प्रश्न - *यदि जीवन में प्रारब्ध वश या किसी के बहकावे में हमसे ऐसी भूल हो जाए जो हमें नहीं करनी चाहिए थी तो क्या करें? जीवन में ग्लानि से कैसे बचें? जीवन को पुनः मूल धारा में वापस कैसे लाएं?*
उत्तर - युगऋषि के साहित्य का नियमित स्वाध्याय और उपासना-साधना करने वाले साधक को अन्तर्दृष्टि मिलती है। वो जानता है मेरे साथ जो कुछ हो रहा है उसके लिए एकमात्र मैं जिम्मेदार हूँ। मुझे कोई दोषी तब तक नहीं बना सकता,जब तक कहीं न कहीं उस दोष का बीज मेरे अंदर न हो। बहकाने वाला मात्र दोष का पोषण कर सकता है, बीजारोपण नहीं कर सकता।
बहकावे अर्थात् शिकारी का ज़ाल, कोई भी चिड़िया दुनियां के समस्त शिकारी को खत्म नहीं कर सकती। लेकिन चिड़िया स्वयं की सुरक्षा हेतु सही-ग़लत के विवेक को जागृत अवश्य कर सकती है। जाल में न फंसे इस हेतु जागरूक/चैतन्य रह सकती है। इसलिए ही हम सुधरेंगे युग सुधरेगा वाला कॉन्सेप्ट गुरुदेव ने दिया है।
धर्मराज युधिष्ठिर भी दुर्योधन के बहकावे में जुआ खेले, द्रौपदी चीरहरण हुआ, महाभारत हुआ। दुर्योधन का समूल वंश नाश हुआ तो युधिष्ठिर का भी लगभग समूल नाश ही हुआ। मात्र उत्तरा के गर्भ ही बचाया जा सका। लेकिन यदि युधिष्ठिर की जुआ खेलने में रूचि ही न होती तो क्या दुर्योधन बहका पाता? दुर्योधन ने तो उनकी इस कमी का फ़ायदा उठाया।
महर्षि विश्वामित्र की गायत्री सिद्ध करने की तपस्या मेनका नाम की अप्सरा ने भँग कर दिया। क्यूंकि वो राजा रह चुके थे, कहीं न कहीं वासना का बीज पड़ा था। मेनका ने तो दुर्योधन की तरह उसका चारित्रिक कमी का फ़ायदा उठाया। लेकिन जिस् क्षण युधिष्ठिर को भूल का अहसास हुआ जीवन में पुनः जुआ के खेल की ईच्छा का समूल नाश कर दिया। जीवन में फ़िर कभी जुआ न खेला।
इसी तरह महर्षि ने क्या किया, जिस क्षण माँ गायत्री की कृपा से बोध हुआ, अरे करने क्या आया था और मैं बहक गया। तत्क्षण मोहबन्धन और वासना के बीज का भीतर से समूल नाश करके, चन्द्रायण व्रत प्रायश्चित विधान किया। पुनः मेहनत और कठोर तप किया और गायत्री सिद्ध कर लिया।
ग़लत मार्ग चयन का बोध होते ही यू टर्न लेकर सही मार्ग में दोबारा आ जाएँ, मनुष्य जीवन में यदि ग़लती/भूल हो जाए तो बोध आते ही उसका प्रायश्चित करना चाहिए। पुनः योगी और महर्षि विश्वामित्र की तरह साधना में जुट कर जीबन लक्ष्यप्राप्ति करनी चाहिए।
जितनी बड़ी क्षति/भूल उतनी ज्यादा कठोर साधना करें।
उदाहरण - राश्ते में जाते समय कीचड़ के छींटे आ जाएँ तो ये सोचना मूर्खता होगी। अब तो कीचड़ लग ही गया तो क्यों न कीचड़ में लोट पोट लिया जाय। बुध्दिमानी यह है कि कीचड़ धो लिया जाय। आत्मचिंतन करके यह सुनिश्चित किया जाय क़ि पुनः कीचड़ न लगे इस हेतु हमें क्या करना चाहिए?
