प्रश्न - *मैं गायत्री परिवार से हूँ और मेरी अरेंज मैरिज हुई है। मैं होम मेकर हूँ। मेरे ससुराल में सभी लोग बड़े हाई-फाई है, स्वादिष्ट भोजन और फुर्सत के वक़्त टीवी के समक्ष इंटरटेनमेंट ही व्यस्त रहते हैं। यहां भगवान की फ़ोटो तो है लेकिन दीवार पर टँगी है कभी किसी को उसके पास खड़े होते नहीं देखा। अब बताइये ऐसी विपरीत परिस्थिति में गुरुकार्य, जप-तप व्रत कैसे करूँ? यदि आप मेरी जगह होती तो क्या करती?*
उत्तर - प्रिय बहन तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व तुम्हें एक कहानी सुनाती हूँ। *जूते बनाने वाली कम्पनी ने अपने दो मार्केटिंग मैनेजर को एक ऐसे देश भेजा जहां जूते पहनना कोई नहीं जानता था।*
👉🏽एक मैनेजर ने रिपोर्ट भेजी कि यहां अपनी कम्पनी के विस्तार की कोई गुंजाइश नहीं है *क्योंकि यहां कोई जूते नहीं पहनता*। तो जूते की फैक्ट्री का यहां कोई काम नहीं है।
👉🏽दूसरे मैनेजर ने रिपोर्ट भेजी कि यहां अपनी कम्पनी के विस्तार की बहुत सम्भावना है *क्योंकि यहां कोई जूते नहीं पहनता*। तो जूते की फैक्ट्री की यहां सख़्त जरूरत है। हम लोगों को जूते की उपयोगिता बता कर उन्हें जूते पहनना सिखाएंगे।
*परिस्थिति एक लेकिन उस पर प्रतिक्रिया दोनों की अलग अलग उनके दृष्टिकोण/नजरिये/मानसिकता/attitude के कारण उभरी।परिणाम भी उसी अनुरूप मिले।*
अब यदि मैं तुम्हारी जगह होती, तो दूसरे टाइप के मैनेजर की तरह भगवान को शुक्रिया देती कि धन्यवाद मेरा विवाह यहां करवाने के लिए। यहां इनके उद्धार की आवश्यकता है और आपके प्रतिनिधि के रूप में मैं इनका उद्धार आपके युगसाहित्य के माध्यम से हो यह प्रयास करूंगी।
जिस प्रकार जोधाबाई मुस्लिम महल में भी कृष्ण मंदिर बनवाया, वैसे ही पतिदेव और परिवार वालों को सेवा, भक्ति और स्वादिष्ट भोजन खिला के प्रशन्न करती और घर मे सुंदर देव मन्दिर स्थापित करवाती। पहले स्वयं यज्ञ करती, फिर धीरे धीरे उन्हें यज्ञ का ज्ञान विज्ञान समझा कर पहले महीने में एक बार, फ़िर सप्ताह में एक बार यज्ञ से जोड़ती। पहले खुद अध्यात्म की वैज्ञानिकता समझती फिर सबको समझाती। कम से कम आधे घण्टे सुबह और आधे घण्टे शाम नित्य ध्यान करके स्वयं उस दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा से जुड़ती।
पतिदेव के साथ नजदीकी शक्तिपीठ में महीने में एक बार जाती, मन्त्रलेखन पुस्तिका और साहित्य लेकर आती। रोज पारिवारिक व्हाट्सएप ग्रुप में एक सद्विचार भेजती। फ़िर एक वर्ष में ऊंट की तरह पहले अध्यात्म के सर को घर मे प्रवेश करवाती, फिर दूसरे वर्ष पूरे अध्यात्म का शरीर घर मे प्रवेश करवा देती।
जब गुरुकृपा से अंतर्मन में हिमालय सी शांति स्थापित करती तो मेरे सामने कोई अशांत उद्विग्न भला कैसे टिकता।
इस तरह पांच वर्षीय योजना बनाकर पूरे परिवार को साधक निर्भय होकर बनाती। क्योंकि मुझे अपने गुरुदेव पर भरोसा है, उनकी बेटी जो गायत्री साधक है और उनके ही ध्यान में रमकर गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित भोजन 5 वर्ष तक बनाये और उसे कोई खाये और उसमें परिवर्तन न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। और यदि कोई न सुधरता तो भी अपने हिस्से का प्रयास करती बाकी गुरुदेव पर छोड़कर, अपनी साधना में जुट जाती।
पांच साल में बहु के रूप में पुरानी हो जाती तो आसपास की महिलाओं को अखण्डज्योति पत्रिका स्वाध्याय-जप-तप से जोड़ती इस तरह मेरी गाड़ी चल पड़ती😇 मैं आपकी जगह होती तो यही करती।
परिवार में कोई और सुधरता या न सुधरता, लेकिन पतिदेव को तो 100% गुरुमय बनाने का प्रयास करती। आगे गुरुदेव की इच्छा।😇
युगनिर्माण योजना को ठीक से समझ के यदि हम किसी को समझा सके तो वो जरूर जुड़ेगा, अतः ठीक तरह से वाणी के साथ साथ आचरण और व्यवहार से समझाना हमे सीखना होगा। अध्यात्म की अनुभूति से स्वयं आनन्दित रहना होगा, जिससे इस आनंद का राज़ जानने के लिए लोग स्वयं हमारे पास तक आएं। अध्यात्म की भूख किसी की जगे तो उसके मार्गदर्शन की व्यवस्था हम कर सकें इतना ज्यादा हमारा स्वाध्याय होना चाहिए😇😇 स्वयं को निरन्तर योग्य बनाने में जुटी रहती।
