहते तो यह आपकी जिम्मेदारी होगी।

बध से अच्छा त्याग होता है, अपना 100% प्रयास उसे सुधारने में लगाओ, यदि फिर भी न सुधरे तो उसे उसके हाल पर छोड़ दो। ऐसा क्यों कह रही हूँ *इसके लिए एक कहानी और सुनो*:-

एक राजा अपने लिए सेवक की भर्ती कर रहा था, सबसे एक प्रश्न पूंछता - ये बताओ महल में आग लग जाए तो और मेरी और तुम्हारी दोनों की दाढ़ी में आग लग जाये तो पहले किसकी दाढ़ी बुझाओगे?

सब कहते महाराज आपकी, तो वो उन्हें भगा देता।

एक सेवक ने कहा- महाराज मेरे दो हाथ है एक हाथ से मैं आपकी दाढ़ी बुझाऊंगा और दूसरे हाथ से अपनी बुझाऊंगा। महाराज ने उसे नौकरी पर रख लिया।

युगऋषि कहते हैं - *सन्तुलन ही अध्यात्म है*, रिश्तों में सन्तुलन, संसार और अध्यात्म में सन्तुलन होना चाहिए। इंसान अकेला जन्मा है अकेला ही मरेगा। शरीर से जुड़े रिश्ते शरीर तक रहने चाहिए उसके लिए आत्मसन्ताप में नही रहना चाहिए। तुलसीदास जी कहते हैं- *जाके प्रिय न राम बैदेही तजिये ताहि कोटि वैरी सम जद्यपि परम् सनेही*। *जो ईश्वरीय अनुसासन में नहीं चल रहा और श्रेष्ठ मार्ग का अनुगमन नहीं कर रहा उसका मानसिक त्याग उचित है।*

इसी तरह छोटे-भाई बहन की मदद और सुधार एक हाथ से करो और दूसरे हाथ से अपना ख़्याल, सुधार और विकास करो। *बरगद के वृक्ष की तरह अपनी योग्यता-क्षमता का चहुँ ओर विकास करो।* जड़ सदा मजबूत रखो, दुसरो की मदद के साथ अपनी मदद  करना न भूलें, अपना और अपने परिवार का ख़्याल रखें।

याद रखें, *एक नियम सब पर लागू नहीं होता केवल कुछ पर लागू होता है। भाई रावण है या राम पहले यह विवेक से तय करें, फिर ही उसका साथ देने या न देने का निर्णय करें।*

नियमित जप-ध्यान-स्वाध्याय-प्राणायाम से विवेक दृष्टि जागृत होगी, भाई-बहन के भीतर के राम या रावण के स्वरूप की असली पहचान मिलेगी।

 एक ही माता-पिता के दो विपरीत मानसिकता के बच्चे अच्छे और बुरे जन्म ले सकते हैं। माता-पिता मोह के चश्मे को लगाकर कभी भी अपनी संतान की गलती देख नहीं पाते, कभी कभी तो देख के भी इग्नोर करते है। अक्सर बोलते है मेरा बेटा ऐसा कर ही नहीं सकता, वो निर्दोष है। तो ऐसी परिस्थिति में सत्य से अवगत करवा के, अपनी हद/सीमा तक समझा के माता-पिता और भाई-बहन को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए, जो सुनना-समझना न चाहे उनमें उलझकर अपनी जिंदगी बर्बाद नहीं करनी चाहिए । अपने विकास और उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए। साथ ही एक माला गायत्री की जप के उनकी सद्बुद्धि हेतु प्रार्थना करना चाहिए।

उम्मीद है आपको मेरा सुझाव पसन्द आया होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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