आत्मसमीक्षा में स्वयं को पत्र लिखें - क़ि ऐसा क्यूँ हुआ? बहकावे में मैं क्यूँ आया? दुबारा ऐसा मेरे साथ न हो इसके लिए कौन सी सावधानी बरतना चाहिए मुझे? मुझे ग्लानि में समय व्यर्थ नहीं करना। यदि एक एग्जाम में फ़ेल हो गया तो क्या और ज्यादा पढ़कर मेहनत करके दूसरे एग्जाम में पास होना है। मैं कायर नहीं हूँ मैं फ़ेलियर को सफ़लता में बदलूंगा।
यदि बड़े केक को खाना हो तो उसके टुकड़े टुकड़े करके ही खाया जा सकता है उसी तरह अपने बड़े महान् जीवन लक्ष्य को छोटे छोटे मॉड्यूल लक्ष्य में बाँट दो। यदि एक वर्ष में मुझे यह हांसिल करना है तो प्रत्येक महीने मुझे क्या अचीव करना होगा? फिर प्रत्येक सप्ताह क्या अचीव करना होगा? फिर प्रत्येक दिन क्या अचीव करना होगा?
इस तरह नित्य गोल/साप्ताहिक गोल/मासिक गोल और वार्षिक गोल होगा तो नित्य गोल अचीव करने की ख़ुशी नित्य मिलेगी। स्वयं को ट्रैक करना आसान होगा। जीवन लक्ष्य महान् चुनना चाहिए।
कुछ पुस्तकें अवश्य पढ़े :-
1- जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
2- हारिये न हिम्मत
3- दृष्टिकोण ठीक रखें
4- स्वर्ग-नर्क की स्वचालित प्रक्रिया
5- चन्द्रायण कल्प साधना
सुबह का भूला अग़र शाम को घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते। यदि ग़लती/फ़ेलियर का समुचित प्रायश्चित कर पुनः प्रयास किया जाय सही करने का तो उसे कोई फ़ेलियर नहीं कहता।
महापुरूषो के जीवन चरित्र पढ़ेंगे तो आप पाएंगे क़ि भूलों को उन्होंने सुधारा है। और संकल्प बल और अथक प्रयास से सफ़ल बनकर दिखाया है।
आपकी सद्बुद्धि और आपके उज्जवल भविष्य की हम प्रार्थना करते हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
उत्तर - युगऋषि के साहित्य का नियमित स्वाध्याय और उपासना-साधना करने वाले साधक को अन्तर्दृष्टि मिलती है। वो जानता है मेरे साथ जो कुछ हो रहा है उसके लिए एकमात्र मैं जिम्मेदार हूँ। मुझे कोई दोषी तब तक नहीं बना सकता,जब तक कहीं न कहीं उस दोष का बीज मेरे अंदर न हो। बहकाने वाला मात्र दोष का पोषण कर सकता है, बीजारोपण नहीं कर सकता।
बहकावे अर्थात् शिकारी का ज़ाल, कोई भी चिड़िया दुनियां के समस्त शिकारी को खत्म नहीं कर सकती। लेकिन चिड़िया स्वयं की सुरक्षा हेतु सही-ग़लत के विवेक को जागृत अवश्य कर सकती है। जाल में न फंसे इस हेतु जागरूक/चैतन्य रह सकती है। इसलिए ही हम सुधरेंगे युग सुधरेगा वाला कॉन्सेप्ट गुरुदेव ने दिया है।
धर्मराज युधिष्ठिर भी दुर्योधन के बहकावे में जुआ खेले, द्रौपदी चीरहरण हुआ, महाभारत हुआ। दुर्योधन का समूल वंश नाश हुआ तो युधिष्ठिर का भी लगभग समूल नाश ही हुआ। मात्र उत्तरा के गर्भ ही बचाया जा सका। लेकिन यदि युधिष्ठिर की जुआ खेलने में रूचि ही न होती तो क्या दुर्योधन बहका पाता? दुर्योधन ने तो उनकी इस कमी का फ़ायदा उठाया।