उम्मीद है आपकी जिज्ञासा का समाधान हुआ होगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - प्रिय बहन तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व तुम्हें एक कहानी सुनाती हूँ। *जूते बनाने वाली कम्पनी ने अपने दो मार्केटिंग मैनेजर को एक ऐसे देश भेजा जहां जूते पहनना कोई नहीं जानता था।*
👉🏽एक मैनेजर ने रिपोर्ट भेजी कि यहां अपनी कम्पनी के विस्तार की कोई गुंजाइश नहीं है *क्योंकि यहां कोई जूते नहीं पहनता*। तो जूते की फैक्ट्री का यहां कोई काम नहीं है।
👉🏽दूसरे मैनेजर ने रिपोर्ट भेजी कि यहां अपनी कम्पनी के विस्तार की बहुत सम्भावना है *क्योंकि यहां कोई जूते नहीं पहनता*। तो जूते की फैक्ट्री की यहां सख़्त जरूरत है। हम लोगों को जूते की उपयोगिता बता कर उन्हें जूते पहनना सिखाएंगे।
*परिस्थिति एक लेकिन उस पर प्रतिक्रिया दोनों की अलग अलग उनके दृष्टिकोण/नजरिये/मानसिकता/attitude के कारण उभरी।परिणाम भी उसी अनुरूप मिले।*
अब यदि मैं तुम्हारी जगह होती, तो दूसरे टाइप के मैनेजर की तरह भगवान को शुक्रिया देती कि धन्यवाद मेरा विवाह यहां करवाने के लिए। यहां इनके उद्धार की आवश्यकता है और आपके प्रतिनिधि के रूप में मैं इनका उद्धार आपके युगसाहित्य के माध्यम से हो यह प्रयास करूंगी।
जिस प्रकार जोधाबाई मुस्लिम महल में भी कृष्ण मंदिर बनवाया, वैसे ही पतिदेव और परिवार वालों को सेवा, भक्ति और स्वादिष्ट भोजन खिला के प्रशन्न करती और घर मे सुंदर देव मन्दिर स्थापित करवाती। पहले स्वयं यज्ञ करती, फिर धीरे धीरे उन्हें यज्ञ का ज्ञान विज्ञान समझा कर पहले महीने में एक बार, फ़िर सप्ताह में एक बार यज्ञ से जोड़ती। पहले खुद अध्यात्म की वैज्ञानिकता समझती फिर सबको समझाती। कम से कम आधे घण्टे सुबह और आधे घण्टे शाम नित्य ध्यान करके स्वयं उस दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा से जुड़ती।
पतिदेव के साथ नजदीकी शक्तिपीठ में महीने में एक बार जाती, मन्त्रलेखन पुस्तिका और साहित्य लेकर आती। रोज पारिवारिक व्हाट्सएप ग्रुप में एक सद्विचार भेजती। फ़िर एक वर्ष में ऊंट की तरह पहले अध्यात्म के सर को घर मे प्रवेश करवाती, फिर दूसरे वर्ष पूरे अध्यात्म का शरीर घर मे प्रवेश करवा देती।
जब गुरुकृपा से अंतर्मन में हिमालय सी शांति स्थापित करती तो मेरे सामने कोई अशांत उद्विग्न भला कैसे टिकता।
इस तरह पांच वर्षीय योजना बनाकर पूरे परिवार को साधक निर्भय होकर बनाती। क्योंकि मुझे अपने गुरुदेव पर भरोसा है, उनकी बेटी जो गायत्री साधक है और उनके ही ध्यान में रमकर गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित भोजन 5 वर्ष तक बनाये और उसे कोई खाये और उसमें परिवर्तन न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। और यदि कोई न सुधरता तो भी अपने हिस्से का प्रयास करती बाकी गुरुदेव पर छोड़कर, अपनी साधना में जुट जाती।
पांच साल में बहु के रूप में पुरानी हो जाती तो आसपास की महिलाओं को अखण्डज्योति पत्रिका स्वाध्याय-जप-तप से जोड़ती इस तरह मेरी गाड़ी चल पड़ती😇 मैं आपकी जगह होती तो यही करती।
परिवार में कोई और सुधरता या न सुधरता, लेकिन पतिदेव को तो 100% गुरुमय बनाने का प्रयास करती। आगे गुरुदेव की इच्छा।😇
युगनिर्माण योजना को ठीक से समझ के यदि हम किसी को समझा सके तो वो जरूर जुड़ेगा, अतः ठीक तरह से वाणी के साथ साथ आचरण और व्यवहार से समझाना हमे सीखना होगा। अध्यात्म की अनुभूति से स्वयं आनन्दित रहना होगा, जिससे इस आनंद का राज़ जानने के लिए लोग स्वयं हमारे पास तक आएं। अध्यात्म की भूख किसी की जगे तो उसके मार्गदर्शन की व्यवस्था हम कर सकें इतना ज्यादा हमारा स्वाध्याय होना चाहिए😇😇 स्वयं को निरन्तर योग्य बनाने में जुटी रहती।
उम्मीद है आपकी जिज्ञासा का समाधान हुआ होगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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