महर्षि विश्वामित्र की गायत्री सिद्ध करने की तपस्या मेनका नाम की अप्सरा ने भँग कर दिया। क्यूंकि वो राजा रह चुके थे, कहीं न कहीं वासना का बीज पड़ा था। मेनका ने तो दुर्योधन की तरह उसका चारित्रिक कमी का फ़ायदा उठाया। लेकिन जिस् क्षण युधिष्ठिर को भूल का अहसास हुआ जीवन में पुनः जुआ के खेल की ईच्छा का समूल नाश कर दिया। जीवन में फ़िर कभी जुआ न खेला।
इसी तरह महर्षि ने क्या किया, जिस क्षण माँ गायत्री की कृपा से बोध हुआ, अरे करने क्या आया था और मैं बहक गया। तत्क्षण मोहबन्धन और वासना के बीज का भीतर से समूल नाश करके, चन्द्रायण व्रत प्रायश्चित विधान किया। पुनः मेहनत और कठोर तप किया और गायत्री सिद्ध कर लिया।
ग़लत मार्ग चयन का बोध होते ही यू टर्न लेकर सही मार्ग में दोबारा आ जाएँ, मनुष्य जीवन में यदि ग़लती/भूल हो जाए तो बोध आते ही उसका प्रायश्चित करना चाहिए। पुनः योगी और महर्षि विश्वामित्र की तरह साधना में जुट कर जीबन लक्ष्यप्राप्ति करनी चाहिए।
जितनी बड़ी क्षति/भूल उतनी ज्यादा कठोर साधना करें।
उदाहरण - राश्ते में जाते समय कीचड़ के छींटे आ जाएँ तो ये सोचना मूर्खता होगी। अब तो कीचड़ लग ही गया तो क्यों न कीचड़ में लोट पोट लिया जाय। बुध्दिमानी यह है कि कीचड़ धो लिया जाय। आत्मचिंतन करके यह सुनिश्चित किया जाय क़ि पुनः कीचड़ न लगे इस हेतु हमें क्या करना चाहिए?
आत्मसमीक्षा में स्वयं को पत्र लिखें - क़ि ऐसा क्यूँ हुआ? बहकावे में मैं क्यूँ आया? दुबारा ऐसा मेरे साथ न हो इसके लिए कौन सी सावधानी बरतना चाहिए मुझे? मुझे ग्लानि में समय व्यर्थ नहीं करना। यदि एक एग्जाम में फ़ेल हो गया तो क्या और ज्यादा पढ़कर मेहनत करके दूसरे एग्जाम में पास होना है। मैं कायर नहीं हूँ मैं फ़ेलियर को सफ़लता में बदलूंगा।
यदि बड़े केक को खाना हो तो उसके टुकड़े टुकड़े करके ही खाया जा सकता है उसी तरह अपने बड़े महान् जीवन लक्ष्य को छोटे छोटे मॉड्यूल लक्ष्य में बाँट दो। यदि एक वर्ष में मुझे यह हांसिल करना है तो प्रत्येक महीने मुझे क्या अचीव करना होगा? फिर प्रत्येक सप्ताह क्या अचीव करना होगा? फिर प्रत्येक दिन क्या अचीव करना होगा?
इस तरह नित्य गोल/साप्ताहिक गोल/मासिक गोल और वार्षिक गोल होगा तो नित्य गोल अचीव करने की ख़ुशी नित्य मिलेगी। स्वयं को ट्रैक करना आसान होगा। जीवन लक्ष्य महान् चुनना चाहिए।
कुछ पुस्तकें अवश्य पढ़े :-
1- जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
2- हारिये न हिम्मत
3- दृष्टिकोण ठीक रखें
4- स्वर्ग-नर्क की स्वचालित प्रक्रिया
5- चन्द्रायण कल्प साधना
सुबह का भूला अग़र शाम को घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते। यदि ग़लती/फ़ेलियर का समुचित प्रायश्चित कर पुनः प्रयास किया जाय सही करने का तो उसे कोई फ़ेलियर नहीं कहता।
महापुरूषो के जीवन चरित्र पढ़ेंगे तो आप पाएंगे क़ि भूलों को उन्होंने सुधारा है। और संकल्प बल और अथक प्रयास से सफ़ल बनकर दिखाया है।
आपकी सद्बुद्धि और आपके उज्जवल भविष्य की हम प्रार्थना करते हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
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